इस दान से भगवान विष्णु की निकटता हासिल होती है। अगर कोई श्रद्धालु मन में कोई खास कामना लेकर यह दान करता है, तो उसकी यह इच्छा पूरी होती है। अगर वह कामनाहीन होकर यह दान करता है, तो उसे विष्णु की कृपा हासिल होती है।
इस दान के लिए किसी सहायता की जरूरत नहीं होती। श्रद्धालु अकेले ही यह दान करता है। वह विधिपूर्वक या बिना कोई विधान किए यह दान कर सकता है। वैसे विधिपूर्वक यह दान करने से इसका फल ज्यादा मिलता है।
इस दान में अपना घर छोड़कर बाकी तमाम चीजें- कपड़ा, बर्तन, नकद, अन्न, रत्न, जेवर वगैरह दान कर दिए जाते हैं। दो तरह के दान बताए गए हैं। या तो श्रद्धालु अपनी इच्छा से सब-कुछ दान करके या फिर दान लेने वाले की इच्छा से दान करें। इस दान में श्रद्धालु अपने लिए दो वस्त्र छोड़ बाकी सब दान कर देता है।
आगे जानिए किस पद्धति से करें यह दान...
यह दान करने से पहले गणेशजी का पूजन सोलह उपचारों से करना चाहिए। फिर भगवान वेणीमाधव का पूजन कर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए- देवेषु शंख, चक्र, गदा धारण करने वाले आपको नमस्कार है। कमल नेत्र, भक्तों पर अनुग्रह करने वाले आपको नमस्कार है। मद्युकैटभ हन्ता लक्ष्मीकांत आपको नमस्कार है। माधव, अनंद, विश्वेश, देवताओं के राजा आपको नमस्कार है। कृष्ण, विष्णु, सच्चिदानंद स्वरूप, क्षीर समुद्र में सोने वाले, आनंद वासुदेव आपको नमस्कार है।
प्रभु, मैंने जो अनेक वस्तुएं एकत्रित की हैं, वह सब मैं आपकी प्रसन्नता के लिए ब्राह्मण को देता हूं। इस प्रार्थना के बाद दान लेने वाले ब्राह्मण का पूजन कर उसे सारी चीजें देनी चाहिए। इसके बाद अपनी इच्छा के अनुसार दक्षिणा देकर अपना यह दान भगवान को अर्पण कर देना चाहिए।
इस दान से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सिंहस्थ में यह दान करने से भगवान वेणीमाधव प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी कृपा से यह दान अक्षय हो जाता है।
आगे पढ़ें कौन-कौन कर सकता है यह दान...
धनी और दरिद्र दोनों ही यह दान कर सकते हैं।
गरीब के पास अपना जो कुछ है, उसे देकर वह इस दान का फल पा सकता है। उत्तर भारत के सम्राट हर्षवर्धन हर पांच-छह साल में सर्वस्व दान करते थे। इस दान का वर्णन चीनी यात्री ह्वेनसांग ने विस्तार से किया है।