कॉलेज की तरह खेती में भी लंबी दौड़ के धावक साबित हुए इंद्रप्रकाश

गिरीश पांडेय
कॉलेज के दिनों में इंद्रप्रकाश सिंह लंबी दौड़ के धावक थे। इस रूप में वह इंटर यूनिवर्सिटी गेम्स में 800 मीटर के गोल्ड मेडलिस्ट थे। वर्ष 1988 में वाराणसी के यूपी कॉलेज से हॉर्टिकल्चर में एमएससी एजी करने के बाद खेती में भी उन्होंने खुद को लंबी रेस का धावक साबित किया। परंपरागत खेती से इतर आलू की खेती को केंद्र में रखकर जो सिलसिला शुरू हुआ उसमें उन्होंने अपनी शिक्षा के अनुरूप अपने खेत को ही प्रयोगशाला बना डाला।

अब वह सिर्फ आलू की खेती पर केंद्रित नहीं हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर जिस कृषि विविधीकरण बाजार देखकर खेती, तकनीक के समन्वय के साथ जैविक खेती करने की सलाह  किसानों को देते हैं, इंद्रप्रकाश उसके जीवंत प्रमाण हैं। इंद्रप्रकाश मुख्यमंत्री योगी के शहर गोरखपुर के एक छोटे से कस्बे जानीपुर से हैं। 
 
गर्मी के मौजूदा सीजन में उनके करीब 13 बीघे खेत लता वर्ग की सब्जियों और टमाटर की हरियाली से ढके हैं। सब्जियां भी सामान्य प्रजाति की नहीं। बिल्कुल उन्नतिशील प्रजाति की। अमूमन मौसमी रोगों के प्रति प्रतिरोधी एवं भरपूर उपज वाली। 
 
इसमें खरबूज, तरबूज, खीरा, टमाटर, लौकी आदि हैं। हर फसल की प्रजातियों की कुछ न कुछ खूबी है। मसलन खुशी प्रजाति का खीरा अगेती एवं बेहतर फलत के लिए जाना जाता है। इसकी फसल तैयार है। रोज सुबह का तोड़ा खीरा पास की मंडी में चला जाता है।
 
कुछ पीले एवं नारंगी रंग का येलो स्क्वैश (कद्दू की ही प्रजाति) हरे-भरे खेत में कुछ अलग ही दिख रही हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में वीटा कैरोटीन मिलता है। मेट्रो सिटीज में इसके भाव प्रति कोलोग्राम 300 रुपए के करीब हैं। यहां मात्र 50 रुपए। पीले रंग का खूबसूरत तरबूज मीठा तो होता ही है। इसमें बीज नहीं होते। भूषण नाम की लौकी भरपूर उपज के लिए जानी जाती है। गोभी की नर्सरी डाली जा चुकी है। इसके पहले आलू की फसल ले चुके हैं। चाहे कुफरी नीलकंठ हो या अन्य कोई नई प्रजाति सबके लिए उनका खेत प्रयोगशाला जैसा है।
जैविक तरीके से करते हैं कीटों एवं रोगों का नियंत्रण : इंद्रप्रकाश का भरसक प्रयास रहता है कि कीटों एवं रोगों का नियंत्रण जैविक तरीके से हो। ताकि इनके रोकथाम में जहरीले रसायनों का प्रयोग न्यूनतम हो और उत्पाद स्वास्थ्य के लिए बेहतर हों। इसके लिए पूरे खेत में जगह -जगह बांस की फट्टियों पर पीले एवं हरे रंग की चिपकने वाली पॉलीथिन लगाए हैं।
 
इसी तरह नर कीटों को आकर्षित करने के लिए मादा की गंध वाली जैविक तरीकों का उपाय कर रखे हैं। मादा के गफलत में नर इस ट्रैप में फंसकर दम तोड़ देता है। नर के न रहने पर स्वाभाविक तरीके से प्रजनन चक्र रुकने से इन पर जैविक नियंत्रण हो जाता है। इसी तरह खेत में जगह-जगह गेंदे के फूल लगे हैं। बकौल इंद्रप्रकाश इससे टमाटर में लगने वाले निमीटॉड नामक कीट का नियंत्रण हो जाता है। साथ ही इनके फूलों पर मधुमक्खियों एवं तितलियों के आने से सभी फसलों के परागण में वृद्धि से बेहतर फलत से उपज भी। आसपास के किसानों को भी इसका लाभ मिलता है।
 
योगी सरकार की मदद के बिना यह संभव नहीं था : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार के सहयोग के बाबत उनका कहना है कि बिना सरकार के सहयोग के गर्मी में श्रम साध्य सब्जी की इतनी खेती मेरे लिए असंभव थी। सरकार की योजना से ही न्यूनतम लागत से मैं ड्रिप एवं स्प्रिंकलर लगा सका। इसकी वजह से सिंचाई एवं श्रम की लागत बहुत कम हो गई। अब पूरे खेत की सिंचाई में मात्र 6 घंटे लगते हैं। सिंचाई के परंपरागत तरीके से एक दिन में मात्र दो बीघे की सिंचाई हो पाती थी। इसके लिए 2 श्रमिक लगते थे। अब पूरे खेत की सिंचाई मात्र 6 घंटे में हो जाती है।
 
इस तरह हमारा समय एवं संसाधन दोनों बचते हैं। 60 से 90 फीसद पानी की बचत बोनस है। पूरे खेत की पॉलीथिन से मल्चिंग मेड पर बोआई और जरूरत के अनुसार ड्रिप से सिर्फ पौधों को पानी मिलने के नाते खर पतवारों का भी जैविक तरीके से नियंत्रण हो जाता है। इस सबसे मेरा ढेर सारा श्रम बच जाता है। लागत कम होने से लाभ बढ़ जाता है।
 
उनके अनुसार किसान किसी भी स्थिति में कुछ भी पैदा कर सकता है। बस उसे बाजार में अपनी उपज का वाजिब दाम मिलना चाहिए। योगी सरकार इज़के लिए हर संभव प्रयास भी कर रही हैं। सरकार के कमिटमेंट के अनुसार प्रोसेसिंग इकाइयां लग जाएं तो खेतीबाड़ी का कायाकल्प हो जाएगा। किसानों को भी परंपरागत खेती की जगह बाजार देख कर खेती करनी होगी। उत्पाद को जैविक बनाना होगा। कोरोना के बाद लोगों में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ी जागरूकता किसानों के लिए एक अवसर भी है।
 
साल के आठ महीने 15 लोगों को देते हैं रोजगार : साल के आठ महीने वह 12 से 15 लोगों को रोजगार देते हैं। इनमें भी 80 फीसद महिलाएं होती हैं क्योंकि नर्सरी डालना, उनको सुरक्षित खेत तक पहुचाना, नाजुक पौधों का रोपण, निराई, तुड़ाई और सुरक्षित पैकिंग के मुख्य काम वह पुरुषों की अपेक्षा बेहतर कर लेती हैं।
 
हालांकि खेती इन्होंने पारिवारिक मजबूरी में 2003 से शुरू की थी। खानदानी परिवार से ताल्लुक रखने वाले उनके पास खेती ठीकठाक थी। आज नाम के अनुरूप इनकी खेती का प्रकाश दूर-दूर तक फैला है। उत्तर प्रदेश के प्रगतिशील किसानों में इनका शुमार होता हैं। जिले से प्रदेश स्तर तक के ढेरों पुरस्कार इसके प्रमाण हैं।

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