निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 5 जून के 34वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 34 ) में अक्रूरजी बलराम और रोहिणी को रातोंरात गोकुल से बहार निकालने की योजना और श्रीकृष्ण को सुरक्षा के दायरे में मथुरा ले जाने की योजना बताते हैं।
उधर, गांव के घर-घर में यह चर्चा चल पड़ती है कि कान्हा मथुरा में कंस का उत्सव देखने जा रहा है और यह भी चर्चा चल पड़ती है कि कृष्ण यशोदा का पुत्र नहीं है वह तो देवकी का पुत्र। यह खबर तेजी से फैल जाती है कि श्रीकृष्ण यशोदा का नहीं बल्कि देवकी का आठवां पुत्र है जिसे कंस से बचाने के लिए रातोंरात वसुदेवजी गोकुल छोड़ आए थे।
उधर, रात में यशोदा आंखों में आंसू भरे बहुत ही दुखी भाव से पलंग पर सोए श्रीकृष्ण को देखती है। उसे श्रीकृष्ण के साथ अब तक बिताए दिनों की याद आती है और फिर वहां से लौटकर अपने कक्ष में चली जाती है।
दूसरी ओर रोहिणी जाकर बलराम को उठाती है। बलराम कहते हैं कि क्या प्रभात हो गई है? रोहिणी कहती है नहीं, अभी आधी रात है तुम जल्दी उठो, तुम्हें यहां से जाना होगा अक्रूरजी के साथ। बलराम पूछते हैं पर कहां? रोहिणी कहती हैं अक्रूरजी तुम्हें रास्ते में सब बता देंगे, अब जल्दी उठो।
उधर, अक्रूरजी को उनके गुप्तचर आकर बताते हैं कि रास्ते में जगह-जगह हमारे साथी तैयार हैं। नाव का भी प्रबंध हो गया है। बस अब राजकुमार को जल्दी लेकर आइये। अक्रूरजी कहते हैं अच्छी बात है मैं उन्हें अभी लेकर आता हूं।
इधर, बलराम पूछते हैं कि मुझे अकेला क्यों भेज रही हो? कान्हा क्यों नहीं जाएगा मेरे साथ? तब रोहिणी कहती हैं कि कान्हा तुम्हारे साथ नहीं जा सकता। यह सुनकर बलरामजी कहते हैं कि कान्हा नहीं जाएगा तो मैं भी कान्हा को छोड़कर नहीं जा सकता हां।
रोहिणी कहती है हठ ना करो वह मथुरा जा रहा है।
तब बलराम कहते हैं मथुरा! अकेले? रोहिणी कहती हैं हां। बलराम कहते हैं नहीं नहीं, मैं कान्हा को अकेले मथुरा नहीं जाने दूंगा। तब रोहिणी कहती हैं तू उसे कैसे रोक लेगा दाऊ? दाऊ कहते हैं क्यूं? तब रोहिणी कहती हैं वह अपने माता पिता की आज्ञा से मथुरा का उत्सव देखने जा रहा है। तब बलराम कहते हैं कि ये झूठ है उसे मैया और बाबा ने कैसे आज्ञा दे दी? वे जानते नहीं कि मथुरा में उसके लिए संकट है? यह सुनकर रोहिणी पूछती है, संकट? कैसा संकट दाऊ?
