निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 10 जुलाई के 69वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 69 ) में श्रीकृष्ण के के प्रस्ताव के चलते कालयवन अकेला ही श्रीकृष्ण से अपनी सेना को छोड़कर युद्ध के लिए तैयार हो जाता है। फिर वह श्रीकृष्ण से पूछता है चलो कहां चलना है चलो? तब श्रीकृष्ण कहते हैं- वहां तक जहां हम दोनों को कोई देख ना सके.. चलो।
फिर श्रीकृष्ण उसको इशारे से उस ओर ले जाते हैं जहां वे ले जाना चाहते हैं। दोनों चले जाते हैं तब सेनानायक अपनी सेना से कहता है कि महाराज की आज्ञा है कि जब तक वो कृष्ण के साथ युद्ध करने नहीं लौट आते तुम सब यहीं खड़े रहोगे और नगर को चारों ओर से घेर लिया जाए ताकि नगर से कोई भी बाहर न जाने पाए। यह दृश्य अक्रूरजी नगर के द्वार के ऊपर खड़े होकर देख रहे होते हैं।
श्रीकृष्ण कालयवन को दूर ले जाते रहते हैं तो कालयवन इशारे से पूछता है और कहां चलना है? कृष्ण अंगुली के इशारे से बताते हैं वहां बस पास ही। कृष्ण उसे एक पहाड़ी के पास ले जाते हैं। कालयवन परेशान होकर कहता है लो अब तो एकांत आ गया। यह सुनकर श्रीकृष्ण आश्चर्य से कहते हैं एकांत आ गया...तब तो भाग जाना चाहिए। ऐसा कहकर वे हंसने लगते हैं और अपने गमछे को हवा में लहराकर हिलाते हैं। यह देखकर कालयवन कहता है...हा कायर..भगोड़े! धोखेबाज तू समझता है कि मुझसे बचकर भाग जाएगा। पर तू नहीं जानता कालयवन के हाथों तू नहीं बचकर जा सकता..मैं तूझे अभी पकड़ता हूं। ऐसा कहकर कालयवन श्रीकृष्ण के पीछे दौड़ लगा देता है।
श्रीकृष्ण भी हंसते हुए अपना गमछा लहराते हुए भागने लगते हैं। श्रीकृष्ण उसे पहाड़ी के ऊपर की ओर भगा ले जाते हैं। कालयवन भागते भागते कहता है कालयवन के हाथों उसका शिकार कभी नहीं बचता। मैं तुझे अभी पकड़ता हूं भगोड़े।... यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं मैं तुमसे बचने के लिए नहीं भाग रहा हूं कालयवन। मैं तो सोच रहा हूं कि दौड़ने से रक्त में कुछ गर्मी आएगी तो जिससे युद्ध करने में आनंद आएगा। ऐसा कहते हुए श्रीकृष्ण हंसते हुए फिर से गमछा लहराते हुए और तेज दौड़ने लगते हैं।
तब कालयवन पूछता है कितनी दूर भागना है? इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं बस कुछ दूर और..ऐसा कहकर वे फिर से गमछा लहराकर हंसने लगते हैं। कालयवन कुछ दूर भागने के बाद फिर पूछता है और कितनी दूर? तब श्रीकृष्ण कहते हैं अरे बाबा! बस थोड़ी दूर और।...उधर, अक्रूरजी को मथुरा के द्वार पर खड़ा हुआ दिखाया जाता है और वे देखते हैं कि सामने कालयवन की सेना खड़ी है।
इधर, कालयवन फिर से पूछा है और कितनी दूर? तब श्रीकृष्ण कहते हैं अरे बाबा! बस थोड़ी दूर और। यह सुनकर कालयवन कहता है अरे इस तरह से बहाने मत बना, मुझे तो लगता है कि तू युद्ध करने से डर गया है इसलिए रणछोड़ के भाग रहा है, हा रणछोड़ कहीं के।.. यह सुनकर श्रीकृष्ण भागते हुए कहते हैं रणछोड़! तुमने हमें रणछोड़ कहा..आह! कितना सुंदर नाम दिया है तुमने हमें। आज तक भक्तों ने हमारे करोड़ों नाम रखे, लेकिन इतना सुंदर नाम पहले किसी ने नहीं रखा...रणछोड़। आह आनंद आ गया।
यह सुनकर कालयवन कहता है कि अरे आनंद तो तब आएगा जब कालयवन तुम्हारे शरीर पर टांग पर टांग रखकर तुम्हारे शरीर के तो टूकड़े कर देगा।...यह सुनकर कृष्ण कहते हैं हमें पकड़ोगे तो हमारे टूकड़े करोगे ना। हम तो यही देख रहे हैं कि तुम तो तेज दौड़ने में ही हमसे हार गए हो। अरे जब पहली दौड़ के मुकाबले में ही हार जाओगे तो आगे क्या मुकाबला करोगे?
