* भवन निर्माण में दिशा का महत्व जानिए...
भूखण्ड का चयन करते समय जिस प्रकार भू-स्वामी को वास्तु शास्त्र में वर्णित शुभाशुभ का ध्यान रखना आवश्यक होता है, उससे भी कहीं अधिक भवन निर्माण के समय ध्यान रखना चाहिए। मकान निर्माण में दिशाओं का अपना अलग ही महत्व है।
जानिए दिशाओं के अधिपति व उनका फल -
दिशा |
अधिपति |
फल |
1. उत्तर |
कुबेर |
धन्य-धान्य की वृद्धि। |
2. दक्षिण |
यम |
शोक। |
3. पूरब |
|
इन्द्र देव |
अभ्युदम। |
4. पश्चिम |
वरुण देव |
जल की कभी कमी नहीं रहेगी। |
5. ईशान |
ईश्वर धर्म, |
स्वर्ग प्राप्ति। |
6. आग्नेय |
अग्नि |
तेजोभिवृद्धि। |
7. नैऋत्य |
निवृत्ति |
शुद्धता-स्वच्छता। |
8. वायव्य |
वायु |
वायु प्राप्ति। |
9. ऊर्ध्व |
|
ब्रह्मा |
आध्यात्मिक। |
10. भूमि अन्न, |
भू-संपदा |
सांसारिक सुख। |
ये दसों दिशाओं के स्वामी हैं, दिग्पाल हैं, अतः प्रत्येक काम में सफलता के लिए अधिपति की प्रार्थना करना भूलना नहीं चाहिए।
जिस दिशा का अधिपति हो, उसके स्वभाव के अनुरूप उस दिशा में कर्म के लिए भवन में कक्षों का निर्माण कराए जाने पर ही वास्तु संबंधी दोषों से बचा जा सकता है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, पंच तत्व को अपने भवन के अधीन बनाना ही सच्चे अर्थों में वास्तु शास्त्र का रहस्य होता है।
इसलिए मकान बनाते समय उपरोक्त पंच तत्वों के लिए जो प्रकृति जन्य दिशाएं निर्धारित हैं, उन्हीं के अनुरूप दिशाओं में कक्षों का निर्माण किया जाना चाहिए। प्रकृति के विरूद्ध किए गए निर्माण से रोग, शोक, भय आदि फलाफल प्राप्त होते हैं।
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