Exclusive Interview: अमेरिका के करीब जाने की कोशिश में रूस से खराब हुए भारत के संबंध, अफगानिस्तान में उठाना पड़ रहा खामियाजा: यशवंत सिन्हा
रुस,चीन,पाकिस्तान की तिकड़ी अफगानिस्तान में एक्टिव,भारत नहीं आ रहा नजर : यशवंत सिन्हा
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद भारत का क्या रूख होगा यह अब तक साफ नहीं हो पाया है। भारत ने तालिबान को लेकर अब तक कोई विस्तृत आधिकारिक बयान भी जारी नहीं किया है। अफगानिस्तान के मुद्दे पर कहीं न कहीं भारत की विदेश नीति बड़े असमंजस में फंसी हुई दिखाई दे रही है।
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत का क्या रूख होगा इसको समझने के लिए वेबदुनिया ने देश के पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा से खास बातचीत की। यशवंत सिन्हा ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में बतौर विदेश मंत्री अफगानिस्तान के आधिकारिक दौरे पर भी गए थे।
पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा वेबदुनिया से खास बातचीत में कहते हैं कि आज के दिन में अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत के सामने वेट एंड वॉच के अलावा कोई रास्ता भी नहीं बचा है,भारत क्या कर सकता है? भारत ने अफगानिस्तान में बहुत काम किया और अफगानिस्तान के लोगों में भारत की बहुत लोकप्रियता है लेकिन अभी भारत अफगानिस्तान में कहीं नजर नहीं आ रहा है, इसलिए भारत की कोई भूमिका नहीं बची है और जब कोई भूमिका नहीं होती है तो आपके सामने वेट एंड वॉच के अलावा कोई स्थिति नहीं होती है।
पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा कहते हैं कि अफगानिस्तान के मुद्दे पर रुस, चीन और पाकिस्तान एक साथ नजर आ रहे है। रूस हमेशा से भारत का दोस्त रहा है और यह बहुत अफसोस की बात है कि हम अमेरिका के इतने निकट जाने की कोशिश करते रहे जिससे रूस के साथ हमारे जो संबंध थे वह खराब हुए। अब रुस, चीन और अब पाकिस्तान की तिकड़ी अफगानिस्तान में एक्टिव है और भारत कहीं नहीं है। बड़ी मुश्किल से भारत को दोहा में अफगानिस्तान के उपर जो चर्चा होनी थी उसके लिए निमंत्रण मिल सका था।
वेबदुनिया से बातचीत में यशवंत सिन्हा कहते हैं कि अमेरिका के जाने के बाद तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे को लेकर वह बिल्कुल भी आश्चर्यचकित नहीं है, क्योंकि 20 साल में अमेरिका अफगानिस्तान में कोई ऐसी ताकत नहीं खड़ा कर सका जो तालिबान का मुकाबला कर सके।
यशवंत सिन्हा आगे कहते हैं कि मैं खुद विदेश मंत्री के बाद बाद अफगानिस्तान गया था और तब एयरपोर्ट पर मुझे लेने आए कंधार के गर्वनर को भी अमेरिकी सुरक्षा बलों ने सुरक्षा कारणों का हवाला देकर रोक लिया था। तब मैं यह समझ गया था कि अमेरिका यहां ज्यादा वक्त नहीं रह सकता क्योंकि वहां के लोग अमेरिका से मुक्ति चाहते थे। अफगानिस्तान में न तो ऐसी कोई ताकत थी और न ही इच्छाशक्ति थी जो तालिबान को रोक सके इसलिए तालिबान ने अफगानिस्तान पर इतनी जल्दी कब्जा कर लिया।
अब तालिबान के कब्जे के बाद भारत को अपनी अफगानिस्तान में भूमिका स्पष्ट करनी होगी। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय अफगानिस्तान में भारत की बड़ी भूमिका थी और भारत ने तब अफगानिस्तान में बहुत काम किया था और तालिबान ने भी उसकी तारीफ की है इसलिए अफगानिस्तान के विकास में भारत को अपनी भूमिका साफ करनी होगी।