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राष्ट्रीय सीनियर कुश्ती : 87 साल के बूढ़े या फिर 27 साल के जवान...

हमें फॉलो करें राष्ट्रीय सीनियर कुश्ती : 87 साल के बूढ़े या फिर 27 साल के जवान...
, सोमवार, 20 नवंबर 2017 (19:23 IST)
- सीमान्त सुवीर

'उम्र 87 साल...कोई गंभीर बिमारी नहीं..पहलवानी को छूटे जमाना गुजर गया लेकिन सुबह 4 बजे उठना नहीं छूटा और इस उम्र में भी रोज 8 किलोमीटर तक पैदल चलना ही मेरी सेहत का राज है।' यह बात बालाराम पहलवान ने कही जो जो महू तहसील के हरसौला गांव से कुश्ती देखने के लिए आए थे..और जब उनके पोते ने मध्यप्रदेश के लिए एकमात्र कांस्य पदक जीता तो 87 बरस के बाबूराम में 27 साल जैसे युवा का जोश दिखाई दिया।
 
62वीं राष्ट्रीय सीनियर कुश्ती के समापन अवसर पर 'अभय प्रशाल' की दर्शक दीर्घा में एक वृद्ध टकटकी लगाए फायनल मुकाबलों को देख रहा था और जब सामने मैट पर 97 किलोग्राम में मध्यप्रदेश के पहलवान रवि बारोट ने कांस्य पदक जीता तो उनकी बांछें खिल उठी। वे अपने पोते की इस कामयाबी को खुद की कामयाबी से जोड़कर देख रहे थे, जिसे उन्हें 50-60 पहले की यादों में लौटा दिया था...
 
उन्होंने बताया कि मेरी तीसरी पीढ़ी कुश्ती में है। मेरे दो लड़के गजानंद और पुरुषोत्तम भी पहलवानी के क्षेत्र में रहे और अब पोता मेरा नाम रौशन कर रहा है। मध्यप्रदेश को पुरुष वर्ग में एकमात्र कांस्य पदक मिला है, जो रवि बारोट ने दिलाया है। 
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उन्होंने कहा कि मैं खुद भी अपने समय का पहलवान रहा हूं और 87 साल की उम्र में भी रोजाना सुबह 4 बजे उठ जाता हूं और 8 किलोमीटर तक गायों को चराने के लिए जाता हूं। यह मेरा शौक है और इसी शौक ने मुझे बीमारियों से दूर रखा हुआ है।
 
बाबूराम के अनुसार मैं करीब 60 बरस पहले कुश्ती के मुकाबलों को लड़ने के लिए इंदौर आता था। मैंने इंदौर में देवी पहलवान, सखाराम, सुखदेव पहलवान, मालवा मील के पहलवान किशोरी और ज्ञानचंद से लड़ा। महू में मेरी कुश्ती मेरठ के मजीद बावला से काफी चर्चित रही।
 
 
समय गुजरता चला गया और उम्र बढ़ने के साथ ही पहलवानी भी छूटती चली गई। पहलवानी जरूर छूटी लेकिन शौक तो आज भी बरकरारा है। यही कारण रहा कि कि मैंने अपने दो बेटों को पहलवान बनाया। आज मैं अपने पोते को पहलवानी करता हुआ देखता हूं तो मुझमें भी जोश आ जाता है। 
 
मैं खुश हूं कि मेरी तीसरी पीढ़ी ने पहलवानी का खानदानी शौक बरकरार रखा है। हरसौला में होलकर स्टेट के मराठा पलटन से निवृत्त होने के बाद माधवराव ने श्याम जी महाराज के नाम से जो अखाड़ा बनाया था, उसी में मैं अभ्यास करता था। आज मैं 87 साल की उम्र में भी बगैर किसी सहारे के चलता हूं। बच्चे घूमने के लिए मना जरूरत करते हैं लेकिन मैं तो आखिर उनका बाप हूं ना...कहां मानने वाला। 
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बाबूराम के पोते 24 साल के रवि बारोठ ने राष्ट्रीय सीनियर कुश्ती में मेजबान मध्यप्रदेश की लाज रखते हुए पुरुष वर्ग में 97 किलोग्राम में एकमात्र कांस्य पदक उत्तराखंड के सुरजीत को हराकर जीता। रवि बीकॉम कर चुके हैं और इससे पहले 2011 में भी उन्होंने कांस्य पदक जीता था। इसके अलावा वे मुंबई में अखिल भारतीय स्तर पर कांस्य, 2014 में इंदौर हैवीवेट में स्वर्ण जीतने में सफल रहे। 
 
2015 में चोट के कारण रवि कुश्ती नहीं लड़े लेकिन 2016 में कांस्य पदक जीता। रवि की दिल्ली तमन्ना है कि खेल कोटे के तहत वे शासकीय सेवा में आए और अपने खेल को जारी रखें। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में तो कुश्ती के लिए इतना सम्मान है कि विजय चौधरी 'महाराष्ट्र केसरी' बनते ही डीएसपी का पद पा गए। मध्यप्रदेश में भी सरकार को चाहिए कि वो भी खिलाड़ियों के लिए नौकरियों के दरवाजे खोले...

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