लखनऊ। उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव को लगभग 10 महीने का समय अभी बाकी है लेकिन जैसे-जैसे समय नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे तमाम राजनीतिक पार्टियां छोटे दलों को अपनी ओर छोड़ने की तैयारियों में लगे हुए हैं। किसी भी बड़े दल की राजनैतिक समीकरण बिगाड़ने में छोटे दलों को उत्तर प्रदेश के अंदर बड़ी महारत हासिल है।
इस बात का अंदाजा सत्ता के शीश पर बैठी भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ समाजवादी पार्टी,कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी को भी है। सभी राजनीतिक पार्टियां छोटे दलों के संपर्क में बनी हुई है और उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर नए गठबंधन की तैयारियां कर रही हैं।
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में हुए चुनावों पर अगर नजर डालें तो यूपी की राजनीति में छोटे दलों का काफी असर रहा है इन दलों ने बड़ी-बड़ी पार्टियों के राजनीतिक समीकरण तक बिगाड़ दिए हैं। जिसको लेकर कोई भी पार्टी उत्तर प्रदेश के अंदर होने वाले 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर खतरा मोल नहीं लेना चाहती है।
संपर्क साधने में जुटी पार्टियां - कुछ राजनीतिक पार्टियों के सूत्रों की मानें तो जैसे-जैसे 2022 विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे वैसे भारतीय जनता पार्टी के साथ समाजवादी पार्टी तेजी के साथ छोटे दलों से गठबंधन करने को लेकर छोटे दलों के नेताओं से मुलाकात का दौर शुरू हो गया है। इसका खासा असर पूर्वांचल में देखने को मिल रहा है जहां पर जातिगत राजनीति का असर ज्यादा देखने को मिलता है। ऐसे में छोटे दल बड़े दल के लिए चुनाव बिगाड़ने का काम करते हैं।
ऐसे में कोई भी पार्टी चुनाव बिगड़ते हुए नहीं देखना चाहती है जिसके चलते छोटे दलों के दरवाजों पर बड़े दलों के वरिष्ठ नेताओं का आवागमन शुरू भी हो गया है सूत्र बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के साथ समाजवादी पार्टी भी ऐसे गठबंधन को जोड़ने में जुटी हुई है।
सबसे कमाल की बात यह देखने को मिल रही है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे भारतीय जनता पार्टी से कई गुना ज्यादा छोटे दलों के नेता समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पर भरोसा जताते हुए नजर आ रहे हैं।
माना जा रहा है कि 2022 का चुनाव अखिलेश यादव किसी बड़े दल के साथ गठबंधन करके नहीं लड़ने वाले हैं।ऐसी स्थिति में छोटे दलों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी का सामना करने की तैयारी कर रहे हैं। वही कांग्रेस भी पीछे नहीं है और छोटे दलों को मिलाने का प्रयास में लगी हुई हैं। यूपी में कमजोर पड़ चुकी कांग्रेस इन दलों के साथ मिलकर खुद को प्रदेश में मजबूत करने की कोशिश में जुटी हुई है।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पहले ही अकेले चुनाव लडने की बात कह चुकी हैं। जिसके चलते अभी तक किसी भी छोटे दल को अपनी पार्टी से जोड़ने का प्रयास बहुजन समाज पार्टी की तरफ से किया ही नहीं जा रहा है अब देखने वाली बात यह है कि कमजोर हो रहे संगठन को 2022 के चुनाव में मजबूती के साथ बहुजन समाज पार्टी कैसे खड़ा कर पाती है।
क्या बोलें राजनीतिक जानकार - 30 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रहे व एक सम्मानित समाचार पत्र के संपादक राजेश श्रीवास्तव बताते हैं कि छोटे दलों से गठबंधन करना बड़े दलों की मजबूरियां है। छोटे दल बड़े दलों के समीकरण को बिगाड़ने का काम करते हैं। कई बार तो देखने को मिलता है कि छोटे दलों के कारण ही कई बार मजबूत प्रत्याशियों को भी हार का सामना करना पड़ता है। इसलिए कोई भी पार्टी 2022 के चुनाव में खतरा मोल नहीं लेना चाहती है।
उत्तर प्रदेश में वैसे भी राजनीति जातिगत समीकरण से बाहर निकल नहीं पा रही है। इसका फायदा छोटे दलों को मिलता है। कई बार कुछ ऐसे छोटे दल होते हैं जो एक वर्ग विशेष को अपने साथ जोड़ कर लेकर चलते हैं और जिस पार्टी को उनका समर्थन होता है उस पार्टी को उस विशेष वर्ग के वोट का फायदा भी मिलता है।
अगर यह छोटे दल बड़े दल के सामने प्रत्याशी उतार दें तो कई बार समीकरण तक बदल जाते हैं। कई बार तो इन छोटे दलों के कारण बड़ी पार्टियों को हार का सामना भी करना पड़ता है। अब ऐसे में अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखने वाले छोटे दलों को एक कर पार्टी में लाना बेहद जरूरी हो जाता है। सभी पार्टियों के लिए जिसको देखते हुए सभी पार्टियां 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से तैयारियों में जुट गई है। यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा कि छोटे दल किस पार्टी पर ज्यादा भरोसा जताते हैं।