अफगानिस्तान....तालिबान, इन दिनों ये नाम दहशत जगा रहे हैं, दिल को आशंका और कुशंका से धड़का रहे हैं...सोशल मीडिया पर आती तस्वीरों और वीडियो के साथ चेतावनी चस्पा है, कि वे विचलित कर सकती हैं... हम आगे बढ़ जाते हैं लेकिन कहीं कोई सूरत अटक जाती है, कहीं कोई दर्द ठहर जाता है, कहीं कोई चीख,सिसकी,चीत्कार कानों में देर तक पिघलती रहती है....
जब भी कहीं कोई हालात बदले हैं, हैरान महिलाएं और बच्चे ही होते हैं...लेकिन इतिहास इस बात का भी गवाह है कि विषम दौर में भी स्त्री शक्ति ही मजबूत होकर निकली है, चमकी और दमकी है.... उन तकलीफदेह हालातों के बीच हम याद कर रहे हैं अफगानिस्तान की जमीन से उभरे वे नाम जिन्होंने अपने साहस और बौद्धिक कुशलता से तस्वीर ही बदल दी.... आइए डालते हैं एक नजर
*तुर्कलार की गवार्शद बेगम-गवार्शद बेगम 1370-1507 के तिरुरिद वंश के शासन के दौरान 15वीं सदी की एक जानी मानी हस्ती बनीं। उनकी शादी शासक शाहरुख तिमूरिद से हुई। वह रानी थीं लेकिन पहली बार अफगानिस्तान में महिलाओं के हक को लेकर आवाज उन्होंने उठाई। वो मंत्री भी बनीं और अफगानिस्तान में कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई।
वह कलाकारों और शायरों को आगे बढ़ाती थीं। उनके दौर में कई महिला साहित्यकारों और कवयित्रियों को अपनी प्रतिभा सामने लाने का मौका मिला। तब तिमूरिद वंश की राजधानी हेरात थी, जो उनकी अगुवाई में कला का बड़ा केंद्र बनी। इनके प्रयासों से स्थापत्य और कलाएं फलीफूलीं। जो अब भी अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में जिंदा हैं। उन्होंने धार्मिक स्कूल, मस्जिदें और आध्यात्मिक केंद्र बनवाए। गवार्शद बेगम चतुर राजनीतिज्ञ थीं। पति के
निधन के बाद उन्होंने पसंदीदा पोते को गद्दी पर बिठाकर 10 सालों तक राज किया।
*राबिया बालखाई- राबिया अफगानिस्तान के बालख में 09 सदी में राजपरिवार में पैदा हुईं। वह देश की आधुनिक पर्शियन भाषा में कविताएं लिखने वाली पहली कवियित्री थीं। उन्हें इतनी शोहरत हासिल हुईं कि दूसरे कवि उनसे इर्ष्या रखने लगे। कहा जाता है कि इसी इर्ष्या के चलते ही किसी जाने-माने पुरुष शायर ने उनकी हत्या करा दी।
हालांकि कुछ तथ्य यह भी है कि राबिया की हत्या उनके भाई राजपरिवार के एक गुलाम के साथ प्यार में पड़ने की वजह से की। वो उस गुलाम की बहादुरी पर रीझ गईं थीं। प्यार को लेकर राबिया ने जो शायरी लिखी, उसने उन्हें अफगानिस्तान के इतिहास में अमर कर दिया। उन्हें बराबरी और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक माना जाने लगा।
*रानी सोराया तारजी- रानी सोराया अफगानिस्तान की सबसे प्रभावशाली राजपरिवार की सदस्य थीं। वो अफगानिस्तान के राजा अमानुल्ला खान की बीवी थीं। जिन्होंने 1919 से 1921 तक अंग्रेजों से युद्ध करके उसे आजाद कराया था। जो उस समय अफगानिस्तान में आजाद और प्रगतिशील विचारों वाले शासक थे। सोराया ना केवल उच्च शिक्षित थीं बल्कि वो महिलाओं के अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा की पैरोकार भी थीं। उन्होंने तभी अफगानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल खोले। महिलाओं की पहली पत्रिका इरशाद ए निशवान शुरू की। उनके विचार अब भी देश की महिलाओं को प्रेरणा देते हैं।
*नादिया अंजुमा- नादिया अंजुमा 1980 में हेरात में पैदा हुईं। नादिया ने दूसरी महिलाओं के साथ भूमिगत स्कूल और साहित्यिक गतिविधियों में शिरकत शुरू की। हेरात यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मुहम्मद अली राहयाब ने उन्हें साहित्य की शिक्षा दी। ये वो दौर था जबकि तालिबान ने महिलाओं की शिक्षा पर पाबंदी लगा रखी थी। जब तालिबान का राज खत्म हुआ तब नादिया ने हेरात यूनिवर्सिटी में पढाई शुरू की। जल्दी ही वो जानी मानी कवियित्री के तौर पर पहचानी जाने लगीं। उनकी कविताओं की किताब गुल ए दाउदी प्रकाशित हुई। नादिया को तब और शोहरत मिलने लगी जब उनके चाहने वालों ने जाना कि उनके पति ने कविताएं लिखने की वजह से उनकी हत्या कर दी। अपनी मृत्यु में नादिया ने अफगानिस्तान की महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उनकी कविताओं के अनुवाद हो चुके हैं और इस पर एलबम भी बन चुके हैं।
*मलालाई काकर- लेफ्टिनेंट कर्नल मलालाई काकर कंधार में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध संबंधी विभाग की प्रमुख थीं। उन्होंने बहुत सी महिलाओं की मदद की,उन्हें बचाया, सहारा दिया। वह एक ऐसे परिवार से थीं, जहां उनके पति और भाइयों ने भी पुलिस विभाग में काम किया था। वह कंधार पुलिस एकेडमी से ग्रेजुएट होने वाली पहली महिला थीं। देश में इनवेस्टिगेटर बनने वाली भी पहली महिला थीं। वो जेंडर आधारित हिंसा पर तीखे सवाल उठाती थीं। 28 सितंबर 2008 को तालिबान के गनमैन ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। लेकिन उनकी दिलेरी, साहस के चलते अफगानिस्तान में काफी बड़ी संख्या में महिलाओं ने पुलिस और दूसरी सेवाओं में आना शुरू किया।
यह इतिहास की झलक है... लेकिन अब जबकि तालिबानी कब्जे के बाद से हालात पर आशंकित दिलों से नजर रखी जा रही है तब भी कुछ नाम उभर कर आ रहे हैं.... अफगानिस्तान की पहली फिल्म निर्देशक सबा सहर हो या सहरा करीमी.... शबनम दावरान हो या अफगानिस्तान की पहली महिला गर्वनर सलीमा मजारी, शबनम खान हो या बुशरा अलमत्वकल.. .. ये वे नाम हैं जो निडर होकर आगे बढ़ रहे हैं... हिम्मत और हौसलों के परचम लहरा रहे हैं.. तालिबान के डर के आगे घुटने टेकने के बजाए आजादी के लिए लगातार आवाज बुलंद कर रहे हैं....अफगान के हालातों को देखते हुए हम दुआ करें कि यह सूची और.. और...और ... लंबी हो...