प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया है कि अब इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाई जाएगी। पीएम मोदी ने उसकी एक तस्वीर भी शेयर की है कि नेताजी की फोटो कहां लगाई जाएगी। साथ ही पीएम मोदी ने ट्विटर के जरिए कहा है कि जब तक नेताजी बोस की भव्य प्रतिमा बनकर तैयार नहीं हो जाती, तब तक उनकी होलोग्राम प्रतिमा उसी स्थान पर मौजूद रहेगी।
बता दें कि दिल्ली में जहां इंडिया गेट बना है, वहां आसपास एक बड़ा सा पार्क है। इस पार्क में ही ये छतरी बनी है, जो इंडिया गेट के सामने है। बता दें कि जब इंडिया गेट बनकर तैयार हुआ था तब इसके सामने जार्ज पंचम की एक मूर्ति लगी हुई थी।
इसे बाद में ब्रिटिश राज के समय की अन्य मूर्तियों के साथ कोरोनेशन पार्क में स्थापित कर दिया गया। यह 1960 के दशक तक यहां लगी थी और 1968 में इसे हटाया गया था। अब जार्ज पंचम की मूर्ति की जगह प्रतीक के रूप में केवल एक छतरी भर रह गई है, जहां अब नेताजी की प्रतिमा लगाई जाएगी।
कौन थे जॉर्ज पंचम?
जॉर्ज पंचम यूनाइटेड किंगडम के किंग थे और ब्रिटिश भारत में 1910 से 1936 तक यहां के शासक भी थे। जॉर्ज के पिता महाराज एडवर्ड सप्तम की 1910 में मृत्यु होने पर वे महाराजा बने। वे एकमात्र ऐसे सम्राट थे जो कि दिल्ली दरबार में, खुद अपनी भारतीय प्रजा के सामने प्रस्तुत हुए। जहां उनका भारत के राजमुकुट से राजतिलक हुआ।
जॉर्ज को उनके अंतिम दिनों में प्लेग और अन्य बीमारियों की वजह से मौत हो गई थी। साथ ही उन्होंने पहले विश्व युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। उस दौरान वो ऐसे किंग थे, जिन्होंने अस्पताल,फैक्ट्रियों का दौरा किया था, जिसके बाद उनका आदर और भी बढ़ गया था। साथ ही इंडिया गेट का भी विश्व युद्ध से कनेक्शन है, इसलिए उनकी मूर्ति यहां लगाई गई थी।
क्या है इंडिया गेट का इतिहास?
इंडिया गेट स्मारक ब्रिटिश सरकार द्वारा 1914-1921 के बीच अपनी जान गंवाने वाले ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों की याद में बनाया गया था। करीब अपने फ्रांसीसी समकक्ष के समान, यह उन 70,000 भारतीय सैनिकों को याद करता है, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी थी। स्मारक में 13,516 से अधिक ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम हैं जो पश्चिमोत्तर सीमांत अफगान युद्ध 1919 में मारे गए थे।
इंडिया गेट की आधारशिला उनकी रॉयल हाइनेस, ड्यूक ऑफ कनॉट ने 1921 में रखी थी और इसे एडविन लुटियन ने डिजाइन किया था। स्मारक को 10 साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने राष्ट्र को समर्पित किया था।