फिर झल्लाकर कालयवन पूछा है और कितनी दूर भागना है? तब श्रीकृष्ण कहते हैं अरे बाबा, बस थोड़ी दूर और। यह सुनकर कालयवन कहता है कि अरे मच्छर शेर के सामने कितनी देर तक उड़ सकता है..शेर की एक ही छलांग काफी है उसे कुचलने के लिए। यह कहकर वह और तेज दौड़कर छलांग लगाकर श्रीकृष्ण को पकड़ने का प्रयास करता है लेकिन श्रीकृष्ण गमछा लहराते हुए उसे छकाते और भगाते रहते हैं। अंतत: वे पहाड़ी के उस पार नीचे उतरकर झाड़ियों में लुप्त हो जाएंगे। कालयवन देखता है कि कहां चला गया।..
फिर श्रीकृष्ण को एक गुफा के पास खड़े हुए बताया जाता है। कालयवन श्रीकृष्ण को देखकर कहता है तुम समझते हो कि तुम मुझसे बच जाओगे। फिर वह गुफा की ओर दौड़ता है तो श्रीकृष्ण गुफा के अंदर चले जाते हैं। फिर कालयवन गुफा के पास आकर कहता है तुम समझते हो कि इस अंधेरी गुफा में छुपकर मुझसे बच जाओगे तो ये तुम्हारी भूल है। अरे! कालयवन ने तो बड़े बड़े शेरों को भी ऐसी गुफा में घुसकर मारा है और तुम तो एक मामूली इंसान हो। ये भी अच्छा हुआ कि तुम इस अंधेरी गुफा में खुद ही घुस गए। अब भागने की भी जगह नहीं मिलेगी। ऐसा कहकर वह हंसता हुआ गुफा में प्रवेश कर जाता है।
श्रीकृष्ण उसे देखकर गुफा में कहीं और चले जाते हैं। कालयवन गुफा में चारों ओर देखकर कहता है- तुम समझते हो कि इस अंधेरी गुफा में छुपकर मुझसे बच जाओगे तो ये तुम्हारी भूल है। फिर वह श्रीकृष्ण को ढूंढता हुआ गुफा के भीतर और प्रवेश कर जाता है। श्रीकृष्ण भी भीतर चलते ही जाते हैं और फिर वे ऐसे स्थान पर पहुंच जाते हैं जहां पर महाराज मुचुकुंद गहरी नींद में सोये रहते हैं। श्रीकृष्ण उन्हें ध्यान से देखकर मुस्कुराते हैं।
उल्लेखनीय है कि मुचुकुंद को इंद्र का यह वरदान प्राप्त रहता है कि जो कोई भी उसकी नींद में बाधा डालेगा उस पर तुम्हारी दृष्टि पड़ते ही वह उसी क्षण भस्म हो जाएगा।
श्रीकृष्ण धीरे से अपना गमछा महाराज मुचुकुंद के शरीर के उपर मुंह तक उढ़ाकर एक चट्टान के पीछे छुप जाते हैं। कुछ देर बाद कालयवन श्रीकृष्ण को ढूंढता हुआ वहां पहुंच जाता है और वह देखता है कि वही गमछा ओढ़कर श्रीकृष्ण तो सो रहे हैं। यह देखकर वह जोर हंसता है और कहता है मैंने जिंदगी में बड़े बड़े कायर और भगोड़े देखे थे पर तुम्हारे जैसा कोई नहीं देखा अब तक। वाह! क्या औरतों की तरह मुंह पर चादर तानकर सो गए हो। ऐसे खर्राटे भर रहे हो जैसे सचमुच बड़ी मुद्दत से सोए हुए हो। दिन दुनिया की कुछ खबर ही नहीं।..यह कहकर वह फिर से हंसने लगता है।
