नई दिल्ली। अर्जुन पुरस्कारों के पूर्व विजेताओं ने सरकार पर आज उसकी गरिमा को कम कर इस पुरस्कार को ‘बांटने’ का आरोप लगाया।
भारत के पूर्व हॉकी खिलाड़ी और हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार, मध्यम दूरी के धावक एवं 800 मीटर दौड़ में 1976 से राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी श्रीराम सिंह शेखावत और वॉलीबॉल के पूर्व कप्तान सुरेश मिश्रा ने अर्जुन पुरस्कार की कम होती साख पर सवाल उठाए।
अशोक कुमार ने कहा, ‘इस पुरस्कार की गरिमा को बनाए रखना होगा। आपको हर वर्ष अर्जुन पुरस्कार देने की क्या जरूरत है। हम अब इस सम्मान की अहमियत कम कर रहे हैं।’ अशोक को 1974 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानीत किया गया था और वह 1975 में हॉकी विश्व कप विजेता टीम का हिस्सा थे।
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने इस पुरस्कार को देने के लिए एक मापदंड तय किया है। इस पुरस्कार से जुड़ी साख को और बढ़ाना चाहिए। ऐसा नियम बनाया जाना चाहिए कि एशियाई और ओलंपिक खेलों में पदक विजेताओं को ही यह सम्मान मिले।’ उन्होंने इस बात पर भी नाराजगी जतायी कि इस पुरस्कार के लिए खिलाड़ियों को खुद आवेदन करना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा, ‘आप पुरस्कार को भीख के रुप में नहीं मांग सकते। आप मेरे सामने झुक कर क्यों कहेंगे कि मैंने कुछ हासिल किया है। अगर काई किसी प्रतियोगिता में भाग लेता है तो यह सरकार के आदेश से ऐसा होता है। उन्हें खिलाड़ियों की उपलब्धियों के बारे में पता होता है इसलिए खिलाड़ियों को आवेदन भेजने की जगह खुद सरकार को पुरस्कार के लिए चुनना चाहिए।’
भारत के शीर्ष स्क्वॉश खिलाड़ी सौरव घोषाल ने भी खिलाड़ियों के आवेदन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘‘मुझे लगता है कि किसी की सिफारिश से सम्मान की गरिमा कम होती है। यह सही नहीं है कि खिलाड़ियों की सिफारिश की जाए या फिर उन्हें पुरस्कार के लिए खुद आवेदन करना पड़े। खिलाड़ियों के प्रदर्शन के आधार पर समिति को उनका चयन करना चाहिए।
अर्जुन पुरस्कार से 2006 में नवाजे गए घोषाल ने कहा कहा, ‘पुरस्कार के लिए आवेदन करने से ऐसा लगता है जैसे कोई अनुदान मांगा जा रहा हो।’ तेहरान ऐशियाई खेल (1974) में स्वर्ण पदक और 1970 में बैंकाक एशियाई खेल में रजत पदक जीतने वाले शेखावत ने कहा कि उनके समय में पुरस्कार देना का पैमाना बिल्कुल अलग था।
उन्होंने कहा, ‘जब 1972 के लिए अर्जुन पुरस्कार का फैसला होना था तब एशियाई स्तर पर पदक जीतने के बाद भी मुझे यह सम्मान नहीं मिला क्योकि सिर्फ एक पुरस्कार था और वह वी.एस. चौहन को दिया गया। हम दोनों राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी थे लेकिन वह मेरे से सीनियर थे, इसलिए उन्हें चुना गया। मुझे यह सम्मान 1973 में मिला।’ उन्होंने सुझाव दिया कि यह सम्मान कम से कम एशियाई खेल स्तर पर पदक जीतने वाले को देना चाहिए। (भाषा)