यह सुनकर बलराम बात बदलकर कहते हैं सब लोग जानते हैं कि कंस कितना क्रूर और निर्दयी है। अरे भोजन के समय कल यशोदा मैया ही तो कह रही थी कि वहां का वातावरण बालकों के लिए ठीक नहीं है। फिर कैसे आज्ञा दे दी उन्होंने? मैं अभी जाकर यशोदा मैया से पूछकर आता हूं कि वह जानबूझकर उन्हें वहां क्यों भेज रही है? मैं कान्हा से भी पूछकर आता हूं कि उसने मेरे बिना अकेले जाना कैसे स्वीकार कर लिया? ऐसा कहते ही बलरामजी कान्हा को पुकारने लग जाते हैं। उनकी पुकार सुन कान्हा की नींद खुल जाती है।
रोहिणी कहती है, चुप रहो दाऊ, चुप रहो। कान्हा सो रहा है। तब दाऊ कहते हैं सो रहा है, तो क्या मैं उसे इसी तरह सोता हुआ छोड़कर चला जाऊंगा? नहीं नहीं, मैं उसे साथ लेकर पहले यशोदा मैया से पुछूंगा। यह कहते हुए बलरामजी कान्हा को पुकारते हुए कक्ष से बाहर जाने लगते हैं तो अक्रूरजी द्वार पर उन्हें रोक लेते हैं और कहते हैं कि यशोदा भाभी ने यह आज्ञा नहीं दी।
तब बलराम कहते हैं कि मां तो कह रही थी कि उसके माता-पिता ने ये आज्ञा दी है। फिर अक्रूरजी भीतर आकर कहते हैं कि उन्होंने ठीक कहा ये आज्ञा कृष्ण के माता-पिता ने ही दी है। तभी श्रीकृष्ण भी द्वार पर आकर खड़े हो जाते हैं लेकिन अक्रूजी और बलराम की उनकी ओर पीठ रहती है। तब बलराम अक्रूरजी से तेज आवाज में पूछते हैं कि मैया बाबा नहीं तो कौन है उनके माता-पिता? अक्रूरजी चुप रहते हैं तो बलराम चीख कर कहते हैं तो कौन है उनके माता-पिता जिन्होंने आज्ञा दी है? उनकी चीख को दूसरे कक्ष में नंदबाबा और यशोदा मैया भी सुन लेती हैं।
अक्रूरजी कहते हैं राजकुमार ये भेद हम आपको अभी बताना नहीं चाहते थे परंतु आपके हठ ने हमें विवश कर दिया है तो सुनिये, कृष्ण के पिता भी वही है जो आपके भी पिता हैं। यह सुनकर बलरामजी चौंक जाते हैं। पीछे खड़े श्रीकृष्ण भी यह सुन लेते हैं।
अक्रूरजी कहते हैं वसुदेवजी। हां, आप दोनों वसुदेवजी के पुत्र हैं और आपस में भाई हैं दोनों। पीछे खड़े श्रीकृष्ण मुस्कुरा रहे होते हैं। अक्रूरजी आगे कहते हैं कि अंतर केवल इतना है कि आपने देवी रोहिणी के गर्भ से जन्म लिया और कृष्ण ने देवकी के। ये भेद हमने इतने वर्षों से आप दोनों की सुरक्षा के लिए छुपा रखा था। परंतु अब कंस को इसके बारे में पता चल गया है इसलिए उसने कृष्ण को मथुरा के उत्सव में आने का न्योता दिया है। सौभाग्यवश उसे अब तक आपका पता नहीं चला कि आप भी वसुदेव के पुत्र हैं। इसलिए हमने ये योजना बनाई है कि कृष्ण के मथुरा जाने से पहले आपको रातोंरात यहां से निकालकर किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जाए।
यह सुनकर बलरामजी क्रोधित होकर कहते हैं कि परंतु आपने ये कैसे सोच लिया कि मैं कान्हा को संकट में छोड़कर छिपकर किसी सुरक्षित स्थान पर चला जाऊंगा? पीछे खड़े कृष्ण मुस्कुराते रहते हैं। आगे बलराम कहते हैं कि आपकी सारी बातें सुनने के पश्चात कृष्ण के साथ मेरा रहना और भी आवश्यक हो गया है। इसलिए जहां-जहां कान्हा जाएगा वहां-वहां मैं जाऊंगा, और कहीं नहीं।
यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं कि महाराज शूरसेन की दो में से हमें एक निशानी बचाना है। इसलिए हमने यह निर्णय लिया है कि आपको बचा लिया जाए। तब क्रोधित होकर बलरामजी कहते हैं नहीं अक्रूरजी नहीं। बचेगी तो दोनों निशानियां या भले ही दोनों मिट जाए। इस समय बड़ा भाई होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि अपने छोटे भाई की सुरक्षा करूं। संकट के समय में उसे छोड़कर ना जाऊं। मैं तो पैदा ही हुआ हूं अपने कान्हा के लिए और वो ही मेरा प्रभु भी है। यह सुनकर श्रीकृष्ण भी भावुक हो जाते हैं। यह कहते हुए बलराम कहते हैं कि बस अब चलिये मेरे साथ मैं उसे सबकुछ बता देता हूं। यह कहते हुए जैसे ही पलटकर बलराम जाने लगते हैं तो उन्हें द्वार पर खड़े श्रीकृष्ण नजर आते हैं।
श्रीकृष्ण कहते हैं मुझे बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैंने यहां खड़े-खड़े सारी बातें सुन ली है।
