Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

आज के शुभ मुहूर्त

(आंवला नवमी)
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल नवमी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-अक्षय आंवला नवमी
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

Guru Hargobind Singh : गुरु हरगोविंद सिंह महाराज का जीवन दर्शन

हमें फॉलो करें Guru Hargobind Singh : गुरु हरगोविंद सिंह महाराज का जीवन दर्शन
सिखों के छठवे गुरु श्री गुरु हर गोविंद सिंह 

सिखों के छठवे गुरु, गुरु हर गोविंद सिंह जी का जन्म बडाली (अमृतसर, भारत) में हुआ था। वे सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन सिंह के पुत्र थे। उनकी माता का नाम गंगा था। इस वर्ष 6 जून 2020, शनिवार को श्री गुरु हर गोविंद सिंह महाराज का प्रकाश पर्व मनाया जाएगा। इस अवसर पर गुरुद्वारा में कीर्तन दरबार, अखंड पाठ के साथ-साथ अटूट लंगर का आयोजन भी किया जाता है।
 
उन्होंने अपना ज्यादातर समय युद्ध प्रशिक्षण एवं युद्ध कला में लगाया तथा बाद में वे कुशल तलवारबाज, कुश्ती व घुड़सवारी में माहिर हो गए। उन्होंने ही सिखों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया व सिख पंथ को योद्धा चरित्र प्रदान किया। गुरु हर गोविंद एक परोपकारी एवं क्रांतिकारी योद्धा थे। उनका जीवन-दर्शन जन-साधारण के कल्याण से जुड़ा हुआ था। 
 
गुरु हर गोविंद सिंह ने अकाल तख्त का निर्माण किया था। मीरी पीरी तथा कीरतपुर साहिब की स्थापनाएं की थीं। उन्होंने रोहिला की लड़ाई, कीरतपुर की लड़ाई, हरगोविंदपुर, करतारपुर, गुरुसर तथा अमृतसर- इन लड़ाइयों में प्रमुखता से भागीदारी निभाई थी। वे युद्ध में शामिल होने वाले पहले गुरु थे। उन्होंने सिखों को युद्ध कलाएं सिखाने तथा सैन्य परीक्षण के लिए भी प्रेरित किया था। 
 
हर गोविंद जी ने मुगलों के अत्याचारों से पीड़ित अनुयायियों में इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास पैदा किया। मुगलों के विरोध में गुरु हर गोविंद सिंह ने अपनी सेना संगठित की और अपने शहरों की किलेबंदी की। उन्होंने 'अकाल बुंगे' की स्थापना की। 'बुंगे' का अर्थ होता है एक बड़ा भवन जिसके ऊपर गुंबज हो। 
 
उन्होंने अमृतसर में अकाल तख्त (ईश्वर का सिंहासन, स्वर्ण मंदिर के सम्मुख) का निर्माण किया। इसी भवन में अकालियों की गुप्त गोष्ठियां होने लगीं। इनमें जो निर्णय होते थे उन्हें 'गुरुमतां' अर्थात् 'गुरु का आदेश' नाम दिया गया। इस कालावधि में उन्होंने अमृतसर के निकट एक किला बनवाया तथा उसका नाम लौहगढ़ रखा। दिनोंदिन सिखों की मजबूत होती स्थिति को खतरा मानकर मुगल बादशाह जहांगीर ने उनको ग्वालियर में कैद कर लिया। 
 
गुरु हर गोविंद 12 वर्षों तक कैद में रहे, इस दौरान उनके प्रति सिखों की आस्था और अधिक मजबूत होती गई। वे लगातार मुगलों से लोहा लेते रहे। रिहा होने पर उन्होंने शाहजहां के खिलाफ बगावत कर दी और संग्राम में शाही फौज को हरा दिया। 
 
अंत में उन्होंने कश्मीर के पहाड़ों में शरण ली, जहां सन् 1644 ई. में कीरतपुर (पंजाब) में उनकी मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से ठीक पहले गुरु हर गोविंद ने अपने पोते गुरु हरराय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। सिख समुदाय में छठवे गुरु, गुरु हर गोविंद साहिब जी का प्रकाश पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Kabir ke dohe : संत कबीर दास जी के 13 प्रसिद्ध दोहे