डॉ. राजशेखर व्यास
'चौबीस खंबा' नामक स्थान महाकालेश्वर से बाजार की ओर जाते समय मार्ग में है। यह किसी द्वार का अवशेष है और बनावट बहुत प्राचीन मालूम होती है। यहां इसे विक्रमादित्य का द्वार कहा जाता है, परंतु यह ठीक नहीं है। संभवत: यह परमारकालीन है। मालूम होता है। यह महाकाल-वन में प्रवेश करने का द्वार होगा, क्योंकि
सहस्र पद विस्तीर्ण महाकाल वनं शुभम।
द्वार माहघर्रत्नार्द्य खचितं सौभ्यदिग्भवम्।।
इस श्लोक से विदित होता है कि एक हजार पैर विस्तार वाला महाकाल-वन है जिसका द्वार बेशकीमती रत्नों से जड़ित रत्नों से जड़ित उत्तर दिशा को है। इसके अनुसार उत्तर दिशा की ओर यही प्रवेश-द्वार है।
इस द्वार के अतिरिक्त 80 वर्ष पूर्व भी दूसरा सरल मार्ग महाकालेश्वर में जाने के लिए नहीं था। पीछे और मार्ग बने हैं। इसमें 24 खंबे लगे हुए हैं इसलिए नाम 24 खंबा कहा जाने लगा है। यह द्वार विशाल है। यहां महामाया और महालया देवी की पूजा होती है और पाड़ों की बलि दी जाती थी। यह प्रथा कब से थी, मालूम नहीं। 150 वर्ष पूर्व एक द्वार इसके आगे था, वहां एक शिला-लेख मिला है, उसमें लिखा है कि 12वीं शताब्दी में अनहिल पट्टन के राजा ने नागर बनियों को व्यापार के लिए उज्जैन लाकर बसाया है। अब यहां बलि प्रथा वर्जित है।