नोट :-- मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल है "दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है" इस ग़ज़ल के शे'रों के सानी (दूसरे) मिसरों को तो वही रखा गया है लेकिन ऊला मिसरों (पहले मिसरों) को बदल दिया गया है। इस तरह ये ग़ज़ल हज़ल हो गई है और उसमें तंज़-ओ-मिज़ाह का रंग शामिल हो गया है।
तू ये रेह-रेह के चीख़ता क्या है
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
इश्क़ का केंसर है बरसों से
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
खा रहा हूँ मैं मार बीवी की
या इलाही ये माजरा क्या है
मुझ पे बेलन भी तुम उठाव मगर
काश पूछो के मुद्दुआ क्या है
पाऎं वो तमग़ा-ए-वफ़ादारी
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
लानतें भेजता हूँ दुनिया पर
मैं नहीं जानता दुआ क्या है
मय का पीना हराम है वाहिद
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है
वाहिद अंसारी की ईद
ईद के दिन हो गई बेगम से अनबन दोस्तो
चल गया आपस में डंडा और बेलन दोस्तो
शीर-ख़ुरमा और सिवय्याँ हों मुबारक आपको
अपनी क़िस्मत में लिखा है ग़म का सालन दोस्तो
बेबसी, बेचारगी के हर पराठे पर लगा
अपनी हर झूटी हंसी का है पलेथन दोस्तो
एश-ओ-इशरत की हमें बिरयानी क्या होगी नसीब
हमने तो अब तक न पाई उसकी खुरचन दोस्तो
हर तरफ़ जश्न-ए-बहाराँ, हर तरफ़ रंग-ए-निशात
सूना-सूना है हमारे दिल का आगन दोस्तो
ईद के नख़रे उठाने के लिए बतलाएँ क्या
बिक गए वाहिद के घर के सारे बरतन दोस्तो