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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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जिंदगी जिंदादिली से जिएं

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- (सौ) डॉ. साधना सुनील विवरेकर
 
 
आधुनिक जिंदगी में प्रतिस्पर्धा, पैसा, पहचान बनाने की धुन में हम सब इतना दौड़ रहे हैं कि जीवन की सुख-चैन ही मानो खो रहा है। हम हर वक्त तनाव में रहते हैं जिसका असर सेहत पर पड़ रहा है व जिन भौतिक सुखों की लालसा में हम यह सब कर रहे हैं उसकी भारी कीमत चुका रहे हैं। तनाव से शरीर पर, शरीर के विभिन्न अंगों पर जो विपरीत प्रभाव पड़ता है वह कई बीमारियों को जन्म देता है और जिस शरीर को सुख-सुविधाएं देने के लिए हम आजीवन दौड़ रहे हैं वही थक-हार साथ छोड़ता है। मन तनावग्रस्त हो किसी भी सुख का आनंद नहीं उठा पाता व मन की बैचेनी रात की नींद भी हर लेती है। देखिए कितने छोटे-छोटे तनाव आपको बैचेन कर देते हैं जिन्हें स्वयं को समझा कर नकारात्मक विचारों को दृढ़ता से दूर कर प्रसन्न रहने के लिए तनावरहित जीवन जिया जा सकता है।
 
(1) प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ः- हम सब सामाजिक जीवन जीते हैं। प्रतिस्पर्धा उसका एक अभिन्न हिस्सा है। एक दूसरे से स्वयं को बेहतर साबित करना एक स्वाभाविक चाह है पर यह तभी तक जायज है जब तक वह आपको मेहनत करने व उन्नति करने हेतु प्रेरणा देती है। पर जैसे ही प्रतिस्पर्धा दूसरों को नीचा दिखाने व किसी भी कीमत पर स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए रिश्तों को दांव पर लगा केवल स्वहित में होती है वह आपको तनाव ही देगी।
 
(2) पैसा कमाने की चाहः- पैसा जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निश्चित ही महत्वपूर्ण है। पैसा बहुत कुछ हो सकता है सब कुछ नहीं। अतः अपनी-अपनी प्रतिभा व क्षमतानुसार पैसा कमाना ही चाहिए व उसके लिए मेहनत भी करनी चाहिए लेकिन हर चीज की एक सीमा होनी चाहिए। पैसों के लिए अपना ईमान गिरवी रखना, गलत तरीके से पैसा कमाना या सारी नैतिकता के मापदंड छोड़ स्वार्थ्य के लालच में पैसे को सर्वोपरि मान उसके पीछे भागना एक न एक दिन आपकी इज्जत, मान-मर्यादा सबकुछ लूट लेता है। जिनके लिए आप यह सब करते हैं उन्हें भी आपके साथ अपमान व त्रासदी भुगतनी ही होती है।
 
(3) पहचान बनाने की लालसाः- समाज में स्वयं की पहचान स्थापित करना भी एक स्वाभाविक इच्छा है जो हर इंसान में होनी ही चाहिए लेकिन उसके लिए सारे नैतिक मूल्यों को दांव पर लगाना अनुचित है। पहचान स्वयं की प्रतिभा, कार्यों को समर्पित भाव से करने व पूर्ण ईमानदारी से अपने-अपने कार्यक्षेत्र में अपना काम करते रहने से स्वयं ही बनती है व वही आपको आत्मसंतोष से भर सकती है।
 
(4) परफेक्शन का भूतः- कुछ लोगों को हर कार्य को अत्यंत उत्कृष्टता से करने का जुनून या भूत सवार होता है। जबकि उत्कृष्टता के कई मापदंड होते हैं। ऐसे लोग हर कार्य स्वयं करते हैं व तनावग्रस्त रहते हैं। अपनी तरफ से हर कार्य को सही तरीके से सही समय पर करने की मानसिकता हो लेकिन आप हर कार्य में माहिर नहीं हो सकते इस सच को स्वीकार लें।
 
(5) परवरिश बच्चों कीः- अधिकांश माता-पिता बच्चों की परवरिश करते समय अपनी अधूरी इच्छाएं, आकांक्षाएं उनके माध्यम से पूर्ण करने की चाहत रखते हैं या बार-बार यह प्रयास करते हैं कि जो सुख-सुविधाएं उन्हें नसीब नहीं हुई वे सब बच्चों को उपलब्ध कराएं, दोनों ही स्थितियों में वे बच्चों से अपेक्षाएं भी बहुत रखते हैं व जाने अनजाने एहसान दिखाते हैं जिससे बच्चे तनावग्रस्त होते हैं एवं वे स्वयं भी तनाव में जीते हैं।
 
