स्वतंत्र लेखक एवं डेढ़ दशक से स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत पोलियो को रोकने में कामयाब रही महिला शक्ति
पोलियो एक गंभीर बीमारी है जिसमें फ्रंटलाइन फीमेल हेल्थ वर्कर्स की अहम भूमिका रही है
भारत ने पोलियो मुक्त होकर स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बहुत बड़ी सफलता अर्जित की। दरअसल कुछ सालों पहले जब भारत विश्व में पोलियो मुक्त घोषित हुआ तो इस देश के लिए यह एक बहुत शानदार कामयाबी थी। इससे भारत का भविष्य कहलाने वाले बच्चे इस खतरनाक संक्रमण से सुरक्षित हो सके। इसके लिए स्वास्थ्य ऐजेंसियों की योजनाएं और उनको जमीन पर लागू करने वाला अमला था।
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इस पूरी सफलता के पीछे सतत संचार रणनीति भी रही। लेकिन आज महिला दिवस के अवसर पर इस बात को कहना भी जरूरी है कि देश में पोलियो के मामलों को पूरी तरह से रोकने का श्रेय देशभर में स्वास्थ्य क्षेत्र में अथक काम कर रहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात एएनएम, आशा तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को जाता है। इन तीनों नामकरण वाले पदों पर महिलाएं देश के हर कोने में पोलियो टीकाकरण का बेहद परिश्रम वाला काम करती रही हैं।
गर्मी, जाड़ा और भारी बरसात में भी देश के सुदूर दुर्गमतम अंचलों में भी हर बच्चे को पोलियो वैक्सीन का सुरक्षाचक्र पहुंचाने में ये हेल्थ वर्कर्स हमेशा सफल रहे। और नतीजा आज सामने है कि हमारे यहां बीते कई सालों में पोलियो का कोई नया मामला सामने नहीं आया।
आम लोगों को यह समझाने में कि पोलियो एक बहुत ही गंभीर संक्रामक बीमारी है इन फ्रंटलाइन फीमेल हेल्थ वर्कर्स की अहम भूमिका रही है। अब भी पोलियो टीकाकरण अभियान जारी है। इस महीने के पहले सप्ताह में बूथ से लेकर घर-घर तक पोलियो वैक्सिनेशन को लेकर ये टीमें काम कर रही हैं।
हलांकि आशा और आंगनबाड़ी से संबंधित कार्यकत्रियां अपने मानदेय आदि को लेकर अभी कई जगहों पर हड़ताल पर हैं लेकिन इसके बावजूद पोलियो टीकाकरण अभियान बदस्तूर जारी है। लेकिन पोलियो टीकाकरण को लेकर आम लोगों के व्यवहार में सहयोगात्मक बदलाव लाने में इन स्वास्थ्य कार्यकत्रियों की पूरी टीम का अहम रोल है। आज हर व्यक्ति यह जानता है कि पोलियो एक गंभीर संक्रामक रोग है आमतौर पर इसकी चपेट में बच्चे आते हैं।
हमें यह भी समझना जरूरी है कि वायरल बीमारियां एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलती हैं। तो हमारा देश भले ही मौजूदा समय में पोलियो मुक्त है लेकिन अभी भी पूरी दुनिया में पोलियो एक गंभीर समस्या हे। हमारे कई पड़ोसी मुल्कों में अभी भी पोलियो के मामले सामने आते रहते हैं। ऐसे में यदि वहां से आने वाला कोई भी नागरिक जिसमें पोलियो के लक्षण भले ही ना दिखाई देते हों लेकिन वह व्यक्ति पोलियो वायरस के कैरियर का काम तो कर ही सकता है।
