1. गुरु हरि किशन सिंह जी (Guru Har Krishan) का जन्म सन् 1656 ई. में कीरतपुर साहिब में सिख धर्म के सातवें गुरु, गुरु हरि राय जी और माता किशन कौर के यहां हुआ था। गुरु हर किशन सिंह जी का जन्म श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। वे सिखों धर्म के आठवें गुरु थे।
2. गुरु हरि किशन जी बचपन से ही बहुत ही गंभीर और सहनशील थे। वे पांच वर्ष की उम्र में भी आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। उनके गुरु हरि राय जी अकसर हर किशन जी के बड़े भाई राम राय और उनकी कठीन परीक्षा लेते रहते थे। जब हर किशन जी गुरुबाणी पाठ कर रहे होते तो वे उन्हें सुई चुभाते, किंतु बाल हर किशन जी गुरुबाणी में ही रमे रहते।
3. उन्होंने बहुत ही कम समय में ही जनता के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करके लोकप्रियता हासिल की तथा ऊंच-नीच और जाति का भेदभाव मिटाकर जनसेवा का अभियान चलाया और लोग उनकी मानवता के सेवा भाव से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें बाला पीर कहकर पुकारने लगे।
4. पिता गुरु हरि राय जी ने उन्हें हर तरह से योग्य मानते हुए सन् 1661 में गुरुगद्दी सौंपी। उस समय उनकी आयु मात्र पांच वर्ष की थी। अत: उन्हें बाल गुरु कहा गया है।
5. चेचक की बीमारी से पीड़ितों के इलाज के दौरान वे भी इस बीमारी के चपेट में आ गए, जिस वजह से उनकी मृत्यु हो गई। गुरु हरि किशन जी का जीवन काल केवल आठ वर्ष का ही था। उन्होंने अपने जीवन काल में मात्र तीन वर्ष तक ही सिखों का नेतृत्व किया था। सिर्फ आठ वर्ष की उम्र में सन् 1664 ई. में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष चौदस के दिन गुरु हरि किशन सिंह जी 'वाहेगुरु' शबद् का उच्चारण करते हुए ज्योति-जोत में समा गए।