वर्ष 2003 में इराक में अमेरिका के हस्तक्षेप और उसके बाद वहां 2011 तक चले गृहयुद्ध के दौरान सुन्नी आतंकवादी ग्रुप 'इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया’ ने अपनी जड़ें जमाईं। उसे इराक के अपदस्थ प्रमुख सद्दाम हुसैन के कई वरिष्ठ सहयोगियों का भी समर्थन प्राप्त हुआ।
आईएसआईएल/आईएसआईएस की शुरुआत 1999 में अबू मुसाब अल जरकावी ने जमात अल तवाहिद वल जेहाद (जेटीजे) नाम के आतंकवादी गिरोह से की। इसका मकसद पूरी दुनिया को दारुल इस्लाम में बदलकर इस्लामी शरिया कानून लागू करना है।
अक्टूबर 2004 में जरकावी ने अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के प्रति अपनी वफादारी जाहिर की और 'जेटीजे अलकायदा इन इराक’ के नाम से जाना जाने लगा और इसने इराक में चल रहे गृहयुद्ध में, सुन्नियों से किए जा रहे भेदभाव के नाम पर विभिन्न चरमपंथी सुन्नी गिरोहों के साथ मिलकर, अमेरिका के खिलाफ मुहिम चलाई। जनवरी 2006 में 'अलकायदा इन इराक’ ने वहां के सुन्नी आतंकवादियों के साथ मिलकर मुजाहिदीन शूरा काउंसिल बनाई। इसके कुछ माह बाद ही जून 2006 में जरकावी की मौत हो गई।
जरकावी की मौत के बाद 13 अक्तूबर, 2006 को अलकायदा इन इराक का नाम 'इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक’ कर दिया गया और अबू अब्दुल्ला अल-राशिद अल-बगदादी को इसका अमीर बनाया गया। अप्रैल 2010 में अमेरिका-इराक के एक संयुक्त ऑपरेशन में अबू अब्दुल्ला बगदादी की मौत हो गई। इसके बाद अबू बकर अल-बगदादी को इसका मुखिया बनाया गया, जिसके नेतृत्व में आईएसआई ने इराक और सीरिया में अपनी जड़ें मजबूत कीं।
अप्रैल 2013 में आईएसआई ने सीरिया में भी अपने पैर फैलाए और अब नाम बदल कर 'इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवन्ट’ (आईएसआईएल) कर दिया। यह नया नामकरण अबू बकर बगदादी की विस्तारवादी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, क्योंकि इस नामकरण के द्वारा मध्य एशिया के उस क्षेत्र में फैलने की मंशा जाहिर होती है जो पुराने समय में लेवन्ट (जार्डन, इसराइल, फिलीस्तीन, लेबनान, साइप्रस और दक्षिण तुर्की) के नाम से जाना जाता है।
पूरी इस्लामी दुनिया पर राज करने की उसकी महत्वाकांक्षा इस बात से भी जाहिर होती है कि उसने 29 जून, 2014 को खुद को इस्लामी दुनिया का खलीफा घोषित करते हुए दुनियाभर के मुसलमानों से उसकी मुहिम में शामिल होने की अपील की है।
सीरिया के एक मानवाधिकार संगठन के अनुसार इस आतंकवादी गिरोह के सीरिया में पचास हजार और इराक में लगभग तीस हजार लड़ाके हैं, जबकि सीआईए के अनुसार इस गिरोह में 20 से 32 हजार लड़ाके हैं। इसके लड़ाकों में मुस्लिम देशों के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और सिंगापुर जैसे बहुत विकसित देशों के नागरिक भी शामिल हैं।
इसने अपहरण-फिरौती के अलावा सऊदी अरब और कतर से मिलने वाले पैसे से काफी दौलत इकट्ठा कर ली है। यही नहीं, सीरिया और इराक के जिन क्षेत्रों पर इसने पिछले एक साल में कब्जा किया है वहां के बैंकों को भी लूटा और तेल के कुओं पर कब्जा कर तेल बेचना शुरू कर दिया है।
इसके हाथ हथियार भी बड़ी मात्रा में लगे और हवाई अड्डों पर कब्जे के दौरान हवाई जहाज इसके नियंत्रण में आए। कहा तो यह भी जाता है कि मौसुल विश्वविद्यालय पर कब्जा करने के दौरान इसने वहां से आणविक सामग्री भी हथिया ली। इराकी प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी ने आरोप लगाया है कि इस आतंकवादी ग्रुप को कतर और सऊदी अरब से बहुत अधिक आर्थिक मदद मिली है।
आईएसआईएल कितना खौफनाक है इस बारे में रोज खबरे पढ़ने को मिल रही हैं, जिन्हें पढ़ और सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। इसके निशाने पर शिया मुसलमानों के साथ ही असीरियान, आर्मेनियन ईसाई, यजीदी आदि स्थानीय अल्पसंख्यक गैर मुस्लिम आबादी है। सामूहिक हत्याएं करना और जबरन धर्म परिर्वतन करना इसके लिए सामान्य सी बात है। यह इनके बच्चों और महिलाओं का अपहरण कर इन्हें 'सेक्स स्लेव’ के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
दुनियाभर में अपना प्रचार करने के लिए यह मीडिया के आधुनिकतम संसाधनों का भी उपयोग कर रहा है। इसने इस काम के लिए ग्लोबल इस्लामिक मीडिया फ्रंट, अजनद मीडिया फांडेशन और अल हयाद मीडिया सेंटर का गठन किया है। यह 'दाबिक’ नाम से एक डिजिटल मैगजीन भी चला रहा है। पश्चिम के लोगों के लिए अंग्रेजी, रूसी, फ्रैंच और जर्मन आदि यूरोपीय भाषाओं में प्रचार सामग्री तैयार करता है। सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
भारत जैसे देश से भी करीब 20-22 युवा इसमें शामिल होने के लिए सीरिया पहुंचे हैं, लेकिन इन सब बातों का सार यही है कि मध्य पूर्व देशों में अराजकता, आतंकवाद फैलाना अमेरिकी नीति का नतीजा है और यह सारी दुनिया की आतंकवादी गतिविधियों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता रहा है।