एस्टोनिया। एस्टोनिया की राजधानी ताल्लिन के टोंडिरबा जाहल स्टेडियम में 12 से 18 अगस्त तक खेली गई वर्ल्ड जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाले दीपक पूनिया ने अपने तमगे को पिता को समर्पित किया जिन्होंने कभी कहा था कि गाय का दूध चाहिए तो पहले मुझे पदक लाकर दो। 3 बरस पहले दीपक ने कांस्य पदक जीता था लेकिन इस बार उन्होंने अपने पदक का रंग बदल डाला।
वर्ल्ड जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप के 86 किलोग्राम भार वर्ग में दीपक पूनिया ने रूस के अलिक शेजुखोव को संघर्षपूर्ण मुकाबले में हराकर सोने का तमगा अपने गले में पहना। उन्होंने कहा कि मैं यह पदक अपने पिता के गले में डालने के लिए बेताब हूं जिनके कड़े अनुशासन के कारण मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं। बीते 18 बरस में दीपक ऐसे पहले पहलवान हैं जिन्होंने विश्व जूनियर कुश्ती में स्वर्ण पदक जीता हो।
दीपक पूनिया का स्वर्ण सफर : वर्ल्ड जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप में दीपक ने फाइनल के पहले प्री-क्वार्टर फाइनल राउंड में हंगरी के मिलान कोरस्कॉग को 10-1 से हराया। क्वार्टर फाइनल में कनाडा के हंटर ली को 5-1 से पछाड़ा और सेमीफाइनल में जॉर्जिया के मिरियानी मैशुराडेज पर 3-2 से संघर्षपूर्ण जीत दर्ज करके फाइनल में प्रवेश किया था।
दूध और पदक का रोचक किस्सा : दीपक पूनिया के पिता का दूध का व्यवसाय है। 2016 में वर्ल्ड जूनियर कुश्ती में जब वे खाली हाथ लौटे तो पिता ने उन्हें उनकी पसंद का गाय का दूध नहीं दिया। पिता ने कहा कि दूध चाहिए तो पहले पदक लाकर दे। फिर क्या था? 2016 में ही जॉर्जिया में आयोजित विश्व कैडेट कुश्ती में दीपक ने 85 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता।
जब वे सोने के पदक के साथ घर लौटे तो पिता ने भी अपना वादा निभाया। खुद अपने हाथों से गाय का दूध निकालकर बेटे को पिलाया। पिता के हाथ से दूध पीने के बाद दीपक की प्यास ऐसी बढ़ी कि उन्होंने विश्व जूनियर कुश्ती में भी अपना गला सोने के पदक से सजाया।
अगला लक्ष्य टोकियो ओलंपिक : दीपक पूनिया अब कजाकिस्तान में विश्व चैंपियनशिप 2019 के लिए भारतीय दल का भी हिस्सा होंगे, जो एक तरह से 2020 के टोकियो ओलंपिक क्वालीफिकेशन चैंपियनशिप होगी। दीपक को पूरा भरोसा है कि वे ओलंपिक के लिए क्वालिफाय करके देश के लिए पदक जीतेंगे।