Paris Paralympics में गुरु गुड़ रह गए चेले शक्कर हो गए कहावत का बेहतरीन उदाहरण देखने को मिला
अमित के लिए पैरालंपिक में धर्मबीर के स्वर्ण और प्रणव के रजत से बेहतर कोई गुरु दक्षिणा नहीं
अमित कुमार सरोहा पैरालंपिक में पुरुषों की क्लब थ्रो एफ51 स्पर्धा में भले ही आखिरी स्थान पर रहे हों लेकिन उनके शिष्य धर्मबीर के स्वर्ण और प्रणव सूरमा के रजत पदक के रूप में युवा पीढ़ी की सफलता उनके लिए मिशन पूरा होने की तरह है।बुधवार को पैरालंपिक में भारत के पदकों की संख्या 24 हो गई जब धर्मबीर और प्रणव ने शीर्ष दो में जगह बनाई लेकिन अमित इसी स्पर्धा में आखिरी स्थान पर रहे। अमित हालांकि इस बात से उत्साहित हैं कि टीम स्वर्ण पदक के साथ लौटेगी।
इस 39 वर्षीय खिलाड़ी ने प्रतियोगिता में बाद कहा, मैं यह नहीं कहूंगा कि यह मेरे लिए दुर्भाग्यपूर्ण था।अमित ने कहा, हां, मेरी स्पर्धा अच्छी नहीं रही। मैं धर्मबीर को देख रहा था, उसने पहले चार थ्रो फाउल किए थे। मैं बहुत चिंतित हो रहा था कि स्पर्धा बदतर होती जा रही है और मेरे साथ भी यही स्थिति हुई।
अमित ने इस स्पर्धा की जटिलता को समझाते हुए कहा कि सफल होने के लिए कई कारकों का एक साथ काम करना जरूरी होता है।उन्होंने बताया, हमारी दिव्यांगता बहुत गंभीर है - हमारी अंगुलियां काम नहीं करती हैं और हमें क्लब को गोंद से चिपकाना पड़ता है। लेकिन ठंड के कारण यह इतना चिपचिपा हो गया था कि पकड़ में नहीं आ रहा था। चिपचिपाहट के कारण इस प्रक्रिया में मेरी उंगलियों की त्वचा भी फट गई।
लेकिन अमित ने कहा कि अपने चौथे प्रयास में पदक जीतने से चूकने से उन्हें कोई निराशा नहीं हुई।उन्होंने कहा, मेरा जो सपना था, वह सच हो गया। जब से मैंने खेलों में भाग लेना शुरू किया, तब से पैरालंपिक में पदक जीतना मेरा सपना था और यह मेरी चौथी प्रतियोगता है- आप जानते हैं कि मैं टीम में सबसे सीनियर एथलीट हूं - तो क्या हुआ अगर मैं इसे नहीं जीत पाया, मेरे शिष्य ने इसे जीत लिया।
यह पूछे जाने पर कि क्या धर्मबीर का स्वर्ण शिक्षक दिवस से पहले उपहार था, अमित ने कहा कि यह उनकी किसी भी इच्छा से बढ़कर है।उन्होंने कहा, हम स्वर्ण पदक लेकर वापस जा रहे हैं और इससे बड़ी गुरु दक्षिणा नहीं हो सकती कि हम साथ थे, हम एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा कर रहे थे और उन्होंने स्वर्ण पदक जीता।
अमित ने कहा,सिर्फ शिक्षक दिवस का उपहार ही नहीं, उन्होंने आज मुझे सभी उपहार दिए हैं (जो कोई दे सकता है)। सिर्फ उन्होंने ही नहीं, बल्कि प्रणव (सूरमा) ने भी, क्योंकि जब मैंने भारत में क्लब थ्रो शुरू किया था तब कोई नहीं जानता था कि यह क्या है।
अमित ने कहा कि कई अन्य खिलाड़ियें की तरह जब उन्होंने 22 साल की उम्र में एक कार दुर्घटना के बाद पैरा एथलीट के रूप में क्लब थ्रो में कदम रखा तो उन्हें भी आलोचकों ने निशाना बनाया। यह एक ऐसी स्थिति है जो रीढ़ की हड्डी की चोट के कारण हाथों और पैरों की गतिशीलता को आंशिक रूप से या पूरी तरह से सीमित कर देती है।
अमित ने कहा कि जब उन्होंने शुरुआत की थी तब देश में महासंघ सहित कोई भी इस खेल के बारे में नहीं जानता था लेकिन अब उन्हें लगता है कि उनका मिशन पूरा हो गया है।
उन्होंने कहा, हमने एशियाई खेलों में पदकों का सूपड़ा साफ किया, आज हमारे पास दो पैरालंपिक पदक हैं - स्वर्ण और रजत - इसलिए मुझे लगता है कि मैंने जो मेहनत की थी, वह आज खत्म हो गई है।अमित ने कहा, अगली पीढ़ी ने कमान संभाल ली है। मैंने 12 साल तक इस स्पर्धा पर राजा की तरह राज किया है, मैंने उस दौरान दो एशियाई रिकॉर्ड बनाए और अगर मेरे अपने बच्चे (शिष्य) उन्हें तोड़ रहे हैं, तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। (भाषा)