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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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मखदूम की ग़ज़लें

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1.
आपकी याद आती रही रात भर
'चश्मेनम' मुस्कुराती रही रात भर---- (भीगी आँखें)

रात भर दर्द की शम्मा जलती रही
ग़म की लव थरथराती रही रात भर

बांसुरी की सुरीली सुहानी 'सदा'-------- (आवाज़)
यादें बन बन के आती रही रात भर

याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चाँदनी जगमगाती रही रात भर

कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज़ आती रही रात भर

2. वो जो छुप जाते थे काबों में सनमखानों में
उनको ला-ला के बिठाया गया दीवानों में

फ़स्ल-ए-गुल होती थी, क्या जश्न-ए-जुनूँ होता था
आज कुछ भी नहीं होता है गुलिस्तानों में

आज तो तलखिए दौराँ भी बहुत हलकी है
घोल दो हिज्र की रातों को भी पैमानों में

आज तक तंज़-ए-मोहब्बत का असर बाक़ी है
क़हक़हे गूंजते फिरते हैं बियाबानों में

वस्ल है उनकी अदा, हिज्र है उनका अन्दाज़
कौन सा रंग भरूँ इश्क़ के अफ़सानों में

शहर में धूम है इक शोला नवा की 'मखदूम'
तज़किरे रस्ते में, चरचे हैं परीखानों में

3. आप की याद आती रही रात भर
चश्मेनम मुस्कुराती रही रात भर

रात भर दर्द की शम्मा जलती रही
ग़म की लो झिलमिलाती रही रात भर

4. बढ़ गया बादाएगुल्गूँ का मज़ा आखिरेशब
और भी सुर्ख है रुखसार-ए-हया आखिरेशब

उसी अन्दाज़ से फिर सुबहा का आंचल ढलके
उसी अन्दाज़ से चल बाद-ए-सबा आखिरेशब

गुल है क़न्दील-ए-हरम, गुल हैं कलीसा के चिराग़
सू-ए-पैमाना बढ़े दस्त-ए-दुआ आखिरेशब

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