वट सावित्री व्रत की पूजा सामग्री लिस्ट, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
वट सावित्री के बारे में पूजा सामग्री, पूजा विधि और मुहूर्त
Vat Savitri Vrat 2024: 6 जून 2024 ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट सावित्री का व्रत रख जाएगा इसके बाद 21 जून को पूर्णिमा के दिन यह व्रत रखा जाएगा। आओ जानते हैं वट सावित्री व्रत की पूजा विधि, पूजन सामग्री की सूची और पूजा का शुभ मुहूर्त।
6 जून का प्रात: काल मुहूर्त:
अमावस्या तिथि प्रारम्भ- 05 जून 2024 को शाम 07:54 से
अमावस्या तिथि समाप्त- 06 जून 2024 को शाम 06:07 तक
ब्रह्म मुहूर्त : प्रात: 04:02 से 04:42 तक।
प्रातः सन्ध्या पूजा और आरती मुहूर्त: प्रात: 04:22 से 05:23 तक।
21 जून प्रात: काल मुहूर्त:
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 21 जून 2024 को सुबह 07:31 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 22 जून 2024 को सुबह 06:37 तक
ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: 04:04 से 04:44 तक।
प्रातः सन्ध्या पूजा और आरती मुहूर्त: प्रात: 04:24 से 05:24 तक
वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री लिस्ट- Vat Savitri Vrat Puja Samgri 2024
1. सावित्री-सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर, 2. बांस का पंखा, 3. दो बांस की टोकरी, 4. सुपारी, 5. पान, 6. नारियल, 7. लाल कपड़ा, 8. सिंदूर, 9. दूर्बा घास, 10. अक्षत, 11. जल से भरा कलश, 12. नकद रुपए, 13. लाल कलावा, 14. बरगद का फल, 15. धूप, 16. मिट्टी का दीपक, 17. घी, 18. फल (आम, लीची और अन्य फल), 19. फूल, 20. बताशे, 21. रोली (कुमकुम), 22. कपड़ा 1.25 मीटर, 23. इत्र, 24. पूड़ियां, 25. भिगोया हुआ चना, 26. स्टील या कांसे की थाली, 27. मिठाई, 28. घर में बना पकवान, 29. सुहाग का सामान, 30. कच्चा सूत आदि।
वट सावित्री व्रत पूजा विधि- Vat Savitri Vrat puja vidhi
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वट सावित्री व्रत के दिन व्रतधारी सुबह घर की साफ-सफाई करके नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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फिर पूरे घर में पवित्र जल का छिड़काव करें। तत्पश्चात बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा जी की मूर्ति की स्थापना करें।
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ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्ति की स्थापना करें।
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इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। इसके बाद ब्रह्मा जी तथा सावित्री का पूजन करें।
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फिर 'अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।' श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें।
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तत्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें।
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फिर 'यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले। तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।' श्लोक से वटवृक्ष से प्रार्थना करें।
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पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
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जल से वट वृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 3 बार परिक्रमा करें।
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बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।
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भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर सासू जी के चरण स्पर्श करें।
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यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
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पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
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फिर- 'मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं,सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।' बोलते हुए उपवास का संकल्प लेकर व्रत रखें।
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फिर वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान की कथा को पढ़ें, सुनें अथवा सुनाएं।
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मान्यानुसार इस तरह पूजन करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।