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क्या हमारे जवानों को अपनी वर्दी खुद खरीदनी पड़ेगी? जानिए सच

हमें फॉलो करें क्या हमारे जवानों को अपनी वर्दी खुद खरीदनी पड़ेगी? जानिए सच
, सोमवार, 11 जून 2018 (14:20 IST)
सोशल मीडिया पर एक वायरल दावे को लेकर लोगों में काफी रोष है। दावा किया जा रहा है कि भारतीय सेना इस समय फंड की कमी से जूझ रही है। रक्षा बजट में कटौती के कारण हमारे सैनिकों को अपनी वर्दी खुद खरीदनी पड़ सकती है।
 
एक अंग्रेजी अखबार में एक खबर छपी थी कि केंद्र की तरफ से पर्याप्त बजट नहीं दिए जाने के कारण भारतीय सेना ने अब ऑर्डिनेंस फैक्टरियों से खरीदारी में कटौती करने का फैसला किया है। इस कटौती का असर यह होगा कि सैनिकों को अपनी वर्दी, जूतों सहित दूसरी चीजें खुद खरीदनी पड़ सकती है।
 
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बस फिर क्या था, इस खबर के हवाले से प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर दिया- ‘मेक (खोखले नारे और निरर्थक विशेषण) इन इंडिया... जबकि जवानों को अपनी वर्दी और जूते खुद खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है’।

 
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वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी पीएम मोदी को आड़े हाथों लेते हुए ट्वीट किया- ‘मोदी जी शर्म करिए विदेशों में घूमने के लिए आपके पास पैसे हैं लेकिन सेना के जवानों की बर्दी ख़रीदने के लिए आपके पास पैसा नहीं है’।



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दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने भी अपना आक्रोश जाहिर करते हुए ट्विटर पर लिखा- ‘अगर ये सच है तो शायद सैनिक के साथ किया जा रहा सबसे क्रूर मजाक है। एक सिपाही से हम कैसे कह सकते हैं कि अपने परिवार का पेट काटकर तनख्वाह में से वर्दी खरीदो। ये सेना का अपमान है’।
 
तो आइए जानते हैं, कितनी सच्चाई है इन दावों में.. 
हमारी पड़ताल में यह पता चला कि देश के जवानों को अब अपनी यूनिफॉर्म खुद खरीदनी पड़ेंगी, लेकिन यूनिफॉर्म का पैसा उन्हें अपनी जेब से नहीं भरना होगा। दरअसल, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत अब जवानों को यूनिफॉर्म अलाउंस ‍दी जाएगी। सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों पर विराम चिन्ह लगाने के लिए रक्षा मंत्रालय ने पिछले हफ्ते वकतव्य जारी यह जानकारी दी है।
 
हालांकि, यह अलाउंस सिर्फ बुनियादी वर्दी से संबंधित है। सियाचिन ग्लेशियर या पनडुब्बियों के अंदर जो विशेष कपड़ों की जरूरत होती है, उन्हें पहली की तरह मिलती रहेंगी। यह यूनिफॉर्म अलाउंस हर साल जुलाई के वेतन में जुड़ कर मिला करेगी।
 
जवानों को वर्दी की जगह यूनिफार्म अलाउंस देने का निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) से मिलने वाली वर्दी की क्वालिटी में शिकायतें आ रही थीं। साथ ही, देश के सीमावर्ती इलाकों में वर्दी सही समय पर नहीं मिलती थी। इसलिए सरकार ने तय किया कि ओएफबी अब नॉन कोर जरूरतों के बजाय सेना की कोर जरूरतों को ही पूरा करे। कोर जरूरतों में गोला बारूद, हथियार, कॉम्बैट व्हीकल्स शामिल है। यूनिफॉर्म नॉन कोर है, इसलिए ओएफबी बेसिक यूनिफॉर्म तैयार नहीं करेगी।
 
आपको बता दें कि रक्षा बजट में भी कोई कटौती नहीं की गई है, बल्कि 2017-18 में यह अब तक का सबसे ज्यादा रक्षा बजट है। अब यह साफ है कि ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों के खर्च में कटौती का सबंध फंड की कटौती से बिल्कुल नहीं है।

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