बॉलीवुड की एक फिल्म का डायलॉग है- हारकर जीतने वाले को ही बाजीगर कहते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के लिए यह डायलॉग पूरी तरह फिट बैठता है। दरअसल, अमेरिका में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार हारकर भी चुनाव जीत सकता है।
अमेरिका में ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार हो चुका है। संभवत: अमेरिका दुनिया का एकमात्र ऐसा अनोखा देश है, जहां राष्ट्रपति चुनाव में हारा हुआ उम्मीदवार भी चुनाव जीत जाता है।
हारकर व्हाइट हाउस में सत्तासीन होने की नजीर हालिया वर्षों में वर्ष 2000 की है जब अल गोर, जार्ज बुश से अधिक वोट पाने के बावजूद चुनाव हार गए थे। यहां ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उम्मीदवार को इलेक्टोरल वोट्स में बहुमत पाना होता है।
हर अमेरिकी राज्य के उसकी आबादी के लिहाज से इलेक्टोरल वोट्स तय हैं और जो भी उम्मीदवार जिस राज्य में अधिक मत पाता है, ये सारे इलेक्टोरल वोट्स उसी उम्मीदवार को मिल जाते हैं।
यह व्यवस्था इस प्रकार काम करती है कि यदि वर्जीनिया राज्य में जिस भी उम्मीदवार को बहुमत मिलेगा, इलेक्टोरल कॉलेज के सारे वोट भी उसे ही मिलेंगे।
वर्ष 2000 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में अल गोर ने जॉर्ज बुश से 5 लाख अधिक मत हासिल किए, लेकिन इलेक्टोरल वोट्स की कुल गिनती में पीछे रह गए और चुनाव हार गए।
इस प्रकार की घटना 1880 में भी पेश आई थी जब तत्कालीन राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड को सर्वाधिक पॉपुलर वोट मिले, लेकिन उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी बेंजामिन हैरीसन को 233 इलेक्टोरल वोट मिले जो क्लीवलैंड (168) को पीछे छोड़ गए।
इससे 12 साल पहले भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुई थी जब तत्कालीन राष्ट्रपति पॉपुलर वोट जीतने में नाकामयाब रहे। 1824, 1876 और 1888 में भी इसी प्रकार की घटनाएं सामने आई थीं।
एक उम्मीदवार को जीतने के लिए 270 इलेक्टोरल वोट्स चाहिए, लेकिन ऐसी स्थिति भी आ सकती है जब दोनों उम्मीदवारों को समान मत मिलें। ऐसे हालात में कांग्रेस की प्रतिनिधि सभा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का फैसला करती है।