Agra News: उत्तर भारत के लोग आसमान की ओर देखकर रहम की गुहार लगा रहे हैं। आसमान से गिरती लगातार बारिश राहत कम और आफत ज़्यादा बन गई है। पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रहीं, वहीं मैदानी इलाकों में नदियों का उफान जिंदगी पर भारी पड़ रहा है। दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश और हिमाचल की घाटियां जलजमाव और बाढ़ के संकट से जूझ रही हैं। हर तरफ पानी ही पानी दिखाई दे रहा है।
इस संकट की सबसे चौंकाने वाली तस्वीर आगरा से सामने आई है, जहां यमुना का रौद्र रूप अब ताजमहल के ऐतिहासिक परिसर तक पहुंच गया है। प्रेम और स्थापत्य का यह विश्व विख्यात प्रतीक अब खुद एक प्राकृतिक आपदा का गवाह बन गया है।
महताब बाग जलमग्न, सुरक्षा पिकेट हटी : यमुना का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। इसके चलते ताजमहल के ठीक पीछे स्थित महताब बाग जलमग्न हो गया है। यहां तक कि घाटों की सीढ़ियां तक पानी में डूब चुकी हैं। स्थिति को देखते हुए वहां तैनात पीएसी और पुलिस बल को हटा लिया गया है। यमुना किनारे के इलाकों में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया है और ड्रोन से निगरानी की जा रही है।
151.400 मीटर पर पहुंचा जलस्तर, खतरे की घंटी : बाढ़ नियंत्रण विभाग के अनुसार, बुधवार को यमुना का जलस्तर 151.400 मीटर दर्ज किया गया — जो कि खतरे के निशान से ऊपर है। हालात को और भयावह बनाता है यह तथ्य कि हथिनी कुंड बैराज से 3.5 लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा गया है, जिससे शुक्रवार तक जलस्तर 152 फीट तक पहुंचने की आशंका है। यह स्तर तय करता है कि हालात बाढ़ में कब बदलते हैं और अब प्रशासन उसी मोड़ पर खड़ा है। एडीएम फाइनेंस ने जानकारी दी कि यमुना किनारे की बस्तियों, कॉलोनियों और गांवों को खाली कराया जा रहा है। राहत और बचाव कार्य जोरों पर है, लेकिन चुनौती बड़ी है।
प्रेम की निशानी पर कुदरत की मार : ताजमहल सिर्फ एक स्मारक नहीं, बल्कि एक युग का इतिहास है। लेकिन यमुना का उफान अब इसके अस्तित्व को चुनौती दे रहा है। महताब बाग में भरा पानी महज एक चेतावनी है कि अगर जलवायु और नदियों के साथ हमारा संतुलन नहीं बना, तो इतिहास खुद को मिटते हुए देखेगा।
गांव खाली, सैकड़ों बेघर : यमुना किनारे बसे गांवों और शहरी बस्तियों को खाली कराया जा रहा है। लोग अपने घरों से निकलकर राहत शिविरों में शरण ले रहे हैं। खेत डूब चुके हैं, फसलें बरबाद हो रही हैं, और ग्रामीणों के चेहरों पर चिंता की लकीरें गहराती जा रही हैं। जिन इलाकों में कभी नावें नहीं देखी गईं, वहां अब हर रोज़ पानी में जीवन ढोया जा रहा है।
पिनाहट और चंबल में हालात चिंताजनक : आगरा के पिनाहट और चंबल नदी के किनारे बसे गांवों में भी बाढ़ जैसे हालात बन चुके हैं। कई इलाकों में स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। राहत कैंपों में भोजन, पानी और दवाइयों की व्यवस्था की जा रही है, लेकिन यदि स्थिति और बिगड़ती है तो भीड़ और संसाधनों के बीच सामंजस्य बनाना प्रशासन के लिए चुनौती होगा।
चिंता का विषय यह है कि यदि हमने आज नदियों, वर्षा और पर्यावरण के संतुलन को नहीं समझा, तो कल इतिहास में हम सिर्फ "स्मारकों को डूबते देखने वाली पीढ़ी" के रूप में याद किए जाएंगे।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala