जीवन का पाठ सिखाने वाले गुरु

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विशाल मिश्रा

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मेरे दो बहुत ही अच्छे दोस्त एक सरकारी विभाग में कार्यरत थे। उन्हें जिस व्यक्ति चौरसियाजी द्वारा यह नौकरी मिली थी, ये दोनों उनके ही मातहत थे। एक दिन चौरसियाजी की उनके वरिष्ठ अधिकारी से किसी बात पर कहासुनी हो गई। चौरसियाजी से बदला लेने के लिए उनके वरिष्ठ ने मेरे दोनों मित्रों को अपने पास बुलाया और कहा कि यदि चौरसियाजी के खिलाफ वह दोनों उसकी मदद करें तो उनका (चौरसियाजी का) तबादला कहीं और करवा देंगे और इन दोनों की पदोन्नति की सिफारिश सरकार से करेंगे।

लेकिन इसके जवाब में इन दोनों ने अपने इस्तीफे उस वरिष्ठ अधिकारी के पास प्रेषित कर‍ दिए और कहा हमें ऐसी नौकरी की जरूरत नहीं है और वाकई उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी। मैंने जब उनसे पूछा कि यह क्या किया, इतनी सी बात पर तुम लोग सरकारी नौकरी छोड़कर आ गए।

बोले यार इस दुनिया में नौकरी, पद, पैसा ही सबकुछ नहीं है। आज जो काम करने का वह हमसे कह रहा था। हम उसका कहना मान लेते तो इससे घृणित कार्य तो हमारे जीवन का कुछ होता ही नहीं। और इसके लिए हमारी आत्मा हमें मंजूरी नहीं दे रही थी। अब हम कुछ और काम कर लेंगे लेकिन वहाँ नौकरी नहीं कर सकेंगे।

दिल को अच्‍छा लगा कि वाकई आज सामाजिक और मानवीय मूल्यों को बरकरार रखने वाले लोग भी इस दुनिया में हैं और मैं तो उनका अभिन्न मित्र हूँ। उनके प्रति दिल में आदर और बढ़ गया। जीवन की पाठशाला का महत्व बताने वाले मेरे ये मित्र होने के साथ मेरे गुरु भी हो गए। इस दुनिया में पैसा, पद, नौकरी आदि से भी बढ़कर कई चीजें हैं। आज हमारे आसपास कई घटनाएँ होते हुए हम देख रहे हैं, समाचार पत्रों में पढ़ रहे हैं कि आदमी वहशीपन की कितनी हदें आसानी से पार करता जा रहा है लेकिन अच्छा इंसान बनकर श्रेष्ठ जीवन जीना क्या इतना मुश्किल है। नहीं, कभी नहीं।

क्या गुरु वही होता है जो कक्षा में बोर्ड पर लिख-लिखकर हमें पाठ्‍यपुस्तक पढ़ाए। जी नहीं, जीवन में जिससे भी हम कुछ सीख रहे हैं वह हमारा गुरु है। एक रोज सुबह सड़क पर जा रहा था। एक लगभग 6-7 वर्ष की स्कूल की छात्रा केवल सड़क के एक ही ओर देखकर उसे पार कर रही थी। मैं पीछे से निकला और कहा बेटा, दोनों ओर देखकर सड़क पार करो नहीं तो टकरा जाओगी। वास्तव में वह मेरी गाड़ी से टकराते-टकराते बची थी।

केवल 5-10 मिनट बाद मैं अपने ऑफिस पहुँचा और गेट पर बगैर पीछे मुड़े मैंने अपने वाहन से सड़क पार करना चाही और मैं अन्य दोपहिया वाहन से टकरा गया। वाहन थोड़ा सा क्षतिग्रस्त हुआ और मुझे उसी बच्ची का चेहरा याद आ गया जिसे मैं समझाकर आया था। मानो कह रही हो मैं तो केवल मेरे माध्यम से आपको समझाना चाह रही थी कि सड़क दोनों ओर देखकर पार करनी चाहिए लेकिन आप ही उसमें चूक कर गए। तो ऐसी छोटी-छोटी घटनाएँ और पात्र आपके जीवन में गुरु का काम करते हैं उनकी अनदेखी न करते हुए उनसे सीख लें, जीवन में जरूर काम आएँगी।

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