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Shri Krishna 3 July Episode 62 : जब उद्धवजी ले जाते हैं कृष्ण का पत्र तो उसे फाड़ देती हैं गोपियां

हमें फॉलो करें Shri Krishna 3 July Episode 62 : जब उद्धवजी ले जाते हैं कृष्ण का पत्र तो उसे फाड़ देती हैं गोपियां

अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 3 जुलाई 2020 (22:11 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 3 जुलाई के 62वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 62 ) में श्रीकृष्ण और उद्धव का संवाद प्रेमी और ज्ञानी पर जारी रहता है। उद्धव को ब्रह्म ज्ञान का घमंड रहता है और वे कहते हैं कि आपने भोलीभाली गोपिकाओं को कौतुक से अपने प्रेमजाल में फांस रखा है। आपको उन्हें मोहजाल से निकालकर सच्चा ब्रह्म ज्ञान देना चाहिए। तब कृष्‍ण कहते हैं कि मैं तो उन्हें सच्चा ज्ञान देना चाहता हूं लेकिन वे ही नहीं लेना चाहती हैं। आगे...
 
श्रीकृष्ण यह सुनकर मुस्कुराते हैं और फिर गंभीर होकर कहते हैं, चलो मान लिया कि मैंने घोर अन्याय किया है परंतु अब तो परिस्थिति इतनी बिगड़ गई है तो उसके लिए मैं क्या कर सकता हूं? तब उद्धव कहते हैं क्या कर सकते हैं ये भी मैं बताऊं प्रभु। कृष्ण कहते हैं हां बताओ ना।
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
तब उद्धव गर्वित होकर कहते हैं, आप ये माया मोह की लहरें उनकी ओर न भेजकर उनकी ओर ज्ञान की किरणें भेजो। मोह के अंधकार में फंसे उनके जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाओ। जिससे वो आपके इस सुंदर नर शरीर के मोह में फंसने की जगह आपके वास्तविक सच्चिदानंद निर्गुण स्वरूप को देखे जिससे उन्हें शाश्वत शांति की प्राप्ति हो। बोलो मैं सच कह रहा हूं कि नहीं?
 
यह सुनकर कृष्ण मुस्कुरा देते हैं और वे समझ जाते हैं कि उद्धव में ज्ञान का अहंकार है।
 तब वे सोचते हैं कि अब इस भक्त का कल्याण करके सच्चा ज्ञान देना ही होगा। फिर वे उद्धव से कहते हैं, सच तो आप कह रहे हैं उद्धव भैया, परंतु जब भी मैं उनकी ओर ज्ञानी की किरणें भेजने का प्रयास करता हूं तो वे अपनी आंखें बंद कर लेती हैं। उन्हें तो प्रेम के ही अंधकार में ठोकरें खाने का मजा आता है तो मैं क्या करूं? यह सुनकर उद्धव कहते हैं ये सब झूठ है। आप यदि चाहो तो उन्हें सच्चा ब्रह्मज्ञान दे सकते हो, परंतु आप ये चाहते ही नहीं कि उनकी मुक्ति हो जाए। उनका कल्याण हो।
 
यह सुनकर कृष्‍ण कहते हैं, मेरा विश्वास करो उद्धव भैया मैं सचमुच उनका कल्याण करना चाहता हूं। मैं तो उन्हें मुक्ति देने के लिए तैयार हूं। परंतु वो उसे स्वीकार ही नहीं करती तो मैं क्या करूं? तब उद्धव कहते हैं, आप सचमुच उन्हें मुक्ति देना चाहते हैं या झूठमुठ कह रहे हैं? तब श्रीकृष्‍ण कहते हैं मुझे मैया की शपथ। मैं इसी क्षण उन्हें मुक्ति दे सकता हूं परंतु वे स्वीकार तो करें।
 
यह सुनकर उद्धव कहते हैं, ये कैसे हो सकता है कि स्वयं भगवान मानव को मुक्ति देना चाहते हो और वे मुक्ति न लें? वो मानव तो कोई पागल ही होगा। यह सुनकर कृष्‍ण कहते हैं वे पागल ही तो हैं उद्धव भैया। जो प्रेम करता है वो पागल ही तो होता है और वे सभी की सब मेरे प्रेम में पागल है। आपने ठीक ही पहचाना उद्धव भैया अब उन पागलों को कौन समझाए और कैसे समझाए?
 
