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वैदिक संस्कृति में नारी का स्थान : संस्कृति के चार अध्याय से साभार

हमें फॉलो करें वैदिक संस्कृति में नारी का स्थान :  संस्कृति के चार अध्याय से साभार
१. ऋग्वेद के अनुसार वधू को आशीर्वाद दिया जाता है सास ससुर देवर ननद की तुम साम्राज्ञी बनो।
 
२. नारियों को युद्ध में सारध्य करने का भी अधिकार प्राप्त था।
 
३. नारी को असाधारण विचारीका और पंडिता कहा गया है।
 
४. विवाह माता-पिता की मर्जी से नहीं, वर कन्या की अपनी पसंद से किए जाते थे।
 
५. विवाह पूर्व प्रेमी के लिए 'जार' शब्द का प्रयोग है, जो नैतिक और पवित्र माना गया है।
 
६. वर पक्ष द्वारा दहेज दिए जाने की प्रथा वैदिक काल में थी।
 
७. आप्तस्तम्ब धर्म सूत्र के अनुसार पति-पत्नी समान रूप से धन के अधिकारी हैं।
 
८. मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों को शोक में नहीं डालना चाहिए। यदि वे उदास होंगी तो कुल का नाश होगा।
 
९. इसी स्मृति के अनुसार जहां नारियों की पूजा नहीं होती वहां सारे कार्य व्यर्थ हैं।
 
१०. पुराणों के अनुसार संसार समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी ही करती है।
 
११. जो सपत्नीक है वही विश्वसनीय है।
 
१२. महिलाओं को जनेऊ पहनने का अधिकार था।
 
१३. अंतर्जातीय विवाह पर रोक नहीं थी।
 
१४. वेदों की कई ऋचाएं, नारियों की रचनाएं हैं।
 
संदर्भ: संस्कृति के चार अध्याय, रामधारी सिंह दिनकर

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