देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः।।
देवता यदि रुष्ट हो जाए, तो गुरु रक्षा करते हैं, लेकिन यदि गुरु रुष्ट हो जाए तो कोई भी रक्षा नहीं कर सकता। केवल गुरु ही रक्षक हैं, केवल गुरु ही रक्षक हैं, केवल गुरु ही रक्षक है। और इसमें कोई संशय नहीं है....
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः॥
प्रेरणा देनेवाले, सूचना देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले, ये सब गुरु समान है।
किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥
बहुत कहने से क्या? करोडों शास्त्रों से भी क्या? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है।
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते॥
धर्म को जानने वाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं।
श्लिष्टा क्रिया कस्यचिदात्मसंस्था
संक्रांतिरन्यस्य विशेषयुक्ता।
यस्योभयंसाधु स शिक्षकाणाम्
धुरि प्रतिष्ठापयितव्य एव।।
किसी शिक्षक में तो स्वयं उत्तम गुणों की पात्रता होती है, किसी शिक्षक को दूसरे को गुण सिखाने में विशेष प्रवीणता होती है। जिसमें दोनों ही बातें ठीक से हों, वही शिक्षकों में सर्वश्रेष्ठ माना जाना चाहिए।
-कालिदास
अध्यापक जीवन का एक बड़ा भरी अभिशाप यह है कि आपको ऐसी सैकड़ों बातों को पढ़ना-पढ़ाना पड़ेगा जिन्हें आप न तो हृदय से स्वीकार करते हैं न साहित्य के लिए हितकर मानते हैं. यहां आदमी को आप खो कर ही सफलता मिलती है।
-हजारीप्रसाद द्विवेदी
सार्थक विश्वविद्यालय वही है जो ऐसे शिक्षकों को आकर्षित करता है, जहां शिक्षा की सहायता से मनोलोक की सृष्टि होती है। यह सृष्टि ही सभ्यता का मूल है। लेकिन हमारे विश्वविद्यालयों में इस श्रेणी के शिक्षक न होने से भी कम चलता है...शायद और भी अच्छी तरह चलता है।
-रवीन्द्रनाथ टैगोर, (कलकत्ता विश्वविद्यालय 1932 का भाषण.)
जो अध्यापक अपने अनुगामियों में मंदिर की छाया तले विचरण करता है, वह उन्हें अपने ज्ञान का अंश नहीं, बल्कि अपना विश्वास और वात्सल्य प्रदान करता है।
-खलील जिब्रान
प्रधानाचार्यों के हाथों में वो शक्तियां हैं जो अभी तक किसी भी प्रधानमंत्रियों को नहीं मिल पाई हैं।
-विंस्टन चर्चिल (माय आर्मी लाइफ)
तुम भू के भगवान तुम्हारे चरणों में ईश्वर मिलते हैं,
तुम अंतर के स्वामी तुमसे फूल जिंदगी के खिलते हैं,
मैं भूलूंगा पर तुम मुझसे भूलों पर उदास न होना,
तुम ‘शिक्षक’, विद्वान् तुम्हारी प्रतिभा से लोहा भी सोना।
-रघुवीर शरण मित्र
शिक्षक के व्यक्तित्व से हमें कोई प्रयोजन नहीं, हमें तो उसकी शिक्षाओं और परामर्शों को उनके गुण-दोषों को परख करके ग्रहण करना चाहिए।
-स्वामी रामतीर्थ
नवयुवकों का तमाम शिक्षण व्यर्थ है, फिजूल है यदि उन्होंनें सद्व्यवहार नहीं सीखा।
-महात्मा गांधी
कब ‘हां’ कहना और कब ‘ना’ कहना, यही हमारे युग की समस्या है, हमारी शिक्षा-प्रणाली की निष्फलता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है?
-बर्नाड शॉ
शिक्षण वह है जो आत्मा का परिचय करवा दे, और वही लेना चाहिए।
-रस्किन
पक्के ज्ञान की एकमात्र पहचान है, सिखाने की शक्ति।
-अरस्तू
शिक्षक अनंत काल को प्रभावित करता है, वह कभी नहीं बता सकता कि उसका प्रभाव कहां तक जाता है।
-हेनरी ब्रुक्स एडम्स (दी एज्युकेशन ऑफ हेनरी एडम्स 20)
हमें शिक्षक विद्वान् विकसित करने चाहिए, न कि शिक्षण-शिल्पी। साथ ही हमें शिक्षकों को वह वेतन सम्मान और समर्थन भी देना चाहिए जिसमें हम इस सम्मानित वृत्ति की ओर सर्वोत्तम बुद्धिमानों को आकर्षित कर सकें।
-रिचर्ड निक्सन (वक्तव्य 15 दिसम्बर1957)
संकलन : डॉ.छाया मंगल मिश्र