Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

सपा के बागी कहीं पार्टी को ग्रहण न लगा दें?

हमें फॉलो करें सपा के बागी कहीं पार्टी को ग्रहण न लगा दें?

संदीप श्रीवास्तव

, सोमवार, 27 फ़रवरी 2017 (12:30 IST)
उत्तरप्रदेश में 2012 के चुनाव के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जबरदस्त भारी बहुमत हासिल किया था व प्रदेश में सपा की सरकार भी बनी और 5 वर्ष का कार्यकाल भी पूरा किया, किंतु कार्यकाल के अंतिम समय में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में अंतरकलह मच गई।
पार्टी में अंतरकलह के साथ-साथ पार्टी नेतृत्व के परिवार में भी अंतरकलह मची रही जिससे पार्टी, सरकार व प्रदेश तीनों पर काफी प्रभाव पड़ा। उसी दौरान कितने ही पार्टी से निकाले गए  और कितने ही अपने भी हुए और इसी दौरान विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी भी चयनित  होने लगे जिसमें कई दावेदारों को मायूसी का भी सामना करना पड़ा और कुछ ने पार्टी छोड़  दूसरे दल से नाता जोड़ लिया, जो कि सपा के भविष्य को देखते हुए ठीक नहीं है।
 
सपा के कुछ बड़े नेताओं जैसे अम्बिका चौधरी, नारद राय, रामगोबिंद चौधरी, उमाशंकर आदि ने साइकिल से उतरकर हाथी को अपना साथी बना लिया है। इन्हीं सूरमाओं के बलबूते सपा को गाजीपुर, बलिया, देवरिया, मऊ, सुल्तानपुर व आजमगढ़ जिलों में बड़ी चुनौती पेश होगी, साथ  ही सपा के बागी भी सपा विरोधी ताकतों को समर्थन देने में पीछे नहीं हैं।
 
सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव के करीबी कहे जाने वाले बाहुबली मुख्‍तार अंसारी की पार्टी  कौमी एकता दल का बहुजन समाज पार्टी में विलय हो जाना व मुख्‍तार सहित उनके अपनों को  बसपा से टिकट भी दिए जाना सपा के लिए शुभ नहीं है। सपा में बड़ा ब्राह्मण चेहरा कहे जाने  वाले विजय मिश्रा भी सपा से नाता तोड़ चुके हैं वहीं सुल्तानपुर के पूर्व सांसद शकील अहमद  भी सपा से खफा हैं।
 
इतना ही नहीं, मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में भी असंतुष्टों की संख्या कम नहीं है। इतनी विषम परिस्थितियों में सपा की चुनौतियां कम नहीं हैं। इन सभी का सामना पार्टी को ही करना होगा, क्योंकि इन्हें मनाना आसान नही होगा। वैसे तो राजनीति में सब जायज है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बस्ती की पांचों विधानसभा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला