आशिक़ी से मिलेगा ए ज़ाहिद बन्दगी से खुदा नहीं मिलता ------ दाग़असद ख़ुशी से मेरे हाथ पाँव फूल गए ----------कहा जब उसने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब के लगाए न लगे, और बुझाए न बुझे इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के तुम हो क्या ये तुम्हें मालूम नहीं है शायदतुम बदलते हो तो मौसम भी बदल जाते हैं हमारे क़त्ल को मीठी ज़ुबान है काफ़ीअजीब शख़्स है ख़ंजर तलाश करता है नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए,पंखुड़ी इक गुलाब की सी है।----------------- मीरकम से कम दो दिल तो होते इश्क़ मेंएक रखते एक खोते इश्क़ में -----------मीर सब ग़लत कहते थे लुत्फ़-ए-यार को वजहे-सुकूँदर्द-ए-दिल उसने तो हसरत और दूना कर दिया-------हसरत मोहानी हक़ीक़त खुल गई हसरत तेरे तर्क-ए-मोहब्बत की तुझेतो अबवो पहले से भी बढ़ कर याद आते हैं ---हसरत मोहानी
दिल गया रोनक़-ए-हयात गई
ग़म गया सारी कायनात गई---------जिगर मुरादाबादी
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझको नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद -----जिगर मुरादाबादी
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो------------------फ़िराक़
एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऎसा भी नहीं -------------फ़िराक़
नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती,
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं।
हमें तो शाम-ए-ग़म में काटनी है ज़िन्दगी अपनी,
जहाँ वो हैं वहीं ऎ चाँद ले जा चान्दनी अपनी।------------शे'री भोपाली
आबादियों में दश्त का मंज़र भी आएगा,
गुज़रोगे शहर से तो मेरा घर भी आएगा।---------नौशाद
मोहब्बत एक ऐसा खेल है जिसमें मेरे भाई
हमेशा जीतने वाले परेशानी में रहते हैं
आज भी हम रह गए हसरत से उसको देखकर
पूछना ये था कि आखिर वो खफ़ा है किसलिए
बहुत ख़ूबसूरत है मेरा सनम
ख़ुदा ऎसे मुखड़े बनाता है कम
मुझे जान से भी प्यारा मेहबूब मिल गया है
जीने का ये सहारा क्या ख़ूब मिल गया है
याद रक्खो तो दिल के पास हैं हम
भूल जाओ तो फ़ासले हैं बहुत
मैंने तो यूँही राख में फेरी थीं उंगलियाँ
देखा जो ग़ौर से तेरी तस्वीर बन गई
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं ------फ़ैज़
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए------------- फ़ैज़
गरज कि काट दिए जिंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में - फिराक़
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले - दुष्यंत कुमार
तुम्हारे पाँव के कांटे निकाल दूँ आओ
मगर ये राह में किसके लिए बिछाएथे --------अख़्तर नज़मी
क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े
घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके -------अख़्तर नज़मी
यूँ ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
दिल को सुकून रूह को आराम आ गया
मौत आ गई कि यार का पैग़ाम आ गया