अक्रूरजी, रोहिणी, यशोदा मैया और नंदबाबा सभी चौंक जाते हैं। यह सुनकर बलराम कहते हैं तो बोलो कान्हा मैं ठीक कह रहा हूं ना? कान्हा कहते हैं हां दाऊ भैया। बलराम कहते हैं कि तो कह दो इनसे कि जो मैं कह रहा हूं वही होगा हां। कान्हा कहते हैं अवश्य यही होगा। इस जन्म में आपकी आज्ञा का पालन करना और कराना यही मेरा धर्म है। यह सुनकर बलराम के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
फिर कान्हा अक्रूरजी से कहते हैं, अक्रूरजी आप हम दोनों के लिए जितने चिंतित हो रहे हैं। उतनी चिंता करने की आपको आवश्यकता नहीं है।
अक्रूरजी कहते हैं, कान्हा तुम ये क्या कह रहे हो? तुम संकट की गंभीरता को नहीं जानते हो। यह बचपन की बातें नहीं। बुद्धि से काम लेना चाहिए। इस समय जीवन और मृत्यु का प्रश्न है। यह सुनकर कान्हा कहते हैं जब कोई बुद्धिमान अपने हाथों से जीवन और मृत्यु को आगे-पीछे करने की भूल करता है तो यह सही नहीं है क्योंकि जीवन और मृत्यु तो विधाता के हाथ में है। मृत्यु आनी है तो वह सुरक्षित स्थान पर भी आएगी अक्रूरजी। इसलिए मृत्यु के भय से हम दोनों को मत डराइये। हम और दाऊ भैया इकट्ठे मथुरा जाएंगे और अवश्य जाएंगे। क्योंकि इतनी सारी बातें सुनने के बाद अब हमें भी महाराज कंस से मिलने की उत्कंठा हो रही है और यही हमारा निर्णय है। क्यों दाऊ भैया? यह सुनकर दाऊ भैया कहते हैं हां।
फिर कृष्ण कहते हैं कि परंतु इस सब बातों के बीच हमें आपकी एक बात अच्छी नहीं लगी कि आपने कहा की यशोदा मेरी मैया नहीं। आपने इतना बड़ा झूठ कैसे बोल दिया? अक्रूरजी जन्म से लेकर आज तक मेरे लिए यशोदा ही मेरी मैया रही है और सदा मेरी मैया रहेंगी। यह सुनकर यशोदा मैया की आंखों से झर रहे आंसू देखते ही बनते हैं।
अक्रूरजी कहते हैं परंतु आपका जन्म...अक्रूरजी को बीच में ही रोककर कृष्ण कहते हैं कि मुझे जन्म किसने दिया मैं नहीं जानता। परंतु मेरी याद में पहली बार जिसने मुझे पुत्र कहकर बुलाया था वह मेरी यशोदा मैया ही तो थी। जिसने मुझे गोद में बिठाया, जिसने मुझे ममता का दूध पिलाया और जिसने मुझे अंगुली पकड़कर चलना सिखाया वो मेरी यशोदा मैया ही तो थी अक्रूरजी। फिर कान्हा की भावुक बातें सुनकर दूसरे कक्ष में माता यशोदा चीखते हुए कहती है कि मैं नहीं सुन सकूंगी। मैं मर जाऊंगी। यह कहते हुए यशोदा पलंग पर गिर पड़ती है। सभी उस ओर भागते हैं।
यशोदा रोते हुए अक्रूरजी से कहती हैं कि मैंने आपसे कहा था कि आप उससे कुछ नहीं कहना। विदाई तक तो मेरा पुत्र होने का भ्रम बना रहने देते आक्रूरजी। जाते समय वह मुझे मां की तरह कहकर जाता तो आपका क्या बिगड़ जाता अक्रूरजी। फिर भले ही आगे जाकर उसे सब बता देते की मैं उसकी मां नहीं हूं। यह सुनकर श्रीकृष्ण यशोदा के सिर पर हाथ रखकर कहते हैं नहीं मैया ये झूठ है। ये झूठ है मैया। ऐसी झूठी बात ये मुझे कहीं भी बताते तो मैं नहीं मानता मैया और न मान सकता हूं मैं। मैं धरती पर जहां भी रहूंगा मन से मैं सदा तेरा ही पुत्र रहूंगा मां। यशोदा मैया कहती हैं मेरा दिल रखने के लिए सदा से झूठ बोलता आया है रे तू।...फिर अक्रूरजी वहां से चले जाते हैं।
अक्रूरजी अपने गुप्तचरों और सैनिकों से कहते हैं कि बलराम के हठ से सारी योजन उलट-पुलट हो गई। अब सुनो सब साथियों से कहो की उस घाट के आसपास ही छुपे रहें जहां स्नान करने के बहाने हम रुकेंगे और दूसरे किनारे अपने साथियों के संग संकेत की प्रतीक्षा करें।
इधर गोकुल में कान्हा के सखा आपस में बात करते हैं कि सुना है कि कंस के कहने पर अक्रूर कृष्ण को लेने आया है। एक कहता है कि ये हम कदापि नहीं होने देंगे। दूसरा कहता है कि परंतु हम उसे कैसे रोकेंगे? तब वह कहता है कि ये मैं नहीं जानता, परंतु मैं इतना जानता हूं कि नंदरायजी ने एक आवाज दे दी की मेरे पुत्र कृष्ण को बचा लो तो गांव का बच्चा-बच्चा अपने प्राण दे देगा। तब तीसरा कहता है कि विराट भैया यही तो दुविधा का केंद्र है जिसके लिए स्वयं नंदबाबा भी कुछ नहीं कर सकते। दुविधा यह सुनने में आई है कि कान्हा नंदबाबा का पुत्र नहीं है। तब तीसरा कहता हैं कि हां वह यादवों का राजकुमार है जिसे इतने दिन कंस से छुपाकर रखा गया था। इस परिस्थिति में यादव सरदार अक्रूरजी उसे वापस लेने आए हैं तो बिचारे नंदबाबा क्या कर सकते हैं?
