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आयशा : आत्महत्या या प्रेम का कपट-वध?

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शैली बक्षी खड़कोतकर

8 मार्च, महिला दिवस... हर साल की तरह पत्र-पत्रिकाएं अपने विशेषांकों की तैयारी में जुटी थीं, चैनल्स में उस दिन की विशेष प्रस्तुतियों की योजना बन रही थीं, संस्थाएं अपने कार्यक्रमों की रुपरेखा को अंतिम स्वरूप देने में व्यस्त थीं और अचानक साबरमती में उफान आ गया। उफान भी ऐसा जो हर संवेदनशील मन को व्यथित कर सैकड़ों-लाखों जोड़ी आंखों से बह निकला। इसमें बहे एक-एक आंसू ने समाज की असली तस्वीर सामने रख दी, महिला सशक्तिकरण के तमाम दावों की सच्चाई उघाड़ दी और फिर एक बार बता दिया कि चंद कामयाब महिलाओं की रोशनी तले कितना स्याह अंधेरा है। 
 
आयशा, उस प्यारी-सी लड़की की चाहतें कितनी मासूम और जायज थीं। क्या अपने पति से प्यार, इज्जत और वफा की उम्मीद करना उसका गुनाह था? क्यों उसे अपनी मुश्किलों का हल खोजने साबरमती की गहराईयों में जाना पड़ा? क्यों आयशा और अनगिनत आयशाओं को अपने सवालों के जवाब इस जमीन पर नहीं मिल पाते? क्यों पीड़ा इतनी विकट हो जाती है कि सृष्टि की सबसे जुझारू प्राणी, एक स्त्री, हार जाती है, निढाल इतना ही कह पाती है, “बस, बहुत हुआ, अब और नहीं!”? 
 
शायद इसलिए कि बचपन से बल्कि जन्म के पहले से ही उसकी जुझारू वृत्ति और सहनशक्ति की परीक्षा शुरू हो जाती है| कदम दर कदम, हर पल, हर मोड़ पर जिंदगी नए रूप धरकर, नए इम्तिहानों के साथ हाजिर होती है और उससे उम्मीद की जाती है कि वह हर अग्नि परीक्षा में खरी उतरे, बिना चुके।  और वह जूझती है, घर में, समाज में, बराबरी के लिए, सुरक्षा के लिए, सम्मान के लिए पर जब बात प्यार की आती है, वह हार जाती है। प्यार के लिए कैसा संघर्ष, कैसा विद्रोह। प्रेम देने का पर्याय है और स्त्री देना जानती है, सर्वस्व समर्पित करती है और बदले में चाहती है, वही भरोसा और प्रेम। लेकिन जब यहां छली जाती है, तो उसका अस्तित्व बिखर जाता है। 
 
नदी के किनारे खड़े होकर हम सब यही कहेंगे, ‘आयशा कमजोर पड़ गई और बहुत-से रास्ते थे, क्यों स्त्री इतनी निर्भर हो पुरुष पर, उसके प्रेम पर। ’ लेकिन प्रेम और उसके लिए समर्पण स्त्री की नैसर्गिक वृत्ति है। वह इतना ही तो चाहती है कि कोई उसके भरोसे को दुलार और सम्मान के साथ सहेज ले।

दोनों की पूरकता ही स्वस्थ समाज की ताकत है। दहेज़ हो या घरेलू हिंसा ये सब इस प्रेम और भरोसे के लेन-देन में कमी का नतीजा है। इसीलिए आयशा के वीडियो में वह सबसे ज्यादा आहत है आरिफ के द्वारा छले जाने से, सबसे ज्यादा निराश है उसके लौटने की उम्मीद धुंधली पड़ने से। इसलिए आरिफ पर सबसे बड़ा आरोप यही होना चाहिए कि उसने एक मासूम, नेकदिल लड़की के प्रेम की हत्या की, उसके विश्वास पर आघात किया। 
 
इस महिला दिवस हम-आप इतना तो करें कि सिर्फ कुछ प्रतिशत चमकते नामों को सभी महिलाओं की कामयाबी की कहानी न बनाए। हमें यह मानना होगा कि एक साधारण गृहणी भी यदि अपने घर में प्रेम और सम्मान से परिपूर्ण है, तो वह भी समाज की, महिला सशक्तिकरण की महत्वपूर्ण और सकारात्मक घटक है।
 
 अपने घर में स्नेह, विश्वास और सम्मान का हक हर एक स्त्री का है और वह उसे अपने जीवनसाथी की आंखों की गहराई में नजर आए, तब किसी आयशा को उसकी तलाश में किसी नदी की तलहटी में नहीं जाना पड़ेगा। 


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