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वर्ल्ड कप 2015 : टीम इंडिया की 5 चुनौतियां

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अनवर जमाल अशरफ

क्या भारत की टीम वैसी ही है, जैसी 2011 में थी। क्या इस बार भी खिताब की दावेदार है। पिछले चार साल में न सिर्फ टीम इंडिया में बहुत कुछ बदल गया है, बल्कि माहौल भी बिलकुल अलग है। कप्तान धोनी की 2015 की टीम के सामने पांच अलग तरह की चुनौतियां हैं, जिन्हें पार पाने के बाद ही वह वर्ल्ड कप के पास पहुंच सकते हैं।
अनुभव की कमी :  वर्ल्ड कप जीतने वाली टीमें आमतौर पर अनुभवी और युवा खिलाड़ियों की मिलीजुली इकाई होती हैं। चाहे 1975 और 1979 की क्लाइव लॉयड और विव रिचर्ड्स वाली वेस्टइंडीज हो या तीन बार खिताब जीतने वाली रिकी पोंटिंग की ऑस्ट्रेलिया। 
 
मुंबई में जीतने वाली टीम में सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, जहीर खान, हरभजनसिंह और युवराजसिंह जैसे दिग्गज थे। इनके पास एक एक दशक से ज्यादा का अनुभव था और उन्होंने कई-कई वर्ल्ड कप खेले थे। दूसरी ओर धोनी, कोहली, गौतम गंभीर और रैना जैसे जोशीले युवा खिलाड़ी भी थे।
 
इस बार तस्वीर अलग है। कप्तान महेंद्रसिंह धोनी टीम के सबसे तजुर्बेकार खिलाड़ी हैं। उनके अलावा सिर्फ विराट कोहली, सुरेश रैना और आर अश्विन को ही वर्ल्ड कप का अनुभव है। बाकी पूरी टीम नई है। कई बार दबाव की स्थिति में अनुभव काम आता है। इस बार धोनी को ऐसे हालात में मदद करने वाला कोई नहीं।
 
सचिन बिन सब सून : सचिन तेंदुलकर का करिश्मा टीम की ऊर्जा थी। उनका होना ही मनौवैज्ञानिक बढ़त बना देता था। सचिन के पास छ: वर्ल्ड कप का अनुभव था, जबकि इस बार छ: खिलाड़ी भी ऐसे नहीं, जिनके पास एक से ज्यादा विश्व कप का अनुभव हो।
 
सचिन एक करिश्माई खिलाड़ी रहे हैं, जो बल्ले के साथ साथ गेंद से भी अजूबा करते रहे हैं। भारतीय क्रिकेट टीम को वर्ल्ड कप जैसे मुकाबलों में उनके साथ जीने की आदत हो गई थी। हालांकि दो साल पहले भारत ने चैंपियंस ट्रॉफी उनके बगैर ही जीती। लेकिन वर्ल्ड कप की बात अलग होती है।
 
 
बिखरी बिखरी टीम : तीन महीने से ऑस्ट्रेलिया में डटी टीम इंडिया मनोवैज्ञानिक दबाव में भी है। लंबे दौरे ने टीम के खिलाड़ियों को परेशान और चोटिल कर रखा है। अभी तक यह भी तय नहीं कि आखिरी 11 में कौन से खिलाड़ी होंगे। ईशांत शर्मा और रोहित शर्मा के अलावा रवींद्र जडेजा भी चोट से जूझ रहे हैं।
 
इसके अलावा ड्रेसिंग रूम में भी माहौल ठीक नहीं। शिखर धवन और विराट कोहली के बीच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में बल्लेबाजी को लेकर कहा-सुनी हो चुकी है। कप्तान धोनी इसी दौरे में अचानक टेस्ट टीम से रिटायर हो गए हैं। भारत में चल रहे एक मुकदमे में भी उनका नाम है, जिसका फैसला उनके और पूरी टीम के लिए घातक साबित हो सकता है। टीम का आपसी भरोसा कगार पर पहुंच चुका है।
 
तब के कोच, अब के कोच : चार साल पहले 43 साल के गैरी कर्स्टन ने जब भारत के साथ वानखेड़े स्टेडियम में जीत का झंडा उठाया, तो पूरी टीम ने उन्हें कंधे पर उठा लिया था। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान कर्स्टन ने भारतीय टीम की नब्ज पकड़ी थी और उन्हें न सिर्फ ग्रेग चैपल के सदमे से बाहर निकाला था, बल्कि तीन साल में संगठित भी कर दिया था। अब कोच का जिम्मा 66 साल के जिम्बाब्वे के डंकन फ्लेचर निभा रहे हैं। फ्लेचर ने कोई टेस्ट नहीं खेला है और सिर्फ छ: वन-डे मैचों का अनुभव रखते हैं।
 
पूर्व कप्तान रवि शास्त्री को हाल में टीम इंडिया का कार्यकारी डायरेक्टर बना दिया गया है। इससे प्रबंधन और खराब हुआ है। शास्त्री विराट कोहली को पसंद करते हैं और समझा जाता है कि कोहली को बढ़ावा दे रहे हैं। वे टीम के ड्रेसिंग रूम में फैसलों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। धोनी को यह पसंद नहीं। कप्तान के तौर पर पहले कर्स्टन और बाद में फ्लेचर के साथ उनके रिश्ते अच्छे रहे लेकिन ये दोनों कोच धोनी के सामने अपनी हदों में रहना जानते थे। शास्त्री ने पूरा समीकरण बदल दिया है। वे अधिकार अपने पास रखना चाहते हैं। इससे टीम में गुटबाजी शुरू हो गई है। धोनी-फ्लेचर-शास्त्री के बीच एक मुश्किल त्रिकोण बन गया है, जिसमें संवाद भी बमुश्किल होता है।
 
अगले पन्ने पर, पिच पिच की बात...
 

पिच पिच की बात है :  पिछली बार भारत को स्पिन में घूमती भारतीय उप महाद्वीप के विकेटों पर खेलना था। भारत के घरेलू पिचों पर बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों आसान होती है। भारत को बल्लेबाजों पर भरोसा रहता है और भारतीय ग्राउंड पर घरेलू बल्लेबाज बड़ा स्कोर कर लेते हैं।

बाद में उन्हें स्पिनरों से मदद मिल जाती है,लेकिन इस बार ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की तेज रफ्तार पिचें और विशालकाय ग्राउंड हैं। भारत ऐसी पिचों पर कभी भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया है।

ऑस्ट्रेलिया में तो खास तौर पर नहीं। भारतीय गेंदबाजों का इन पिचों पर बुरा हाल रहता है और इस बार पांचवें गेंदबाज का संकट भी है। यानी इस बार भारत के लिए वर्ल्ड कप की राह आसान नहीं। आसान ग्रुप को देखते हुए हो सकता है कि पहला दौर आसानी से निकल जाए लेकिन नॉकआउट मुकाबलों में उसे चांस और टॉस का सहारा लेना होगा।
 

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