Shri Krishna 23 August Episode 113 : प्रद्युम्न का अपहरण करने के लिए शंभरासुर भेजता है 2 मायावी राक्षस
, रविवार, 23 अगस्त 2020 (22:05 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 23 अगस्त के 113वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 113 ) में फिर नारदजी संभरासुर और उनकी पत्नी मायावती को भी ये समाचार सुनाते हैं कि श्रीकृष्ण के यहां पुत्र का जन्म हुआ है और वे आनंद उत्सव मना रहे हैं। यह सुनकर संभरासुर कहता है- नि:संदेह मुनिवर शुभ समाचार है ये, इसी दिन की तो प्रतीक्षा थी। फिर नारदजी वहां से चले जाते हैं।
फिर संभरासुर कहता है- इसी दिन की प्रतीक्षा में तो मेरी तलवार को जंग लग गया था परंतु अब मैं इस तलवार को धार लगाऊंगा। किंतु जल छीड़कर नहीं, कृष्ण पुत्र का रक्त छीड़कर। आज रात में ही कृष्ण पुत्र का वध करूंगा। ये बालवध आज रात ही हो जाना चाहिए। तब उसकी पत्नी मायावती कहती है कि नहीं नाथ, इतनी जल्दी ना करें। इसलिए कि जैसे-जैसे समय बितेगा कृष्ण और रुक्मिणी की अपने पुत्र के प्रति स्नेह भावना बढ़ेगी तो उसके वियोग में उनका शोक भी उतना ही कठिन होगा। इसलिए कुछ दिन और धैर्य रखिये नाथ। कृष्ण और रुक्मिणी को उनके पुत्र के भविष्य के सपने तो सजा लेने दो। शत्रु पुत्र का नाम तो रख लेने दो उन्हें।
उधर, सुभद्रा, रुक्मिणी, सत्यभामा और जामवंती सहित सभी यज्ञ करते हैं। फिर सत्यभामा गुरुदेव से कहती हैं कि आप मेरे पुत्र का नामकरण क्या करेंगे? इस पर बीच में ही सुभद्रा कहती हैं कि पहले गुरुदेव बच्चे की जन्मकुंडली बनाएंगे, फिर उसका भविष्य बताएंगे तब उसका नामकरण होगा। यह सुनकर जामवंती कहती है कि सुभद्रा तुमने तो पहले ही जानकारी प्राप्त कर ली। इस पर रुक्मिणी कहती हैं- हां क्यों नहीं, वह भी तो अपने आने वाले पुत्र का इंतजार कर रही है।
फिर गुरुदेव पोथी देखकर कहते हैं कि मैं भविष्य ही सुनाने जा रहा हूं।.. यह सुनकर रुक्मिणी मानसिक रूप से श्रीकृष्ण से कहती हैं कि अपने पुत्र का भविष्य तो जानती हूं मैं प्रभु। अब तो कुछ ही दिनों का साथ है मेरा और मेरे पुत्र का। हम दोनों के भविष्य में वियोग ही लिखा है।... यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये वियोग विश्व के कल्याण के लिए होगा देवी।...तभी बलरामजी श्रीकृष्ण को हिलाते हुए कहते हैं- कन्हैया तुम्हारा ध्यान कहां है? गुरुदेव मेरे भतीजे का भविष्य बताने जा रहे हैं।
फिर गुरुदेव कहते हैं कि श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का ये पुत्र महावीर होगा, परमप्रतापी होगा और यह असुरों का काल होगा। यह पुत्र धर्म की रक्षा करेगा और यादवों के कुल का नाम रोशन करेगा। आपका ये पुत्र दूसरों के मन को मोह लेगा। इसे जो भी देखेगा उसका मन प्रफुल्लित हो उठेगा। इसलिए इसका नामकरण हम करते हैं- प्रद्युम्न। रुक्मिणी, सत्यभामा, जामवंती, सुभद्रा, अर्जुन, बलराम सभी के मुंह से निकलता है- प्रद्युम्न।
फिर अर्जुन उठकर कहता है गुरुदेव ईश्वर करे की इस शंख की ध्वनि की भांति ही तीनों लोकों में इसका नाम गूंजे जिससे इसके शत्रुओं की नींद ही उड़ जाए। फिर अर्जुन अपने हाथ का शंख गुरुदेव को दे देते हैं। गुरुदेव वह शंख फूंकते हैं- दूरस्थ अपने पलंग पर सोया संभरासुर उस ध्वनि को सुनकर उसकी नींद खुल जाती है।... शंख ध्वनि सुनकर संभरासुर कहता है कि ये शंख ध्वनि तो द्वारिका से आ रही है आज कृष्ण पुत्र का छठा दिन है। अवश्य ही उसका नामकरण हो रहा होगा। मरने वाले का नामकरण।..यह कहकर संभरासुर जोर-जोर से हंसने लगता है। यह सुनकर उसकी पत्नी मायावती उठ जाती है और पूछती है- ये ठहाके क्यों लगा रहे हो? तब संभरासुर कहता है कि मरने वाला का नामकण हो रहा है इसलिए ठहाके लगा रहा हूं। तब मायावती कहती है कि मैं तो तभी ठहाके लगाऊंगू जब उसका वध होगा।
