लखनऊ। इंडोनेशिया में हाल में संपन्न एशियाई खेलों की स्टीपलचेज स्पर्धा में रजत पदक विजेता एथलीट सुधा सिंह का मानना है कि इन एशियाई खेलों में खिलाड़ी बहुत कम अंतर से पदक से चूके। ऐसा न हुआ होता तो भारत एथलेटिक्स में ही में कम से कम 25 और पदक जीत सकता था।
सुधा ने साक्षात्कार में कहा कि भारत ने इंडोनेशिया एशियाई खेलों में 69 पदक जीतकर अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, लेकिन हम इससे भी ज्यादा पदक जीत सकते थे। हमारे कई एथलीट बहुत मामूली अंतर से तमगे की दौड़ में पिछड़ गए। अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो भारत को एथलेटिक्स में ही कम से कम 25 और पदक मिल सकते थे। एक तरह से देखें तो ये एशियाड नहीं बल्कि एफ्रो-एशियंस गेम्स हो गए थे, क्योंकि नाइजीरिया के कई एथलीट बहरीन की तरफ से खेल रहे थे।
उत्तरप्रदेश के रायबरेली की रहने वाली सुधा ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें राजपत्रित अधिकारी की नौकरी की पेशकश की है। वे अपेक्षा करती हैं कि उन्हें उनके प्रदर्शन और उपलब्धियों के हिसाब से ही नियुक्ति दी जाएगी।
इस सवाल पर कि आखिर भारतीय खिलाड़ी जो एशियाड और राष्ट्रमंडल खेलों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, वे अक्सर ओलंपिक में कामयाब नहीं हो पाते? तो सुधा ने कहा कि ओलंपिक की तैयारी बहुत पहले से करनी होती है। साल-दो साल की ट्रेनिंग से कोई खास फायदा नहीं होता। चीन, जापान और अमेरिका जैसे देशों में एथलीट सीधे ओलंपिक की तैयारी करते हैं। वे वर्गीकरण कर लेते हैं कि कौन एथलीट महाद्वीपीय प्रतियोगिता में खेलेगा और कौन राष्ट्रमंडल खेलों में, मगर हम ऐसा नहीं करते।
हालांकि अर्जुन पुरस्कार विजेता एथलीट ने कहा कि केंद्र सरकार की 'खेलो इंडिया' योजना से हमें निश्चित रूप से बहुत फायदा मिल सकता है। यही चीज अगर बहुत पहले होती तो अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में हमारे पदकों की संख्या कहीं ज्यादा होती। वर्ष 2010 में ग्वांग्झू एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत चुकीं सुधा ने माना कि देश में खिलाड़ियों को मिलने वाली सुविधाओं में अब जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है। अब खिलाड़ियों को 50 हजार रुपए प्रतिमाह मिल रहे हैं। यह बहुत बड़ा सहारा है।
उत्तरप्रदेश में खेल कोटे से नौकरी पाने की पिछले 4 साल से जद्दोजहद कर रहीं सुधा से पूछा गया कि अगर उन्हें खेल प्रशासक बनाया जाए तो वे मौजूदा व्यवस्था में कौन-कौन से बदलाव करना चाहेंगी? उन्होंने कहा कि वे सबसे पहले खिलाड़ियों को प्रोत्साहित और प्रेरित करने की दिशा में काम करेंगी। सुधा ने भविष्य की अपनी योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि वे रायबरेली में एक खेल अकादमी खोलना चाहती हैं जिसमें उनका खास जोर ग्रामीण इलाकों में दबी पड़ी प्रतिभाओं को निखारकर सामने लाने पर होगा। (भाषा)