ग़म से कहाँ ऎ इश्क़ मफ़र* है------- छुटकारा
रात कटी तो सुबहा का डर है
तर्के-वफ़ा को मुद्दत गुज़री
आजभी लेकिन दिलपे असर है
आईने में जो देख रहे हैं
ये भी हमारा हुस्ने-नज़र है
ग़म को ख़ुशी की सूरत बख़्शी
इसका भी सेहरा आपके सर है
लाख हैं उनके जलवे जलवे
मेरी नज़र फिर मेरी नज़र है
तुमही समझ लो तुम हो मसीहा* ---हकीम, डॉक्टर
मैं क्या जानूँ दर्द किधर है
आज बफ़ैज़े-नुकता शनासाँ* ------ किसी बात को गहराई से समझने वाला
तंग अदब की राहगुज़र है
फिर भी शकील इस दौर में प्यारे
साहिबे-फ़न है, एहले-हुनर है