विश्व में बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते महिलाओं और बच्चों पर इसका भयानक असर देखने को मिल रहा है। हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों पर इसका भयानक असर होने का खुलासा हुआ है। यह असर बच्चों की सेहत बिगाड़ रहा है जिसके चलते आने वाली पीढ़ियां भी इससे बुरी तरह से प्रभावित होंगी।
- असमय हो रहा बच्चों का जन्म।
- कम वजन के पैदा हो रहे हैं बच्चे।
- बच्चों की सेहत पर बुरा प्रभाव।
- बढ़ रही है बच्चों की मृत्यु दर।
- आने वाली पीढ़ियों का भविष्य खराब।
- गर्भपात का खतरा 41 फीसदी तक बढ़ा।
- लड़कों की अपेक्षा लड़कियों पर ज्यादा असर।
- शिशु बच्चियों की मृत्युदर ज्यादा।
- प्रदूषण से भारतीयों की आयु घट रही।
हाल ही में इसराइल की 'द हिब्रू यूनिवर्सिटी ऑफ जेरूसलम' के रिसर्चर्स द्वारा की गई स्टडी में पता चला है कि वायु प्रदूषण में रहने वाली महिलाओं के बच्चे जन्म के समय कम वजन के होते हैं और इन बच्चों की आगे चलकर सेहत भी ठीक नहीं रहती है। इस शोध में दावा किया गया है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंट हैं, कम वजन की होती हैं या फिर कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की होती हैं, उन्हें वायु प्रदूषण अधिक प्रभावित करता है। इस स्टडी का निष्कर्ष 'एन्वार्यमेंटल रिसर्च जर्नल' में प्रकाशित किया गया है।
इससे पहले अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को की कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी द्वारा की गई स्टडी में ये बात कही गई थी कि साल 2019 में वायु प्रदूषण और इससे निकलने वाले धुएं से 60 लाख बच्चों का जन्म समय से पहले हुआ था। हिब्रू विश्वविद्यालय (एचयू)-हदासाह ब्रौन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर हागई लेविन ने कहा कि यह अब स्पष्ट है कि सरकारों को व्यक्तिगत स्तर पर पर्यावरण और स्वास्थ्य डेटा को एकीकृत करने के लिए बुनियादी ढांचे को स्थापित करने की आवश्यकता है।
शोध टीम ने वायु प्रदूषक पीएम 2.5 और 2004-2015 के बीच पूरे इसराइल में पैदा हुए 3,80,000 सिंगलटन शिशुओं के जन्म के वजन के बीच संबंध को देखा। टीम ने अधिक सटीक सांख्यिकीय विश्लेषण तैयार करने के लिए व्यक्तिगत, अज्ञात डेटा और विस्तृत उच्च-रिजॉल्यूशन प्रदूषक डेटा का उपयोग किया।
इस स्टडी में ये भी बताया गया है कि वायु प्रदूषण का लंबे समय तक बुरा असर नवजात बच्ची और पहले बच्चे पर ज्यादा होता है। हालांकि इसके लिए कौन-सी जैविक प्रणाली जिम्मेदार है, उसका पता लगाना बाकी है। लेकिन इससे असमय पैदा हो रहे बच्चे और बच्चों में सेहत संबंधी समस्या आने वाली मानव जाति के भविष्य को बदलकर रख देखी। हमारी नस्लें उतनी ज्यादा मजबूत और सर्वाइवल करने वाली नहीं होंगी जैसी कि आज देखने को मिलती हैं।
इसी तरह का एक शोध जर्नल 'नेचर सस्टेनेबिलिटी' में प्रकाशित हुआ है जिसके अनुसार वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से गर्भवती महिलाओं में गर्भपात का खतरा करीब 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। इस शोध के अनुसार हवा में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सल्फर डाई ऑक्साइड से गर्भपात का खतरा 41 फीसदी तक बढ़ गया था। स्टडी से पता चला है कि जिन बच्चों का वजन जन्म के समय कम होता है, जीवन के पहले वर्ष में उनकी मृत्यु की आशंका अधिक होती है। शोध में यह भी सामने आया है कि प्रदूषण के इन महीन कणों की वजह से लड़कों की तुलना में शिशु बच्चियों की मृत्युदर में कहीं ज्यादा वृद्धि देखी गई थी।
इसी तरह का एक शोध 'जर्नल प्लोस मेडिसिन' में प्रकाशित हुआ है जिसके अनुसार वायु प्रदूषण के चलते हर साल दुनियाभर में करीब 59 लाख से अधिक नवजातों का जन्म समय से पहले ही हो जाता है जबकि इसके चलते करीब 28 लाख शिशुओं का वजन जन्म के समय सामान्य से कम था।
यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले करीब 2 करोड़ नवजातों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है, वहीं करीब 1.5 करोड़ बच्चों का जन्म समय पूर्व ही हो जाता है। यदि अभी इस स्थिति से नहीं निपटा गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह और भी खतरनाक रहेगा।
हालांकि उपरोक्त कोई भी अध्ययन भारत पर केंद्रित नहीं था। फिर भी भारत में न केवल शिशु मृत्युदर ही नहीं बल्कि साथ ही वायु प्रदूषण का स्तर भी कहीं ज्यादा है। डब्लूएचओ द्वारा जारी मानक के अनुसार भारत की 130 करोड़ की आबादी दूषित हवा में सांस ले रही है, जो उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है। 2019 में पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) का औसत स्तर 70.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा पीएम 2.5 के लिए जारी मानक से 7 गुना ज्यादा था। शिकागो विश्वविद्यालय के इनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुार भारत में वायु प्रदूषण का जो स्तर है, वो एक आम भारतीय से उसके जीवन के औसतन करीब 5.9 वर्ष छीन रहा है। -एजेंसियां