यह सुनकर उद्धव कहते हैं देखो कृष्ण मानव पागल हो सकते हैं किंतु उनकी आत्मा पागल नहीं हो सकती। आत्मा तो आपका ही प्रतिबिंब है। यदि बिंब पागल नहीं तो प्रतिबिंब पागल कैसे हो सकता है। ये तो अनहोनी बात है। तब कृष्‍ण कहते हैं उद्धव भैया यह अनहोनी तो हो रही है। सबकुछ उल्टा-पुल्टा हो गया है। प्रतिबिंब पागल होकर अब उसने बिंब को भी पागल कर दिया है। अब यह बताना कठिन हो गया है कि भगवान और भक्त दोनों में से बड़ा पागल कौन है?...इसीलिए तो आपसे उपाय पूछ रहा हूं।..उद्धव भैया उनका कहना है कि भक्त को मुक्ति की आवश्यकता ही नहीं।..
 
दोनों में बहुत देर तक तर्क-वितर्क होता रहता है, अंत में कृष्ण कहते हैं कि मेरी आपसे प्रार्थना है उद्धव भैया कि अब ये ज्ञान आप ही उन्हें दें। क्योंकि मैंने उन्हें प्रेम का ऐसा चक्कर दिया है, इतनी उल्टी सीधी बातें समझाई है कि अब मैं उन्हें निराकार परमेश्वर का ज्ञान प्रदान करने जाऊं तो वह मुझे झूठा समझेंगे। अब तो उनके उद्धार का एक ही तरीका है कि आप जैसे कोई परम ज्ञानी जाकर उन्हें मेरे वास्तविक रूप का ज्ञान प्रदान करें। उन्हें निराकार की साधना का गुरु मंत्र सीखा दें तो उन बेचारी आत्माओं का कल्याण हो जाएगा। ये बड़े पुण्य का काम है उद्धव भैया और इसे आप मेरा काम समझकर पूर्ण करें। आज इस धरती पर आपसे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं है उद्धव भैया। 
 
उद्धव को यह सुनकर गर्व महसूस होता है और वे कहते हैं कि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि आप यहां बैठे बैठे ही उनके मन में ज्ञान का प्रकाश डाल सकते हो परंतु यदि आप संसार को ब्रह्मज्ञान की शक्ति दिखाने के लिए लीला करना चाहते हो तो, तो ऐसा ही सही। मैं इस लीला में आपका साथ अवश्य दूंगा। मैं अवश्य गोकुल वृंदावन जाऊंगा और वहां आपके प्रेम और मोह की पीड़ा के कारण छाई हुई उस उदासी के अंधेरे वातावरण में ज्ञान का ऐसा दीपक जला दूंगा कि चारों और ब्रह्मज्ञान का प्रकाश फैल जाएगा। उन सबको सुख और दु:ख की झूठी मायावी दुनिया से निकालकर आपके सच्चिदानंद स्वरूप की सच्ची दुनिया में लाकर खड़ा कर दूंगा। जहां वे अपकी अविनाशी, निराकार रूप का आनंद ले सकेंगे।
 
