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अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस : तालिबान की दहशत के बीच कैसे मनाएंगे अफगानी यह दिन

हमें फॉलो करें अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस : तालिबान की दहशत के बीच कैसे मनाएंगे अफगानी यह दिन

अनिरुद्ध जोशी

, बुधवार, 18 अगस्त 2021 (14:36 IST)
अफगानिस्तान कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था परंतु अब एक स्वतंत्र देश है। 7वीं सदी के बाद यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरू किए और 870 ई. में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया था। हालांकि इसके खिलाफ लड़ाई चलती रही। बाद में यह दिल्ली के मुस्लिम शासकों के कब्जे में रहा। यहां पर गौरी, गजनी, चंगेज, हलाकू आदि कई लुटेरों का शासन भी रहा है।
 
 
1. 26 मई 1739 को दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह अकबर ने ईरान के नादिर शाह से संधि कर अफगानिस्तान उसे सौंप दिया था। 17वीं सदी तक 'अफगानिस्तान' नाम का कोई राष्ट्र नहीं था। अफगानिस्तान नाम का विशेष-प्रचलन अहमद शाह दुर्रानी के शासनकाल (1747-1772) में ही हुआ। हालांकि दुर्रानी वंश ने 1826 तक राज किया था, परंतु तब यह ब्रिटिश इंडिया के अंतर्गत था। सही मायने में दुर्रानी ने ही इस राष्ट्र को स्थापित किया था। 
2. फिर यह क्षेत्र ब्रिटिश इंडिया के अंतर्गत आ गया। 1834 में एक प्रकिया के तहत 26 मई 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात राजनीतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया। इससे अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से अलग हो गए। 18 अगस्त 1919 को अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली।
 
 
3. 1926 से 19272 तक अफानिस्तान एक आधुनिक देश बना। तब यहां पर वामपंथ की सरकार थी। मोहम्मद जहीर शाह ने नया अफगानिस्तान बनाया। यहां लोकतंत्र था और लोग आनंदपूर्वज अपना जीवन यापन करते थे। परंतु सोवियत संघ के दौर अर्थात शीतयुद्ध के दौर में अमेरिका और रशिया की सेना के दखल से अफगानिस्तान में गृहयुद्ध शुरु हुआ था और अंतत: इस्लामिक कट्टरपंथी मुजाहिद्दीनों को अमेरिका के सहयोग से सत्ता हासिल हो गई और रशिया के सहयोगी प्रगतिशील अफगानों को देश छोड़कर जाना पड़ा। 1971 से 1988 तक मुजाहिद्दीनों ने सरकार चलाई और फिर उनका सामान तालिबान से हुआ। 1990 में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उदय तब हुआ जबकि रशिया की सेना अफगानिस्तान से वापस जा रही थी। तालिबान ने 1998 तक उसने संपूर्ण अफगानिस्तान पर कब्जा कर मुजाहिद्दीनों के मुखिया बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटा दिया। 
 
4. 11 सितंबर 2001 में न्यूयॉर्क वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद दुनिया का ध्यान तालिबान पर गया। हमले के मुख्‍य षड़यंत्रकारी अलकायदा के ओसामा बिन लादेन को शरण देने के आरोप में तालिबान पर अमेरिका क्रोधित हुआ और उसने 7 अक्टूबर 2001 में अफगानिस्तान पर हमला कर दिया और सिर्फ एक सप्ताह में ही तालिबान की सत्ता को उखाड़ फेंका। 
 
5. अब अमेरिका और नाटो सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान फिर से अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि 19 अगस्त को वहां का स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के क्या तुक जबकि सभी लोग यह समझते हैं कि हम एक गुलामी से निकलकर अब दूसरी गुलामी में जा रहे हैं।
 
 
6. पिछले वर्ष 2020 में ही अफगानिसतान में अपनी स्वतंत्रता दिसव के 100 वर्ष पूर्ण होने पर धूम धाम से जश्न मनाया था। तालिबान के विध्‍वंस के बाद यहां पर भारत के सहयोग से नया संसद भवन बनाया गया था जहां पर से राष्ट्रपति अशरफ गनी ने राष्ट्र को संभोधित किया था। इस अवसर पर काबुल में विभिन्न थियेटरों में 100 चुनिंदा फिल्में भी दिखाई गई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस भाषण में अफगानिस्तान को स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष की बधाई दी थी। 
 
7. परंतु इस बार तालिबान ने हाल ही में देश पर कब्जा कर लिया है। ऐसे में देश में अफरा तफरी के हालात है। लोगों की हत्या की जा रही है और फिर से इस्लामिक कानून लागू किया गया है। हजारों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं और स्कूल, थियेटर, सरकारी दफ्‍तर, कॉलेज सभी बंद है। महिलाओं के घर से निकलने पर पाबंदी है। लोग अपने जानमाल की रक्षा में लगे हुए हैं। लोग अपने जान-माल की रक्षा में लगे हुए हैं। ऐसे में लगता है कि इस बार अफगानिस्तान में स्वतंत्रता दिवस बस औपचारिक भर ही रह जाएगा।

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