वास्तविकता यह है कि आप बच्चों के प्रगति के मार्ग प्रशस्त करें, उनके मार्गदर्शक बनें व मेहनत से सफलता हासित करने की प्रेरणा दें पर असफलता भी जीवन का एक हिस्सा है उसे भी सहजता से स्वीकार करें। उनके पंखों को शक्ति दें व उड़ान की सराहना करें बाकि वे स्वयं सबकुछ कर ही लेंगे। इनके अलावा कई छोटे-छोटे तनाव प्रत्येक की जिंदगी में हर दिन आते हैं उनसे समझदारी व शांत चित्त से स्वयं को समझा कर ही निपटा जा सकता है। सुनने वाले के लिए ये अत्यंत हास्यास्पद हो सकते हैं पर इन पर बड़ी सरलता से विजय पाई जा सकती है।
 
(1) नौकरों का समय पर न आना या छुट्टी मारनाः- कामकाजी महिलाओं के लिए यह बहुत बड़ा तनाव का विषय हो जाता है क्योंकि समय पर कार्यस्थल पर पहुंचना जरूरी है। शांति से सोचिए तनाव करने से बेहतर है गहरी सांस लीजिए जितना हो सके व जरूरी हो काम निपटाएं बाकी शाम को और घर के सभी सदस्यों को थोड़ा-थोड़ा काम बांट दें।
 
(2) घर पर किटी या अन्य आयोजनः- कुछ महिलाएं घर पर कोई आयोजन हो या स्वयं की किटी पार्टी 2 दिन पहले से तनाव में आ जाती है। याद रखिए यह सब आपने अपने आनंद के लिए किया है फिर तनाव कैसा। थोड़ा कम व्यंजन बनाएं, ज्यादा शो ऑफ के चक्कर में न पड़े, हो सके तो किसी सहेली, भाभी, ननंद को मदद को बुला लें।
 
(3) कार्यस्थल पर समय से पहुंचने का तनावः- कार्यस्थल पर पहुंचने के समय से 15 मिनट पूर्व पहुंचने की आदत बनाएं व उस हिसाब से कामों को यथासमय से पूर्व निपटाएं, फालतू के काम छुट्टी के दिन निकालें।
 
(4) बच्चों की पढ़ाई का तनावः- स्वयं बच्चों को पढ़ाएं, उनकी प्रतिभा को पहचाने व छोटी कक्षा से ही प्रतिस्पर्धा की होड़ में लगाने की बजाए चीजों को सीखने की इच्छा जगाएं, अत्याधिक अपेक्षा न रखें।
 
(5) खर्चे का तनावः- मध्यमवर्गीय परिवारों में सीमित आय व बढ़ती महंगाई के कारण अक्सर खर्चे का तनाव होता है। बजट बनाकर किफायत से रहकर ही इससे निपटा जा सकता है। दिखावे की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाकर व जो है उसी में गुजारा करने की मानसिकता व छोटी मोटी बचत से ही गृहस्थी चलेगी। अपनी क्षमता व प्रतिभा अनुसार आय का जरिया ढूंढ़ने से ही सही मार्ग निकलेगा।
 
(6) शादी ब्याह का तनावः- शादी ब्याह जैसे आयोजन आप अपनी खुशी के लिए करते हैं। ऐसे में काम बढ़ना स्वाभाविक है। उन्हें योजनाबद्ध तरीके से, अपनी हैसियत अनुसार बजट बनाकर करने व स्नेही स्वजनों की मदद से प्रसन्नता से कीजिए।
 
(7) लोग क्या कहेंगेः- इस तरह जीवन कई छोटे-मोटे तनावों से भर जाता है। अक्सर 'लोग क्या कहेंगे' सबसे अधिक तनाव देता है। जिंदगी आपकी, परिवार आपका, इस पर लोगों को हावी मत होने दें। जिंदगी का लुफ्त उठाने, हर छोटी-बड़ी चीजों में आनंद मनाने व जिंदगी के पलों को सुमधुर बनाने का प्रयास करें। हर फिक्र को धुएं में उड़ाते हुए जिंदगी जिंदादिली से जिएं। छोटे हो या बड़े, तनावों की क्या मजाल जो आपको व्यथित कर सकें। जिंदगी को सुख-सुकून से जीने के लिए सबसे बड़ी जरूरत है समाधान, उसे पाकर जिंदगी खुशियों की सौगात बनेगी।
 

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