Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: योगी आदित्यनाथ के दबाव में क्या अखिलेश यादव को लड़ना पड़ रहा है करहल से चुनाव?

हमें फॉलो करें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: योगी आदित्यनाथ के दबाव में क्या अखिलेश यादव को लड़ना पड़ रहा है करहल से चुनाव?

BBC Hindi

, शनिवार, 22 जनवरी 2022 (08:01 IST)
अनंत झणाणे, बीबीसी हिंदी के लिए, लखनऊ से
उत्तर प्रदेश का करहल विधानसभा क्षेत्र काफ़ी लम्बे समय से समाजवादी सीट रही है। समाजवादी पार्टी के बाबू राम यादव और सोबरन सिंह यादव यहाँ से विधायक रह चुके हैं।
 
सिर्फ़ 2002 से लेकर 2007 तक ये सीट भाजपा के पास रही है लेकिन सोबरन सिंह यादव ने ही इसे भाजपा के लिए जीता था और बाद में वो समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। तब से लगातार वो यहां के विधायक बने हुए हैं।
 
करहल का चुनाव 20 फ़रवरी को तीसरे चरण में होने जा रहा है। अखिलेश यादव के करहल से लड़ने की समाजवादी पार्टी ने कोई आधिकारिक घोषणा या प्रेस रिलीज़ या ट्वीट नहीं जारी की है।
 
लेकिन पार्टी के पुराने नेता और अखिलेश यादव के क़रीबी राजेंद्र चौधरी ने इस ख़बर की पुष्टि की है। जब बीबीसी ने राजेंद्र चौधरी से पुछा कि क्या अब यह पक्की बात है और आगे जाकर सीट बदलने का कोई विचार तो नहीं है तो उन्होंने कहा, "कोई आज़मगढ़ या दूसरी जगह से लड़ने की अब बात नहीं है। करहल से ही लड़ेंगे।"
 
यादवों का गढ़ है करहल
करहल विधान सभा की सीट में कुल 55 फ़ीसदी पिछड़े वर्ग के मतदाता हैं, 20 प्रतिशत सवर्ण, 20 प्रतिशत अनुसूचित जाती और पाँच प्रतिशत मुसलमान वोटर हैं। इस सीट पर कुल 38 प्रतिशत यादव वोटर हैं।
 
इस सीट पर 1989 से समाजवादी पार्टी का दबदबा रहा है। यह उत्तर प्रदेश के मैनपुरी ज़िले की सीट है और यहाँ के ऐतिहासिक मोटामल मंदिर से महाराजा पृथ्वीराज चौहान का जुड़ाव रहा है।
 
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने करहल के जैन इंटर कॉलेज से ही शिक्षा हासिल की थी और वे यहां पर शिक्षक भी रहे। मुलायम सिंह का पैतृक गांव सैफ़ई करहल से महज़ चार किलोमीटर की दूरी पर है।
 
इस सीट पर सपा का सात बार क़ब्ज़ा रहा है। साल 2017 विधान सभा के चुनावों में पार्टी के पुराने नेता सोबरन सिंह यादव ने भारतीय जनता पार्टी के रमा शाक्य को 40 हज़ार के बड़े मार्जिन से शिकस्त दी थी। करहल में कुल तीन लाख 71 हज़ार मतदाता हैं जो इस बार अखिलेश यादव की क़िस्मत तय करेंगे।
 
क्या दबाव में आकर लड़ रहे हैं अखिलेश चुनाव?
इस सीट के चयन के बारे में उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "करहल एक तरह से मुलायम और अखिलेश का घर है और वहां सारी रिश्तेदारियां हैं। करहल से लड़ना और सैफ़ई से लड़ना एक ही बात है। सैफ़ई से वो शायद इसलिए नहीं लड़ना चाहते हैं क्योंकि वो जसवंतनगर में आता है जो उनके चाचा शिवपाल यादव की सीट है।"
 
