कोरोना की तीसरी लहर के चलते पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रचार वर्चुअल चल रहा है। विधानसभा चुनाव प्रचार को लेकर निर्वाचन आयोग आज राज्यों के मुख्य सचिवों और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की। चुनावी राज्यों में क्या रैलियों, बड़ी जनसभाओं और रोड शो को इजाजत दी जाए या नहीं, इसे लेकर चुनाव आयोग आज बड़ी बैठक कर रहा है। अनुमान जताया जा रहा है कि रैलियों और बड़ी जनसभाओं पर चुनाव आयोग प्रतिबंध एक और हफ्ते के लिए और बढ़ा सकता है। वहीं राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार के लिए थोड़ी रियायत और दी जा सकती है।
वर्चुअल चुनाव प्रचार को लेकर सबसे अधिक सवाल देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में उठ रहे है। उत्तर प्रदेश में सात चरणों में हो रहे विधानसभा चुनाव में पहले चरण में 10 फरवरी जो जिन 59 सीटों पर मतदान होना है वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले है। पहले चरण में शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, हापुड़, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मथुरा, आगरा और अलीगढ़ जिले की 58 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है।
ऐसे में अब इन सीटों पर जब चुनाव प्रचार के लिए चंद्र दिन ही शेष बचे है तब अब यह चर्चा में शुरु हो गई है कि वर्चुअल चुनाव प्रचार होने का और चुनावी रैली बंद होने का नफा-नुकसान किसी पार्टी विशेष के पक्ष में रहा।
वर्चुअल चुनाव प्रचार को लेकर वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र प्रताप कहते हैं कि मुझे लग नही रहा कि इसका कोई बहुत विपरीत असर यूपी में मुख्य विपक्षी ताकत समाजवादी पार्टी पर पड़ रहा है। इसकी आशंका सभी को थी कि चुनाव घोषणा के साथ यह सब होगा ही। हालांकि देखा जाए तो भाजपा के लोग भी जत्थों में घूम रहे हैं उन्हें कोई रोकने वाला नहीं। सपा ने कोविड 2 के दौर से ही जो जमीनी रणनीति अपनाई थी (भले ही वो लोगों को दिखी नहीं या देखना नहीं चाहा) उसी पर चल रही है। हालांकि यह भी सच है कि जिस तरह पिछले दिनों कई बड़े नेता सपा में शामिल हुए हैं और जैसी बातें उनके मंच से आई हैं अपनी जमात के लिए वह रैलियों के जरिये सीधे उनकी जनता तक पहुंच पाता तो हालात कुछ और होते।
चुनाव आयोग के वर्चुअल चुनाव प्रचार पर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी सवाल उठा चुकी है। वर्चुअल चुनाव प्रचार के दौर में सोशल मीडिया पर वीडियो, मीम्स के साथ ऐसे वर्चुअल कंटे की बाढ़ आ गई है जो चुनाव में वोटरों के ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे है।
राजनीतिक विश्लेषक नागेंद्र प्रताप कहते हैं कि वर्चुअल चुनाव के दौर में भाजपा सोशल मीडिया पर एक्टिव है। रोज नए सन्देश आ रहे हैं लेकिन उनका जोर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पर ज्यादा है। तौकीर रजा के वीडियो को जिस तरह प्ले किया गया यह उसी का प्रमाण है। हालांकि तौकीर के वीडियो की बातों को भी जस्टीफाई तो नहीं किया जा सकता। एक बात जरूर अच्छी हो रही है कि भाजपा की लाख कोशिशों के बावजूद विपक्ष खासतौर से समाजवादी पार्टी या अखिलेश अभी तक इससे बचे हुए हैं। चुनाव तेजी से अगड़ा बनाम पिछड़ा में तब्दील हो रहा है।
उत्तर प्रदेश में पहले चरण में 10 फरवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन जिलों में मतदान है जहां पर किसान आंदोलन का खासा प्रभाव था। चुनाव तारीखों के एलान से पहले मेरठ में अखिलेश और जयंत चौधरी की रैली में जिस तरह से भीड़ दिखाई दी थी उसके बाद पश्चिमी उत्तरप्रदेश में चुनावी समीकरण के भाजपा के विपरीत जाने के कयास लगाए जा रहे थे। ऐसे में क्या वर्चुअल चुनाव प्रचार ने भाजपा की मुसीबतें कहीं न कहीं कम कर दी है।
वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र प्रताप कहते हैं इस बात से पूरी तरह सहमत नजर आते है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के चलते भाजपा की चुनावी रैलियों के फ्लॉप होने और भाजपा नेताओं के विरोध होने का खतरा साफ था और कहीं न कही वर्चुअचल चुनाव प्रचार का फैसला एंटी भाजपा के महौल को रोकने की रणनीति के तहत हुआ भी है। चुनावी रैलियों में भाजपा का विरोध तय था और इससे नुकसान बढ़ जाता। वैसे भाजपा के लिए पश्चिम से भी बड़ी चुनौती पूरब से आ रही है।