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काम की बात : क्यों ठगाते हैं हम उपभोक्ता के रूप में ?

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प्रियंका अथर्व मिश्र

अभी कुछ ही दिन पहले संक्रांति का त्यौहार सभी ने खूब धूम धाम से मनाया।  सभी ने तिल, गुड़, पतंग, दानार्थ वस्तुएं खरीदी। कोरोना काल के बाद बाजारों में महिलाओं की रौनक देख कर अच्छा अनुभव हुआ। हमारा ध्यान एक दुकान की ओर आकर्षित हुआ क्योंकि वहां एक महिला और दुकानदार में बहस हो रही थी। खूब भीड़ एकत्रित हो गई थी। मालूम हुआ कि पहले तो महिला ने बिल नहीं लिया और अब दुकानदार से सामान गड़बड़ देने का आरोप लगा रही है।  दुकानदार बार बार बिल लाने की बात कर रहा है। 
 
ये कहानी केवल उस महिला की ही नहीं है, ऐसा हम आप और सभी के साथ कभी न कभी होता है या अक्सर होता है। कई तरह की बेईमानी कर उपभोक्ताओं को मूर्ख बनाया जाता है। चीटिंग आए दिन किसी न किसी उपभोक्ता के साथ होती ही रहती है। इसलिए सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 बनाया और जबकि आज ऑनलाइन खरीदी का जोर है सो अधिनियम 2019 भी बनाया गया। ऑनलाइन खरीदी में भी कई प्रकार की बेईमानी व धोखा-धड़ी सामने आईं है। 
 
अधिनियम की विशेषता यह है कि इसमें केवल एक उपभोक्ता ही केस दायर कर सकता है. इसलिए अब यह प्रश्न उठता है कि उपभोक्ता किसे माना जाए?
 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 के अनुसार कौन कौन व्यक्ति उपभोक्ता है?
 
1. उपभोक्ता वह व्यक्ति है जिसने रुपये का भुगतान करके कुछ खरीदा हो। 
2.एक व्यक्ति जिसने खुद कोई सामान खरीदा नहीं है, लेकिन खरीदार की अनुमति से सामान का उपयोग करता है, वह भी उपभोक्ता है। 
3. जो व्यक्ति सामान को बेचने के उद्देश्य से खरीदता हो वह उपभोक्ता नही है। 
4. स्व-रोजगार के लिए सामान खरीदने वाला व्यक्ति उपभोक्ता है। 
 
 निम्न लोग भी उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं:
 
1. वह व्यक्ति जो कि वस्तु या सेवा का लाभार्थी हो
2.मृतक उपभोक्ताओं के कानूनी वारिस
3. उपभोक्ता के पति/पत्नी
4. उपभोक्ता के रिश्तेदार
क्या कोई उपभोक्ता खुद शिकायत दर्ज कर सकता है?
 
जी हां, इसके लिए उपभोक्ता को वकील करने की जरुरत नहीं है। उपभोक्ता स्वयं अपने केस दर्ज करा सकता है। यहां तक कि एक आम आदमी जिसने कानून की पढाई नहीं की है वह भी अपनी शिकायत स्वयं दर्ज करा सकता है। 
 
हम भी अक्सर बिल न तो लेते हैं, और अगर हमारे परिचित की दुकान है तो हम ही उन्हें मना भी कर देते हैं। बिल मांगने की जरुरत ही क्यों है, जबकि बिल देने का दायित्व तो दुकानदारों का भी उतना ही है। बिल न देने से दुकानदार बहुत से दायित्वों से बच जाता है और हम कई अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। हम कभी कोशिश ही नहीं करते कि जानें कि उपभोक्ता के रूप में हमारे अधिकार और दायित्व क्या-क्या हैं? 
 
पहले जानें कि हम उपभोक्ताओं को सामान खरीदते समय किन किन बातों का ध्यान आवश्यक रूप से रखना चाहिए –
 
1 सबसे पहले किसी भी वस्तु खरीदते समय उसकी तारीख, वजन एवम् मूल्य जांच लेवे। 
 
2 इसी के बाद यह भी सुनिश्चित करें कि वह सामान असली है, क्योंकि आजकल बाजारों में नकली सामान खूब धड़ल्ले से बिक रहा है वो भी बिना किसी रोकटोक के। 
 
3 ख़रीदे सामान का बिल अवश्य रूप से लें क्योंकि अगर बिल न हुआ तो न ही हम सामान वापिस कर सकेंगे और इससे दुकानदार अपने दायित्वों से भी बचा होगा। 
 
4 सभी उपभोक्ताओं को अपनी पसंद के सामान खरीदने का अधिकार है। 
 
5 दुकानदार की ओर से गलत सामान एवं अनुचित मूल्य लेने पर हम शिकायत भी कर सकते हैं। 
 
7 गलत सामान देने एवं गलत सामान बेचने के लिए हम दुकानदार के खिलाफ क्लेम भी कर सकते हैं। 
 
  उपभोक्ता अदालत में केस दर्ज करने की प्रक्रिया इस प्रकार है:
 
स्टेप 1.
पहले फोरम के न्यायक्षेत्र की पहचान करें जहां शिकायत दर्ज की जानी है। इसका निर्धारण करने के दो तरीके हैं:-
1. वस्तु या सेवा प्रदाता की दुकान या सेंटर किस क्षेत्र में है। 
2. वस्तु या सेवा की कीमत कितनी है। 
 
 उपभोक्ता मंचों का आर्थिक क्षेत्राधिकार इस प्रकार है
 
फोरम : जिला मंच
 
धनराशि : 20 लाख रुपए तक का केस
 
फोरम : राज्य आयोग
 
धनराशि : 20 लाख से 1 करोड़ तक का केस
 
फोरम : राष्ट्रीय आयोग
 
धनराशि : 1 करोड़ से अधिक का केस
 
उपभोक्ता को वकील करने की जरुरत नहीं है। उपभोक्ता/आम आदमी स्वयं अपने केस दर्ज करा सकता है। यह तो हुई एक सामान्य और संक्षिप्त जानकारी। इनके विवरण और केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सी.सी.पी.ए.) 2019 की जानकारी के साथ मिलेंगे अगली किश्त में। जो हम सभी के लिए अनिवार्य है,ताकि उपभोक्ता के रूप में हम धोखा-धड़ी के शिकार होने से बचाव कर सकें। 

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