यह सुनकर श्रीकृष्‍ण हाथ जोड़कर कहते हैं ऐसा ही करना उद्धव भैया, ऐसा ही करना। ये मुझ पर आपका अनन्य उपकार होगा। तब उद्धव गर्व से कहते हैं आपकी आज्ञा है तो ऐसा ही करूंगा। परंतु इसमें एक समस्या है! पहली यह कि वह मुझे पहचानती नहीं और दूसरी यह कि जो मैं कहूंगा उस पर वह भरोसा क्यों करेंगी? जब तक उन्हें ये विश्वास नहीं हो जाता कि मैं जो कुछ कह रहा हूं आपकी आज्ञा से ही कह रहा हूं। अर्थात आप भी ऐसा ही चाहते हैं तब तक वह मेरी बात कैसे सुनेंगी? यह सुनकर कृष्ण कहते हैं- बस इतनी सी बात इसका तो बड़ा सरल उपाय है। मैं अभी अपने हाथों एक पत्र लिख देता हूं कि आपको मैंने ही उनके उद्धार के लिए वहां भेजा है और जो कुछ आप कह रहे हैं उसे स्वयं मेरा संदेश माना जाए। यह सुनकर उद्धव कहते हैं तो बस, सब ठीक हो जाएगा। कृष्ण कहते हैं चलिये अभी पत्र लिख देता हूं। 
 
फिर श्रीकृष्ण गोपिकाओं के लिए एक पत्र लिखते हैं। इधर श्रीकृष्ण पत्र लिखते हैं और उधर वृंदावन गोकुल की गोपियां व्याकुल हो जाती हैं। उन्हें चारों ओर श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनाई देने लगती हैं। उस धुन को सुनकर राधा सहित सभी एक जगह एकत्रित हो जाती हैं। उधर मधुमन मन मोहन लिख रहे हैं कि हमको जाओ भूल। उद्धव उनके लेखन को देखते रहते हैं। श्रीकृष्‍ण लिखते हैं कि तुम्हें मेरे मानवीय रूप में नहीं फंसना चाहिए। तुम जो प्रेम करती हो वह केवल मोह का बंधन है इसमें दुख ही दुख है। इसलिए उद्धवजी को मैं तुम्हारे पास सच्चे ज्ञान के लिए भेज रहा हूं जो योग, ध्यान और गूढ़ ज्ञान की बातें समझाएंगे।...श्रीकृष्‍ण ने ऐसी कई बातें लिखी और उद्धवजी को पत्र सौंप दिया।
 
उद्धव वह पत्र लेकर रथ पर सवार होकर वृंदावन के लिए निकल पड़ते हैं। कुछ दूर जाने के बाद तभी श्रीकृष्‍ण को याद आता है कि मैया बाबा के लिए तो कुछ संदेशा ही नहीं दिया तो वे पीछे से उद्धव भैया को आवाज लगाकर कहते हैं उद्धव भैया तनिक रूक जाएं मैया बाबा के लिए तो कुछ संदेशा ही नहीं दिया। वे समझेंगे कि मैं मथुरा के वैभव में उन्हें भूल गया हूं। उद्धव भैया रूक जाओ, मैया बाबा के लिए संदेशा तो लेते जाओ, लेकिन उद्धव वह पुकार सुन नहीं पाते और चले जाते हैं।
 
श्रीकृष्‍ण व्याकुल होकर पुकारते ही रह गए। तब वे अपना तन छोड़कर रथ के पीछे भागने लगे। फिर वे उद्धव के सामने प्रकट होकर कहते हैं कि हे उद्धव भैया मैया से कह दीजो कि हमने मैया तोहे ना बिसारो।...यह संदेश श्रीकृष्ण उद्धव को गाकर सुनाते हैं।
 
उद्धव के ब्रज आगमन की सूचना सभी ओर फैल जाती है और सभी गोपियों को पता चल जाता है कि वे हमारे लिए कोई पत्र लेकर आ रहे हैं। सभी गोपियां उन्हें मार्ग में ही रोक लेती हैं। उद्धव यह देखकर आश्चर्य करते हैं। गोपियों को उद्धव के हाथ में रखे उस पत्र में श्रीकृष्ण नजर आते हैं। वे सभी उद्धव के रथ पर चढ़ जाती हैं और उनके हाथ से पत्र छीनने लग जाती हैं और कहती हैं क्या संदेश है जल्दी बताओ। उद्धव कहते हैं अरे ये पत्र फट जाएगा मैं बताता हूं तनिक रूको। उद्धव उन्हें रोकते हैं लेकिन सखियां तो मानती ही नहीं।
 