इस तरह हमारे यहां का कोई भी एक ऐसा बच्चा जिसे पोलियो की वैक्सीन ना मिली हो ऐसे किसी भी करियर के संपर्क में आते ही पोलियो वायरस का शिकार बन सकता है। दरअसल जब भी कोई देश किसी वायरस विशेष से मुक्त घोषित होता है तो इसका कतई यह मतलब नहीं है कि भविष्य में वहां उसका संक्रमण नहीं हो सकता। वायरस के संक्रमण का खतरा तो हमेशा रहता है।
पोलियो वायरस के संदर्भों में सबसे अच्छा उदाहरण चीन है। साल 2001 में चीन पोलियो मुक्त घोषित हुआ था। वहां लगभग एक दशक तक सबकुछ ठीकठाक रहा। लेकिन इतने लंबे वक्त बाद वर्ष 2011 में वहां जीझियांग नामक प्रांत में पोलियो के लगभग 21 मामले मिले। यही नहीं पोलियो के चलते वहां दो मौतें भी हुईं। चीन की सरकार ने इसकी गंभीरता समझते हुए कड़ी जांच के आदेश दिए।
वहां के अनुसंधानकर्ताओं ने अपनी जांच में पाया कि दरअसल वहां पोलियो का वायरस पाकिस्तानी संक्रमित व्यक्ति के जरिए पहुंचा था। बहरहाल यही कारण है कि कोविड.19 के वैश्विक संक्रमण के बाद कई देशों ने विदेश से आने वालों से इसकी वैक्सीन के सर्टिफिकेट मांगे।
वर्तमान में अन्य देशों से पोलियो वायरस के खिलाफ भारत के बचने का एकमात्र बचाव इसका टीका है। सरकारें पोलियो उन्मूलन और बच्चों को इस संक्रमण से बचाने के लिए लगातार एक सशक्त और सुस्पष्ट टीकाकरण कार्यक्रम चलाती हैं। आम लोग आज टीकाकरण का महत्व समझते हैं। हमारे व्यवहार में आज विविध संक्रमणों से बचने वाले टीकों के प्रति बहुत सकारात्मक बदलाव आया है।
पोलियो का कोई नया मामला पिछले 8 सालों में सामने नहीं आया है लेकिन नवजात शिशुओं के बीच टीकाकरण का अल्प अंतराल भी भारत में इस विषाणु के प्रवेश के लिये पर्याप्त हो सकता है।दुनिया में वर्ष 1980 के दशक में पोलियो के खिलाफ एक वैश्विक अभियान शुरू हुआ। उस दौर में भारत में पोलियो उन्मूलन के लिए सबसे चुनौती भरा वातावरण था। विषम आर्थिक परिस्थितियांए सघन आबादीए और बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित उपलब्धताओं के चलते पोलियो जैसे संक्रमण के खिलाफ लड़ना बहुत चुनौती भरा काम था। अधिक आबादी वाले राज्यों में तो हालात तब और खराब थे।
रिर्पोट्स बताती हैं कि जिस दौर में हमारे देश में पोलियो का संक्रमण सबसे चरम पर था उस दौर में लगभग साढ़े 6 लाख पोलियो बूथ्स के जरिये इसके उन्मूलन अभियान से लोगों को जोड़ने का काम स्वास्थ्य ऐजेंसियों की महिला कार्यकत्रियों ने किया। एक समय पल्स पोलियो दिवस के एक राउंड में भारत में करीब दो करोड़ वैक्सीन भी दिए गए।
देश के करोड़ों घरों में स्वास्थ्य विभाग की मैदानी कार्यकत्रियां गयी और बच्चों का टीकाकरण किया। कुछ सालों पहले तक पोलियो वैक्सीन के बॉक्स लिए बस और रेलवे स्टेशनों से लेकर स्कूलों और आवाजाही वाले तमाम रस्तों पर स्वास्थ्य विभाग की कार्यकत्रियां और आशा कार्यकर्ता पोलियो टीकाकरण करती दिखती थीं।
साल 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी निदेशक माइकल रेयान ने कहा था कि भारत ने पोलियो जैसे संक्रमण से लड़ने में दुनिया को राह दिखाई है। इन महिलाओं के काम को आमतौर पर उतना सम्मान नहीं मिलता लेकिन उन्होंने देश के करोड़ों बच्चों को पोलियो की दों बूंदों के जरिये इस जानलेवा संक्रमण से सुरक्षा दी। इन सभी को महिला दिवस पर सैल्यूट।