तब वह कहता है देखो, देखो मुझे क्रोध आ रहा है इसलिए आखरी चेतावनी देता हूं कि उठकर युद्ध करो अन्यथा यहीं पीस डालूंगा। फिर कुछ देर रुककर वह कहता है आज तक मैंने कभी सोते हुए शत्रु पर कभी वार नहीं किया। इससे मेरी वीरता को लाज लगती है परंतु आज तुम मुझे ऐसा वीरता विरुद्ध कार्य करने पर मजबूर कर रहे हो क्योंकि मैं जानता हूं कि तू झूठमुठ का सो रहा है।..कुछ देर रुकने के बाद भी कुछ नहीं होता है खर्राटे जारी रहते हैं तो वह लात मारकर कहता है उठ।.. फिर भी खर्राटे जारी रहते हैं तो वह फिर से लात मारकर कहता है...उठ।..फिर वह तीसरी बार लात मारता है तब फिर अटक अटक कर खर्राटे जारी रहते हैं तो वह चौथी और पांचवीं बार लात मारता है तो सोए हुए मुचुकुंद में कुछ हलचल होती है और उनके खर्राटे रुक जाते हैं।
कालयवन लात पर लात मारकर कहता है उठ..उठ..उठ। तब मुंह पर चादर ओढ़े सोए मुचुकुंद की नींद खुल जाती है और वह पूछता है कौन दुष्ट है?...यह सुनकर कालयवन चीखकर कहता है तेरा काल...कालयवन। उठ नहीं तो अभी पैर के नीचे तेरा सिर कुचल दूंगा। ऐसा कहकर कालयवन पुन: लात मार देता है। मुचुकुंद अंगड़ाइयां लेते हैं तो कालयवन उसके मुंह पर पड़ी चादर हटा देता है और फिर उसे यह देखकर आश्चर्य होता है कि यह तो श्रीकृष्ण नहीं है। कालयवन मुचुकुंद को सिर से लेकर पांव तक देखता है कि उसका शरीर तो घास से ढंका हुआ है। आंख बंद किए मुचुकुंद पूछता है कि ये किस दुष्ट ने हमें नींद से जगाया? ऐसा कहकर मुचुकुंद बड़ी मुश्किल से अपने पैर हिलाकर घुटने मोड़ता है और अपना हाथ हिलाकर घास से बाहर निकालता है।
यह देखकर कालयवन आश्चर्य से खड़ा रहता है। आंख बंद किए राजा मुचुकुंद फिर से पूछते हैं कि ये किस दुष्ट ने हमें नींद से जगाया? ऐसा कहते हुए मुचुकुंद बड़ी मुश्किल से बैठ जाते हैं और फिर वे अपनी आंखें खोलने का प्रयास करते हैं। वे पहले जहां कालयवन खड़ा रहता है उसकी विपरित दिशा में देखते हैं तो उन्हें धुंधला धुंधला नजर आता है फिर वे धीरे धीरे कालयवन की दिशा में देखते हुए आंखें झपकाते हुए पलटते हैं। कालयवन पहले तो उन्हें धुंधला धुंधला सा नजर आता है। फिर वह स्पष्ट नजर आने लगता है तब मुचुकुंद उसे देखते हैं। कालयवन अचंभित खड़ा रहता है। फिर मुचुकुंद उसे क्रोधवश देखते हैं तो उनकी आंखों से अग्नि निकलती है जिससे तक्षण ही कालयवन जलकर भस्म हो जाता है।
उसके बाद सहसा ही वहां चारों ओर प्रकाश फैला जाता है यह देखकर मुचुकुंद को समझ में नहीं आता है कि यह क्या हुआ। उन्हें चारों ओर दिव्य उजाला नजर आता है। उसे समझ में नहीं आता है कि इस अंधेरी गुफा में ये उजाला कैसे फैल गया। वह देखता है कि सामने एक तेज है। उस तेज से श्रीकृष्ण निकलकर खड़े हो जाते हैं। वह अचरज से श्रीकृष्ण को देखते हैं। श्रीकृष्ण उन्हें आशीर्वाद देते हुए नजर आते हैं। मुचुकुंद हाथ जोड़ लेते हैं लेकिन वह पहचान नहीं पाते हैं कि आखिर ये दिव्य पुरुष कौन है। तब वे पूछते हैं- हे महाप्रकाश आप कौन हैं? जो तेज को भी तेज प्रदान करते हैं कहीं आप वो अग्निदेव तो नहीं अथवा आप सूर्य देव तो नहीं? परंतु आपके तेज में गर्मी नहीं है इसलिए मैं मानता हूं देवताओं के आराध्य भगवान ब्रह्मा, विष्णु या शिव में से कोई एक हैं। हे महातेज यदि आपकी रुचि है तो मुझे आपके जन्म, कर्म और गोत्र को बताने की कृपा करें।
