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गोरखपुर के महेश शुक्ला इस तरह बन गए 'झाड़ू बाबा'

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गिरीश पांडेय

, बुधवार, 26 अप्रैल 2023 (08:30 IST)
नाम है महेश शुक्ला, पर लोग इनको 'झाड़ू बाबा' के नाम से जानते हैं। झाड़ू लगाना इनका पैशन है। साल के 365 दिन ये सुबह कहीं-न-कहीं झाड़ू लगाते मिल जाएंगे। झाड़ू बाबा मूल रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनात के शहर गोरखपुर से हैं। शाही मार्केट गोलघर में उनकी कम्प्यूटर की दुकान है।
 
उनके मुताबिक लोग प्यार से उनको 'झाड़ू बाबा' कहते हैं, पर नाम से गफलत में मत पड़िए। इनका झाड़ू चुनाव चिन्ह वाली पार्टी से दूर-दूर तक कोई ताल्लुक नहीं है। मुस्कराते हुए वे बताते हैं कि मैं तो 2008 से झाड़ू लेकर घूम रहा हूं। केजरीवाल तो मेरे बाद आए हैं। सच तो यह है कि मेरी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है। सालभर बिना नागा झाड़ू लगाना मेरा पैशन है। मूल काम कम्प्यूटर का है।
 
यह कहना है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर के शास्त्री नगर मोहल्ले के रहने वाले महेश शुक्ला का। वे बड़ी साफगोई से स्वीकार करते हैं कि झाड़ू बाबा बनाने में कहीं-न-कहीं से गोरखनाथ मंदिर की भूमिका रही है।
 
झाड़ू बाबा के मुताबिक गोरखपुर का होने के नाते सबकी तरह मैं भी अक्सर गोरखनाथ मंदिर आता-जाता रहा हूं। मंदिर के विस्तृत परिसर की चकाचक सफाई मुझे अच्छी लगती थी। सोचता था कि क्या ऐसी सफाई जहां मैं रहता हूं, वहां भी संभव है?
 
दरअसल मैं जिस गली में मेरा घर है, उसमें करीब 30-40 और परिवार रहते हैं। मेरे घर के बाजू में एक बिजली का पोल था। पूरी गली का कूड़ा लोग वहीं डाल जाते थे। भोजन की तलाश में जानवर उसे और बिखेर देते। बहुत बुरा लगता था। मना करने पर लोग लड़ने लगते। चूंकि कूड़े के निस्तारण का काम अमूमन महिलाएं करती हैं, लिहाजा उनसे बहुत बहस भी मुनासिब नहीं थी।
 
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लग गई पत्नी की बात : बकौल महेश शुक्ला एक बार जयपुर जा रहा था। बगल की सीट पर एक किताब पड़ी थी। उसमें गांधीजी एवं स्वच्छता के बाबत कुछ जिक्र था। उसे दिखाते हुए पत्नी ने कहा कि सफाई करनी है तो गांधीजी से सीख लो। वे खुद करते थे। बात जंची, पर झिझक का क्या करता?
 
जयपुर से लौटने पर उसी झिझक के नाते देर रात झाड़ू से कूड़े को बटोरकर गोला बना देता। तड़के 4 बजे उठकर उसे साफ कर देता। प्रयास रहता कि कोई मेरे इस काम को देखे नहीं।
 
बाजूजूद धीरे-धीरे कानोकान लोगों को पता चला। घरों में इस बात पर चर्चा होने लगी। हमारा कूड़ा शुक्लाजी उठाते हैं, पाप लगेगा। उच्च कोटि के ब्राह्मण जो ठहरे। चर्चा के साथ ही कुछ महीनों में आधे लोगों ने पोल के पास कूड़ा फेंकना बंद कर दिया। इससे मुझे प्रेरणा भी मिली। काम भी कम हुआ। फिर मैंने एक बड़ी झाड़ू खरीदी और पूरी गली में झाड़ू लगाने लगा।
 
यह देख 3-4 महिलाओं को छोड़ मेरे घर के पास कोई और कूड़ा नहीं फेंकता था। अब वह जैसे ही वह कूड़ा फेंकती, मैं उसे साफ करने लगता। ऐसे में उनके घर से ही विरोध होने लगा। लिहाजा उन्होंने भी कूड़ा फेंकना बंद कर दिया। इस सबमें करीब 6 से 7 महीने लगे। मेरी गली मेरी पहल और लोगों के प्रयास से चमनाचमन हो गई। फिर मैंने मुख्य सड़क और पार्कों का रुख किया।
 
इस बीच केंद्र में सरकार बदल गई। नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। उन्होंने 'स्वच्छता अभियान' शुरू किया। प्रतीकात्मक रूप से ही सही, खुद कई जगह झाड़ू लगाते एवं सफाई करते दिखे। उनको देख औरों ने भी किया। अखबारों में मंदिर परिसर में ऐसा करते हुए योगी आदित्यनाथ की भी फोटो छपी। यह देखकर मेरा हौसला बढ़ा। झिझक बिलकुल दूर हो गई। लोगों में मेरे काम की चर्चा भी होने लगी। मंच मिलने लगा और कई सम्मान भी मिले। तब मुझे आश्चर्य हुआ कि जिस काम को झिझक से शुरू किया, वह मेरी प्रतिष्ठा की वजह बन रहा है।
 
फिर मैंने कार में आ सके, इस हिसाब से 6 फोल्डिंग झाड़ू बनवाई। इतने ही लॉन्ग बूट, ड्रेस, गलव्स, कैप और लोगों से मेरे इस काम में साथ देने की अपील के लिए एक माइक सिस्टम भी खरीदा। लगातार 6 महीने तक तय समय पर वहां झाड़ू लगाने पहुंच जाता था। लोगों ने न केवल सराहा बल्कि साथ भी दिया। अब वहां रविवार एवं गुरुवार को जाता हूं, बाकी दिन भी चिन्हित जगहों पर झाड़ू लगती रहती है।
 
झाड़ू एवं सफाई का किट कार का अनिवार्य हिस्सा : कार में झाड़ू एवं बाकी किट पड़ी रहती है। जहां भी कार से जाता हूं, सुबह की दिनचर्या झाड़ू से ही शुरू होती है। सफाई के लिहाज से श्रेष्ठतम शहरों में शुमार इंदौर की व्यवस्था को देखने वहां जा चुका हूं। लोग मेरे काम को जानें, उससे जुड़ें, इसके लिए मैंने सुबह-सुबह रामगढ़ ताल के किनारे झाड़ू लगाने का फैसला लिया। बच्चों को बताया तो वो बोले कि हम भी चलेंगे। आप झाड़ू लगाइए और लगवाइएगा, हम तो बाकी लोगों जैसे घूमेंगे।
 
फिर तो यह सिलसिला ही बन गया। हफ्ते में 2 दिन तय समय पर जाता हूं। मेरे साथ और भी इस काम में सहयोग करते हैं। इसमें गणमान्य नागरिक से लेकर वरिष्ठ प्रशासनिक अफसर तक शामिल हैं। मैं चाहता हूं कि मेरा भी शहर इंदौर जैसा साफ-सुथरा बने, पर बिना जागरूकता एवं जनसहयोग के यह संभव नहीं। यही मेरा मकसद भी है।
 
Edited by: Ravindra Gupta

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