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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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नज़्म---'निसार करूँ'

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शायर : मेहबूब राही

Aziz AnsariWD
हसीन फूलों की रानाइयाँ निसार करूँ
सितारे चाँद कभी, कहकशाँ निसार करूँ
बहार पेश करूँ गुलसिताँ निसार करूँ
जहाने-हुस्न की रंगीनियाँ निसार करूँ
ज़मीं निसार करूँ आसमाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ

ये सबज़ाज़ार ये बदमस्त चाँदनी रातें
ये रंग-ओ-नूर ये रानाइयों की बारातें
ये इत्र इत्र हवाएँ ये भीगी बरसातें
शबाब-ओ-हुस्न की सारी हसीन सौग़ातें
निशात-ओ-नूर में डूबा समाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ

ये मेरे ख़्वाब मेरी हसरतें मेरे अरमाँ
ये मेरा हुस्ने-तख़य्युल ये मेरा ज़ोरे-बयाँ
मेरे जहाने-ख़्यालात की मताए गिराँ
ये मेरे गीत मेरी शायरी मेरा दीवाँ
मैं अपने ज़हन की जोलानियाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ

ग़ज़ल है साज़ है या साग़र-ए-शबाब है तू
गुलों की बज़्म में खिलता हुआ गुलाब है तू
मता-ए-हुस्न है तू पैकर-ए-शबाब है तू
किसी अज़ीम म्सव्विर का एक ख़्वाब है तू
तख़ैयुलात की परछाइयाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ

मैं क्या हूँ मेरे अशआर की बिसात है क्या
मेरे ख़ुलूस मेरे प्यार की बिसात है क्या
मेरी वफ़ा मेरे ईसार की बिसात है क्या
मेरी मता-ए-दिले-ज़ार की बिसात है क्या
तेरी हसीन अदाओं पे जाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ

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