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि ये एक सुरक्षित सीट है लेकिन इतनी भी नहीं क्योंकि जिस तरीक़े से मुलायम सिंह अपने क्षेत्र में काम करते थे और इलाक़े के लोगों से रिश्ते बना कर रखते थे, अखिलेश की छवि शायद ऐसी नहीं है।
 
लेकिन यह बात ज़रूर है कि वहां पर यादवों का सेंटीमेंट सपा के साथ में है। लेकिन यहाँ से जीतना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि विपक्ष भी वहां पर मज़बूती से लड़ेगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या सिराथू से विधान सभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
 
भाजपा ने दोनों का नाम पहली लिस्ट में ही घोषित कर दिया था। योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव दोनों एमएलसी बन कर मुख्यमंत्री बने थे और इस बार के चुनाव में दोनों से यह उम्मीदें थीं कि जनता के बीच जाकर चुनाव लड़कर अपनी लोकप्रियता प्रमाणित करके दिखाएँ। 
 
तो क्या राजनीतिक दबाव में आकर अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया? रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "चुनाव लड़ के वो अपनी पार्टी के चुनावी अभियान को गंभीरता देने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले एक साल से वो लगातार कह रहे हैं कि वो भाजपा को पराजित करने जा रहे हैं और सत्ता में लौट रहे हैं। तो ऐसा करने से वो अपनी मुख्यमंत्री की दावेदारी को और मज़बूत बना रहे हैं। करहल से लड़ने की वजह से वो प्रदेश भर में प्रचार कर सकेंगे क्योंकि परिवार वाले करहल को संभाल लेंगे। वहां उनको ज़्यादा प्रचार करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"
 
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का अखिलेश यादव के करहल से चुनाव लड़ने के फ़ैसले के बारे में कहते हैं, "अखिलेश जी ग़लतफ़हमी में हैं कि उनको लगता है कि पिता की छाँव में जाकर वो मैनपुरी से चुनाव जीत जायेंगे। लेकिन उन्हें आंकड़े पहले देखने चाहिए थे।"
 
मैनपुरी के लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने 2014 के मुक़ाबले में 2019 में उल्लेखनीय बढ़त हासिल की थी। 2019 में बीजेपी प्रत्याशी को 44 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे जो 2014 के मुक़ाबले 11 प्रतिशत ज़्यादा थे। और यह तब हुआ जब मुलायम सिंह के लिए व्यक्तिगत तौर पर अपील करने मायावती जी साथ में गईं थीं, वहां बसपा का गठबंधन साथ में था। तो मुलायम सिंह यादव जी जैसे बड़े नेता की ऐसी स्थिति हुई मैनपुरी में तो मैनपुरी के बदलते हुए तापमान को शायद अखिलेश जी भांप नहीं पाए हैं। करहल में हम उनकी साइकिल पंचर करेंगे।
 
समाजवादी पार्टी करहल को पारिवारिक सीट बता रही है। पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफ़ीज़ गाँधी का कहना है, "पार्टी का करहल से इमोशनल कनेक्ट रहा है क्योंकि नेताजी यहाँ से लोक सभा लड़ते आ रहे हैं। नेताजी यहाँ पर पढ़े भी हैं और पढ़ाया भी है। तो समाजवादी पार्टी के लिए यह एक स्पेशल सीट है।

2002 को छोड़ कर जब से पार्टी बनी है 1993 से लेकर अब तक हम वहां से कोई चुनाव हारे नहीं है। हमें 49 प्रतिशत वोट मिला है हर बार। यहाँ से लड़ने से इसके आस पास की सभी सीटों पर और पड़ोस के ज़िलों की सीटों पर जैसे एटा, कासगंज, इटावा, फ़िरोज़ाबाद यहाँ पर भी सपा के पक्ष में माहौल बनेगा।"
 
तो अब जब अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ दोनों मैदान में उतर चुके हैं अब देखना यह है कि दोनों पार्टियां इन नेताओं के चुनाव को चुनौती देने के लिए किसे मैदान में उतारती हैं।
 

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कोरोना से मौत पर मुआवजे में देरी पर सुप्रीम कोर्ट नाराज