Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

नादान चेतन भगत की नादान समझ!

हमें फॉलो करें नादान चेतन भगत की नादान समझ!
-डॉ. वेदप्रताप वैदिक
 
अंग्रेजी भाषा में उपन्यास आदि लिखने वाले एक नौजवान (चेतन भगत) ने, जो हिंदी प्रेमी भी है, एक लेख लिखा है। वह लेख हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में छपा है। उस लेख में कहा गया है कि सारे हिंदी भाषी रोमन लिपि अपना लें। अपनी देवनागरी छोड़ दें। यह लेख इतना सद्भावनापूर्ण और नम्रतापूर्ण ढंग से लिखा गया है कि इस पर नाराज़ होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। मेरे पास ऐसे दर्जनों ई-मेल, फोन और व्हाट्सअप आए हैं, जिसमें इस लेखक की कड़ी भर्त्सना की गई है। इस लेखक को मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता हूं और मुझे खेद है कि उसकी कोई भी रचना मैं अभी तक पढ़ नहीं सका हूं लेकिन मैं मानता हूं कि उसने रोमन लिपि की जो वकालत की है, इसके पीछे उसका उद्देश्य यही है कि हिंदी अधिक लोकप्रिय हो और हिंदी भाषियों की सुविधा ज़रा बढ़ जाए।
 
उसका तर्क यह है कि रोमन लिपि सर्वत्र स्वीकार्य है। वह कंप्यूटर, मोबाइल फोन, व्हाट्सअप, हिंदी सिनेमा- सर्वत्र प्रयोग की जाती है। क्या इसीलिए हम सब अपनी हिंदी भी रोम में ही लिखें? यहां प्रश्न यह है कि 125 करोड़ की जनसंख्या में इस तरह की रोमन का इस्तेमाल करने वाले कितने लोग हैं? चार-पांच करोड़ भी नहीं। ये लोग कितनी रोमन इस्तेमाल करते हैं? अपने कुल कामकाज में 4-5 प्रतिशत भी नहीं। इसके अलावा अब रोमन के साथ सभी यंत्रों में देवनागरी भी उपलब्ध है।
 
लेखक का यह तर्क भी उसकी नादानी पर आधारित है कि दुनिया की कई भाषाओं की लिपि रोमन है। यदि हिंदी भी रोमन में हो जाए तो हिंदी का विस्तार हो जाएगा। या तो यह लेखक उन विदेशी भाषाओं को जानता नहीं है या उन देशों में लंबे समय तक रहा नहीं है। विभिन्न यूरोपीय भाषाएं जब रोमन में लिखी जाती हैं तो लिखे हुए नाम वगैरह तो समझ में आ जाते हैं लेकिन एक भाषा का पूरा वाक्य दूसरे भाषा भाषी को बिल्कुल भी पल्ले नहीं पड़ता। क्या रोमन में लिखी हिंदी को कोई अंग्रेज या जर्मन समझ सकता है? यदि कुछ हिंदी भाषी अपनी भाषा रोमन में लिखने लगें तो वे अपने एक अरब लोगों से अलग-थलग पड़ जाएंगे और पिछले पांच-सात हजार साल से लिखे जा रहे संस्कृत, प्राकृत, पाली, हिंदी, मराठी और नेपाली साहित्य से बेगाने हो जाएंगे। इसके अलावा यह भी न भूलें कि समस्त भारतीय भाषाओं की विभिन्न लिपियां, बारहखड़ी पर आधारित हैं। उनमें मूलभूत एकता है। वे सब कमोबेश देवनागरी पर आधारित हैं।
 
सबसे बड़ी बात यह है कि देवनागरी दुनिया की ऐसी एकमात्र लिपि है, जिसमें जो लिखा जाता है, वही बोला जाता है और जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है। प्रत्येक अक्षर के उच्चारण का स्त्रोत निश्चित है। उसमें शुद्धता है। उसका निश्चित अभिप्राय है। इसकी तुलना में रोमन का उच्चारण वैज्ञानिक नहीं है। मानक नहीं है। एक रूप नहीं है। भ्रामक है। भ्रष्ट है। जैसे बीयूटी–बट होता है तो पीयूटी-पट क्यों नहीं? ‘इनफ’ शब्द का उच्चारण चार तरीकों से हो सकता है। ‘फिश’ का उच्चारण ‘घोटी’ भी हो सकता है। रोमन और अंग्रेजी भाषा की इस अराजकता को दूर करने के लिए अंग्रेजी के महान साहित्यकार जार्ज बर्नार्ड शॉ ने अपनी जीवनभर की कमाई से एक न्यास की स्थापना कर दी थी।
 
अच्छा होता कि अंग्रेजी उपन्यासों का यह लेखक सिर्फ भारत की ही नहीं, दुनिया की सभी भाषाओं के लिए देवनागरी अपनाने की वकालत करता।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi