मनुष्य के व्यक्तित्व की पहचान उसके बातचीत करने के ढंग से होती है। भले ही कोई व्यक्ति कितना ही सुंदर हो, परंतु वाणी में कर्कशता या रुखापन हो तो वह कभी किसी को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता।
इसके विपरीत सामान्य-सा दिखने वाला व्यक्ति यदि सौम्य है और उसकी वाणी में मिठास है तो वह सहज ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेगा। उचित-अनुचित का ज्ञान रखकर बोलने से आपका व्यक्तित्व प्रभावशाली बन सकता है। इसलिए आवश्यक है। तोल-मोल के बोलना कुछ इस तरह-
अपनी आवाज पर ध्यान दें, बहुत ऊंचे स्वर में चिल्ला-चिल्लाकर न बोलें।
बोलते समय विषय का पर्याप्त ज्ञान हो इसका ध्यान रखें।
बिना सोचे-समझे कभी न बोलें। बोलते समय अवसर व स्थान का विशेष ध्यान रखें। बाजार, अस्पताल आदि में धीरे बोलें।
दो लोगों के बीच कभी न बोलें। न ही बिन मांगे अपनी सलाह दें।
दूसरों की बात ध्यान से सुनें, तभी बोलें। साथ ही उनकी रुचि का ध्यान रखकर बोलें।
बोलते समय बेवजह न हाथ नचाएं, न आंखें मटकाएं न दूसरों को छुएं या हाथ मारें।
कुछ खाते हुए कभी न बोलें। बोलते समय थूक के छींटें दूसरों पर न उड़ाएं।
किसी दूर खड़े व्यक्ति से दूर से ही चिल्लाकर बात करने की कोशिश न करें, पास जाकर बोलें।
बच्चों के स्कूल में उनकी अध्यापिकाओं आदि से शिष्टाचार से बोलें।
अपने उच्चाधिकारी होने का मान करते हुए अपने मातहतों को तुच्छ न समझें।
बच्चों के सामने उनके टीचर्स व रिश्तेदारों के लिए अपशब्द न कहें।
पद की गरिमा का ध्यान रखें। किससे, कब, क्या और कैसे कहना है, अगर आप जानते हैं तो यही बात आपको आकर्षक बनाती है।
सेवक या किसी भी बाहरी व्यक्ति से अपने घर की बातें न करें, न ही उनके सामने बहस व गाली-गलौज करें।
अपनी गलत बात को सही सिद्ध करने के लिए बहस न करें। न ही चिल्ला-चिल्लाकर उसे सही सिद्ध करने की कोशिश करें।
अपने से बड़ों के लिए अपशब्द उनकी पीठ पीछे भी न कहें।
किसी के मुंह से निकली बात का मजाक अन्य लोगों के सामने न उड़ाएं। न ही भरी महफिल में किसी को शर्मिंदा करें।
एक-दूसरे की बात इधर से उधर न करें। एक कान से सुनें, दूसरे से निकाल दें।
क्रोध के पलों में वाणी पर नियंत्रण रखें।
इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर आप अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बना सकते हैं।