उधर, फिर से यशोदा मैया, नंदबाबा और श्रीकृष्ण को बताते हैं। श्रीकृष्ण यशोदा को समझाते हैं कि तू चिंता क्यों करती है मैया। तनिक सोच तेरा कान्हा कालिया नाग को परास्त कर सकता है। इंद्र के कोप से बचाकर गोवर्धन पर्वत उठा सकता है तो ये कंस उसका क्या बिगाड़ लेगा मैया?
यशोदा रोते हुए कहती हैं, इसीलिए तो तुझे कहती थी कि ऐसे चमत्कार मत किया कर। तुझे किसी की नजर लग जाएगी। मैं कह-कह कर हार गई कि लल्ला भगवान मत बन। मेरा लल्ला ही बना रह, नहीं तो एक दिन तुझे मैं खो दूंगी। अब देख लिया न उसका परिणाम। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मोह छोड़कर अपने पुत्र को भगवान मान लेने में ही सारे संकट समाप्त हो जाएंगे और तुझे मोक्ष मिलेगा मैया।
यशोदा कहती हैं कि मुझे भगवान या मोक्ष नहीं चाहिये कान्हा। मुझे तो अपना पुत्र चाहिये तो मुझे दुख दे। ये ज्ञान ध्यान की बातें तू किसी और को समझाना मुझे तो अपने मोह के दलदल में ही फंसा रहने दे कान्हा। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि वाह मैया तू तो ज्ञान, भक्ति, मोक्ष, ध्यान से भी आगे निकल चुकी है। तुझे तो अब भगवान की भी आवश्यकता नहीं बल्कि भगवान को ही तेरे जैसी मैया की आवश्यकता है। तू धन्य है मैया, तू धन्य है।
यह सुनकर यशोदा कहती हैं कि ये सब नाटक मेरे सामने मत कर। तू बचपन से ही ये सब नाटक करके मुझे रिझा रहा है। वास्तव में तू तो मेरा पुत्र है ही नहीं, तू तो मेरा शत्रु है शत्रु। मुझे ये मोक्ष की बातें मत समझा। जा चला जा अपनी असली माता के पास। नंदराययजी ये सब वार्तालाप सुनकर दुखी होते रहते हैं। तब कान्हा कहते हैं, चला जाऊंगा परंतु ये अंतिम रात तो अपनी असली माता के पास बिता लूं? यह सुनकर रोते हुए यशोदा मैया कहती हैं तुझे मुझसे और क्या चाहिये, क्या? कृष्ण कहते हैं, एक वचन। मैया मुझे एक वचन दे।
यशोदा कहती हैं मांग ले जो भी मांगना है मांग ले। तब कृष्ण कहते हैं कि तू मेरे पीछे रोया नहीं करेंगी। यह सुनकर यशोदा कहती हैं नहीं, मैं ऐसा वचन नहीं दे सकती। बिझड़ने की पीड़ा नहीं सही गई तो? तब कृष्ण कहते हैं कि तो रोना मत क्रोध करना उस निर्मोही पर जिसे तेरी कोई चिंता नहीं जो तुझे छोड़कर चला गया। मन ही मन मारना मुझे, लेकिन तू रोना नहीं मैया।
उधर, गोकुल की ग्वालनों को रातोंरात ये पता चल जाता है कि कल सुबह कान्हा गोकुल छोड़कर मथुरा चला जाएगा। ललीता कहती हैं कि हमें उसे रोकना होगा। विशाखा कहती हैं मगर कैसे? तब ललीता कहती हैं सबको इकट्ठा करो। बैचारी राधा। उसे कोई सूचना देता हो अच्छा होता।