Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

उर्दू साहित्य-संस्कृति को बयां करती किताब

Advertiesment
हमें फॉलो करें उर्दू साहित्य-संस्कृति को बयां करती किताब

भाषा

जाने-माने उर्दू कवि और आलोचक शमसुर रहमान फारुकी ने अपनी किताब ‘द सन दैट  रोज फ्रॉम द अर्थ’ में 1857 की लड़ाई में ‘कंपनी बहादुर’ के हाथों हार के बावजूद 18वीं और  19वीं सदी में उत्तर भारतीय शहरों दिल्ली और लखनऊ में उर्दू साहित्य संस्कृति के संपन्न बने रहने  की कहानी बयां की है।

पिछले महीने ही आई उनकी एक अन्य किताब ‘द मिरर ऑफ ब्यूटी’ दक्षिण एशियाई साहित्य के  लिए 50 हजार डॉलर के डीएससी पुरस्कार के लिए सूचीबद्ध हुई थी। इसमें भी 19वीं सदी की उर्दू  साहित्य संस्कृति का उल्लेख किया गया है।
 
पहली बार 2001 में ‘सवार और दूसरे अफसाने’ के रूप में उर्दू में प्रकाशित और खुद फारुकी द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित की गई किताब 1999 से 2012 के बीच 5 कहानियों का संग्रह है जिनमें एक जैसी खोज है।
 
कहानियां यद्यपि काल्पनिक हैं, लेकिन ये उर्दू साहित्य की मिर्जा गालिब, मीर तकी मीर, शेख मुशाफी,  बुद्धसिंह कलंदर, कांजीमल साबा जैसी ऐतिहासिक हस्तियों की भावना से परिपूर्ण हैं और ये 18वीं- 19वीं सदी की पृष्ठभमि की हैं।
 
इनमें से कुछ 1857 की घटना के तत्काल बाद की हैं जिससे यह किताब ऐतिहासिक फिक्शन की  श्रेणी में आ जाती है। कहानियां इन जाने-माने उर्दू कवियों की ऐतिहासिक मान्यता के इर्द-गिर्द गढ़ी  गई हैं।
 
उनकी कहानियों में उर्दू कवियों की रचनाओं की झलक दिखती है और ये उस मिथक को तोड़ने के  लिए विविध हिन्दू-मुस्लिम पृष्ठभूमि से ली गई हैं, जो यह कहती है कि उर्दू मुसलमानों की भाषा है।  बुद्धसिंह कलंदर, कांजीमल साबा, इखलास ये सभी हिन्दू थे। 
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi