एक रोज़ बादशाह चन्द मुसाहिबों के साथ आम के बाग ' हयात बख्श ' में टहल रहे थे-साथ में गालिब भी थे-
आम के पेडों पर तरह-तरह रंगबिरंगे आम लदे हुए थे- यहां का आम बादशाह और बेगमात के सवाय किसी को मोयस्सर नहीं आ सकता था-
गालिब बार बार आमोँ की तरफ गौर से देखते थे- बादशाह ने पूछा 'गालिब इस क़दर गौर से क्या देखते हो'-
गालिब ने हाथ बाँध कर अर्ज़ किया 'पीरोमुरशद, देखता हूं कि किसी आम पर मेरा या मेरे घर वालों का नाम भी लिखा है या नहीं-
बादशाह मुस्कुराएं और उसी रोज़ एक टोकरा आम गालिब के घर भेज दिए।