एक सखी पत्र छीन कर ले जाती है तो सभी उसकी पीछे भागती हैं। फिर एक कहती हैं मेरा नाम कहां लिखा है? बताओ ना मेरा नाम कहां लिखा है इसमें। तब दूसरी सखी कहती हैं मुझे पढ़ना कहां आता है। तू स्वयं ही पढ़ ले ना। यह सुनकर वह कहती है मुझे पढ़ना आता तो मैं पूछती क्या? तब दूसरी ग्वालन वह पत्र छीनकर कहती हैं अरी नाम पढ़कर क्या करेगी? ये चिट्ठी हमारे कृष्‍ण ने लिखी है। उसके हाथों ने इसे स्पर्श किया है। समझ ले ये चिट्ठी नहीं हमारे कान्हा के हाथ हैं। बस इसी को हृदय से लगा ले। सभी भी ऐसा करने लगती हैं।
 
गोपिकाओं के गोल घेर के बाहर उद्धव खड़े-खड़े ये दृश्य देखकर कहते हैं ओह हो। ऐसा मत करो ये चिट्ठी फट जाएगी। तुम्हारे अश्रू से सारे अक्षर धूल जाएंगे। ये क्या कर रही हो तुम लोग? अरे जानती नहीं क्या कि ये फट जाएगी। उद्धव क्रोध में कहते हैं अरे ये क्या कर रही हो। उद्धव देखते ही रह जाते हैं और गोपिकाएं पत्र को फाड़कर अपने-अपने हिस्से का पत्र रख लेती हैं और जिसके हाथ में जो टूकड़ा आता है उसे ही वह अपने हृदय से लगा लेती हैं।
 
उद्धव को कुछ भी समझ में नहीं आता कि अब क्या करूं। वे गोपियों के अश्रू प्रेम और व्याकुलता को बस देखते ही रहते हैं। गोपियां उस पत्र के टूकड़े को कभी अपने हृदय से लगाती तो कभी उसे चुमती और कभी अपने सिर से लगाकर रोती हैं। उद्धव कागज के इस टूकड़े से गोपिकाओं के प्रेम को देखकर अचंभित हो जाते हैं। फिर वे एक गोपी के हाथों से चिट्ठी का टूकड़ा छीनकर कहते हैं ये कैसी मूर्खता की बातें कर रही हो लाओ ये मुझे दो।
 
वह सखी कहती हैं उद्धवजी दे देंगे पर पहले ये बताओ कि इसमें हमारा नाम स्थान किस स्थान पर लिखा है? उद्धवजी कहते हैं तुम्हें पढ़ना आता है? तब दूसरी गोपी कहती हैं यदि हमें पढ़ना आता तो हम तुमसे क्यों पूछते? तब दूसरी सखी कहती हैं कि हमें बस इतना बता दें कि इस चिठ्ठी में हममें से किस-किस का नाम किस-किस स्थान पर लिखा है तो बाद में हम उस स्थान को तुम लें और फिर आप इसे लेकर भले ही चले जाना।
 
उद्धव सभी से पत्र के टूकड़े एकत्रित करने के बाद कहते हैं कि इस पत्र में किसी का भी नाम किसी भी स्थान पर नहीं लिखा हुआ है।...यह सुनकर गोपियां अचंभित हो जाती हैं। फिर एक गोपी कहती हैं क्या राधा का भी नाम नहीं लिखा है उद्धवजी? तब उद्धवजी क्रोधित होकर कहते हैं नहीं। इस पत्र में राधा का भी नाम नहीं लिखा है।...यह सुनकर गोपियां और भी ज्यादा अचंभित हो जाती हैं। जय श्रीकृष्ण।
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 

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