शत् शत् नमन

राजश्री कासलीवाल
ND
आज का युग कम्प्यूटर युग है। कम्प्यूटर के आने से देश, समाज में एक नई क्रांति का आह्वान हुआ है। लेकिन फिर भी ‍बच्चों के दिलों दिमाग में ज्ञान का भंडार भरने वाले शिक्षकों का आज भी उतना ही महत्व है जितना भी पुराने जमाने में था। माता-पिता के बाद बच्चों को सही शिक्षा देने में शिक्षकों का महत्वपूर्ण स्थान है।

शिक्षक द्वारा दी जाने वाली ज्ञान की जो रफ्तार है, उससे एक दिन ऐसा आ जाएगा जब समूचा ब्रह्मांड ज्ञान के समक्ष छोटा लगेगा। आज बढ़ती प्रतियोगिता और बच्चों के बढ़ते ज्ञान ने जिस प्रकार कर्म के साथ समझौता किया है, उससे लगता है कि ज्ञान और कर्म की शिक्षा आज के समय में जिंदा रहने की अनिवार्यता बन गई है। लेकिन इसमें ज्ञानी और कर्म दोनों को रोना पड़ता है।

हमारे तमाम शिक्षक जब ज्ञान और कर्म की शिक्षा में स्कूल से लेकर विशेष संस्थानों और विश्वविद्यालयों तक जुड़े हैं, वे अपने कर्म के प्रतीक बड़े से बड़े इंजीनियर, डॉक्टर, एमबीए का निर्माण करते हैं। बच्चों के अंदर भावना और संभावनाओं का विकास कर उन्हें देश को उन्नति की राह पर ले जाने की शिक्षा देते है।

शिक्षक वह जीवन की मूर्ति है, जो दूसरों को ज्ञान का उजाला बाँटकर उनके जीवन को गतिशील, भावना, और उच्च विचारों से जुड़े कर्म कर जीवन की ऊँचाइयों पर ले जाते हैं। आज शिक्षक दिवस है। इस दिन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बहाने शिक्षकों को सम्मानित करने का दिन है। यूँ तो सही मायने में देखा जाए तो ' गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु' के विचार और उससे जुड़े अध्यात्म को अंगीकार करने वाले देश को शिक्षकों के प्रति आदर भाव प्रकट करने के लिए किसी दिन की जरूरत नहीं होनी चाहिए... उनका आदर सत्कार तो‍ दिल से किया जाता है। पर ठीक है इस बहाने ही सही, गुरु-शिष्य के संबंधों की आदर्श परिभाषा को तो याद किया जाता है।

लेकिन वर्तमान में हो शिक्षकों के साथ बच्चों का बदलता व्यवहार गुरु-शिष्य संबंधों में आए बदलाव को रेखांकित करता है, इस पवित्र रिश्ते की कई-कई बार हत्या तो तभी हो जाती है जब हम टीवी या कई स्कूलों में एक छात्र को एक शिक्षक से ये कहते हुए पाते हैं कि 'देखना एक दिन हम तुम से इस विद्यालय में पोंछा लगवाएँगे...
  यूँ तो सही मायने में देखा जाए तो 'गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु' के विचार और उससे जुड़े अध्यात्म को अंगीकार करने वाले देश को शिक्षकों के प्रति आदर भाव प्रकट करने के लिए किसी दिन की जरूरत नहीं होनी चाहिए... उनका आदर सत्कार तो‍ दिल से किया जाता है।      
जब छात्र अपने शिक्षक से अरे-तुरे करके बात करते हैं, उनके सामने दादागिरी से पेश आते हैं या फिर उनके सामने सिगरेट के धुएँ के छल्ले उड़ाते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे बच्चे अपने शिक्षकों के नहीं अपनी माँ के मुँह पर कालिख पोत रहे हैं।' बच्चों को चा‍हिए कि वे शिक्षकों के समक्ष ऐसे पेश ना आए शिक्षक गुरु होता है जो विद्या में माध्यम से आपके जीवन को रोशन करता है ऐसे में शिक्षकों के साथ किया जाने वाले गलत व्यवहार के कारण शर्म से इंसानियत की गर्दन झुक जाती है।

हमारी दुनिया में शिक्षक एक महान मूर्ति की तरह होता है पर कई बार छात्रों द्वारा ‍की गई अवांछनीय हरकतों के कारण ऐसा प्रतीत होता है जैसे शिक्षक चौराहे पर लगी उपेक्षित मूर्ति के समान है। मूर्ति बनने का सबसे बड़ा अभिशाप ही यह है कि उसे उपेक्षित होना पड़ता है। जिस प्रकार किसी मूर्ति का उद्‍घाटन केवल उसी दिन की शोभा होती है।

उसी प्रकार हम केवल एक दिन यानी '5 सितंबर' को 'शिक्षक दिवस' मनाने का ढोंग रचकर शिक्षकों को उपेक्षित करते है। असल में शिक्षकों का सम्मान तो हर पल, हर दिन, हर समय होना चाहिए ताकि हमें ज्ञान का भंडार देने वाले उन शिक्षकों को हम सही मायने में पूज सकें। उनके द्वारा दिए गए गुणों को ग्रहण कर हम देश, समाज, विश्‍व, हमारे पारिवारजनों का सही मायने में कर्ज अदा कर पाएँगे। उन्हें सही मायने में पूज पाएँगे। ऐसे महान शिक्षकों को शिक्षक दिवस पर सभी की ओर से शत् शत् नमन.... !

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