यह सुनकर मुस्कुराते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं- राजन! मेरे हजारों जन्म, हजारों कर्म और सहस्रों नाम है जिनकी गिनती मैं स्वयं भी नहीं कर सकता। ये संभव है कि कोई धरती के कणों की गिनती कर ले परंतु मेरे जन्म, कर्म और गुणों की गिनती कोई अनंत जन्मों तक नहीं कर सकता। फिर भी प्रिय मुचुकुंद क्योंकि तुमने कई जन्मों तक मेरी आराधना की है इसलिए मैं इस प्रश्न के उत्तर में तुम्हें अपने वर्तमान जन्म और नाम का वर्णन करता हूं। सुनों! ब्रह्माजी ने मुझसे धर्म की रक्षा और असुरों का संहारा करने की प्रार्थना की थी। उनकी प्रार्थना को स्वीकार करके मैंने यदुवंश में वसुदेवजी के यहां अवतार ग्रहण किया है। इसलिए सब लोग मुझे वासुदेव श्रीकृष्ण कहते हैं। अब तक में कालनेमि असुर का जो कंस के रूप में पैदा हुआ था और उसके साथ प्रलंब आदि दूसरे कई असुरों का संहार कर चुका हूं। ये यवन राजा जो मेरी ही प्रेरणा से तुम्हारी तीक्ष्ण दृष्टि से भस्म हो गया, इसका नाम कालयवन था। राजन! तुम पर प्रसन्न होकर मैंने तुम्हें अपना गूढ़ रहस्य का वृत्तांत सुना दिया है। तुमने कई जन्मों तक मेरी आराधान की है उसका फल देने मैं तुम्हारे पास इस गुफा में आ गया हूं। सो हे राजऋषि मुचुकुंद आज तुम्हारी जो भी अभिलाषा है मुझसे मांग लो।
यह सुनकर राजा मुचुकुंद बताते हैं कि अब मुझे कोई सांसार की मोह माया नहीं रही। हे अंतरयामी मैं आपके चरणों की सेवा के अतिरिक्त और कोई वर नहीं मांगना चाहता। केवल मुझे अपनी अनन्य भक्ति का ही वर दीजिये। यह सुनकर श्रीकृष्ण अपना चतुर्भुज रूप दिखाते हैं और कहते हैं महाराज मुचुकुंद तुम्हारी मती और तुम्हारा निश्चय बड़ा पवित्र और उच्च कोटि का है। मैंने तुम्हें हर प्रकार का वर देने का प्रलोभन दिया। फिर भी तुम्हारी बुद्धि कामना के अधीन नहीं हुई। मैं तुम्हारी इस भावना से अति प्रसन्न हूं। इसलिए तुम अपने समस्त मनोभावों को मुझे समर्पित कर दो और बद्रिकावन में गंधमादन पर्वत पर जाकर तपस्या करो। तुमने अपने इस जन्म में क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए वन में शिकार करके बहुत से जीवों का वध किया है। इसलिए घोर तपस्या द्वारा अपने उस पाप को धो डालो जिससे तुम विषयवासना से शून्य मेरी भक्ति द्वारा मेरे विशुद्ध परमात्मा रूप को प्राप्त कर लोगे। तथास्तु.. तथास्तु तथास्तु। जय श्रीकृष्णा ।