Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

दशहरा स्पेशल : कानपुर में रावण का 155 साल पुराना मंदिर, वर्ष में एक बार खुलते हैं पट, जुड़ी है बड़ी मान्यता

हमें फॉलो करें दशहरा स्पेशल : कानपुर में रावण का 155 साल पुराना मंदिर, वर्ष में एक बार खुलते हैं पट, जुड़ी है बड़ी मान्यता

अवनीश कुमार

, बुधवार, 5 अक्टूबर 2022 (13:23 IST)
कानपुर। उत्तरप्रदेश में आज धूमधाम के साथ दशहरे पर्व मनाया जा रहा है और रावण दहन की तैयारियां चल रही हैं। यहां एक ऐसा जिला है जहां पर रावण दहन से पहले साल में एक बार खुलने वाले रावण के मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है और हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बड़े ही धूमधाम के साथ रावण के मंदिर में पूजा-अर्चना की गई है। भारी संख्या में क्षेत्रीय लोग के साथ-साथ दूरदराज के जिलों से लोग इस पूजा में शामिल हुए।
 
155 साल पहले हुई थी मंदिर की स्थापना : पूरे प्रदेश में और देश में जहां जय श्रीराम के नारे लग रहे हैं तो वहीं कानपुर के कैलाश मंदिर शिवाला जहां माता छिन्नमस्ता मंदिर के द्वार पर रावण का मंदिर है। 155 साल से प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी साल में एक बार खुलने वाले रावण के मंदिर में रावण के जयकारों की गूंज है। मंदिर में पुजारी व अन्य लोगों ने बड़े ही धूमधाम के साथ रावण की पूजा-अर्चना करने के बाद प्रसाद वितरित करते हुए नजर आ रहे हैं।
webdunia
पुजारी बताते हैं कि यहां पर स्व. गुरुप्रसाद शुक्ला करीब 155 साल पहले मंदिर की स्थापना कराई थी। इस मंदिर शिव और शक्ति के बीच रावण का भी मंदिर है और रावण की प्रतिमा स्थापित है। उन्होंने बताया कि ऐसी मान्यता है कि रावण शक्तिशाली होने के साथ प्रकांड विद्वान पंडित होने के साथ शिव और शक्ति का साधक था और उसकी नाभि में अमृत था।
 
भगवान श्रीराम ने जब उसकी नाभि को बाण भेदा तो तो रावण धरती पर आ गिरा था लेकिन उसकी मृत्यु नहीं हुई थी। इसके बाद खुद भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी को रावण के पास ज्ञान प्राप्ति के लिए भेजा था। इसके बाद से कानपुर में रावण दहन से पहले साल में एक बार रावण के मंदिर के पट खुलते हैं और लोग बल, बुद्धि, दीर्घायु और अरोग्यता का वरदान पाने के लिए जुटते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। 
 
महाआरती : दशहरे के दिन रावण के मंदिर के कपाट खुलते हैं और भक्तों की भीड़ इकट्ठी होती है।  इस दौरान रावण के श्रृंगार के साथ दूध, दही, घृत, शहद, चंदन, गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद महाआरती होती है और लोगो सरसों के तेल का दीपक जलाने के साथ लोग पुष्प अर्पित कर साधना करते थे। महाआरती पूर्ण होने के बाद 1 साल के लिए पुनः कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जम्मू-कश्मीर : महबूबा मुफ्ती का दावा- घर में नजरबंद किया गया, श्रीनगर पुलिस ने ट्‍वीट कर दिया जवाब