तब संभरासुर कहता है कि आज वे नामकरण का उत्सव मना रहे हैं परंतु कल जब मैं उनके कलेजे के टूकड़े को उनसे छीन लूंगा तब वे छाती पीटेंगे। तुम भूल गई मायावती की हमारे पास मायावी राक्षस है तो अंधेरे में अंधेरा और उजाले में उजाला बनने की क्षमता रखता है। तब मायावती कहती है कि तो उस राक्षस को प्रकट होने का आदेश दीजिये ताकि आज में उसे आदेश दूंगी कि द्वारिका के राजमहल में जाकर किस तरह द्वारिका के भविष्य की नींव को उखाड़ लाना है।
फिर संभरासुर उस मायावी राक्षस को प्रकट होने का आदेश देता है तो वह राक्षस प्रकट होकर कहता है- हे असुरेश्वर मेरा प्रणाम स्वीकार करें और बताएं आपने मुझे क्यों स्मरण किया है? तब संभरासुर कहता है कि इस बार तुम्हें एक नवजात शिशु का हरण करना है। यह सुनकर मायावी राक्षस कहता है यह तो बहुत साधारण कार्य है। तब मायावती कहती है कि ये कोई साधारण बालक नहीं है। यह द्वारिकाधीश का पुत्र है। कृष्ण ने हमारा पुत्र छीना तो हम भी उसका पुत्र छीनना चाहते हैं। फिर मायावी आज्ञा लेकर द्वारिका की ओर निकल जाता है।
द्वारिका पहुंचकर वह द्वारिका को देखकर कहता है कि यदि असुरेश्वर ने आज्ञा दी होती तो मैं इस द्वारिका को ही उठा लाता। यह द्वारिका तो मेरी हथेली से भी छोटी है।
फिर मायावी राजमहल में प्रवेश कर जाता है।
उधर, रति ये देखकर नारदमुनि से कहती हैं मुनिवर मायावी की हंसी से मुझे बहुत डर लग रहा है। कहीं वह दुष्ट प्रद्युम्न को कष्ट तो नहीं देगा? तब नारदजी कहते हैं कि देवी रति आप क्यों चिंता करती हैं। ये मायावी राक्षस विधि के विधान को नहीं बदल सकता। आप तो जानती ही हैं कि संभरासुर का वध करने के लिए ही प्रद्युम्न ने जन्म लिया है। इसलिए प्रद्युम्न का ये असुर तो क्या स्वयं संभरासुर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। निश्चिंत रहो देवी, जहां श्रीकृष्ण, बलराम और अर्जुन हो वहां यह दानव अपनी मृत्यु देखने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कर सकता।
फिर वह मायावी राजमहल में रुक्मिणी के कक्ष में प्रवेश करने के पूर्व अपनी माया से सभी सैनिकों को मूर्च्छित कर देता है। फिर वह रुक्मिणी के कक्ष में प्रवेश करके पालने में सोए बालक प्रद्युम्न को देखता है और पलंग पर सोई रुक्मिणी को भी देखता है। फिर वह पालने सहित बालक को उठा लेता है और उसे लेकर आकाश में उड़ जाता है। तभी बालक के रोने की आवाज सुनकर सुभद्रा अर्जुन को उठाती है तो अर्जुन कहता है कि अरे हां अपना प्रद्युम्न होगा भूख लगी होगी तो दूध मांग रहा होगा रुक्मिणी से। परंतु सुभद्रा कहती हैं कि नहीं ये आवाज रुक्मिणी भाभी के कक्ष से नहीं आ रही है। फिर सुभद्रा गैलरी में जाकर देखती है तो उसे आसमान में वह मायावी राक्षस पालने को हाथ में लिए दिखाई देता। फिर वह अर्जुन से कहती है- सुनिये कोई राक्षस प्रद्युम्न को लेकर आकाश में उड़ा जा रहा है। यह सुनकर अर्जुन बिस्तर छोड़कर तुरंत ही अपने धनुष और बाण को उठाकर भागता है तो दूसरी ओर सुभद्रा भैया भैया भाभी भाभी चीखती हुई श्रीकृष्ण के कक्ष की ओर दौड़ लगाती है।
सुभद्रा की आवाज सुनकर श्रीकृष्ण और रुक्मिणी जाग जाते हैं।... उधर आकाश में मायावी राक्षस कहता है कि अब में द्वारिकाधीश की पहुंच से दूर हूं अब मुझे कोई नहीं पकड़ सकता।
उधर, श्रीकृष्ण बाहर आकर धनुष पर बाण चढ़ा लेते हैं उनके पीछे रुक्मिणी होती है तभी अर्जुन भी वहां पहुंचकर कहते हैं- रुक जाओ केशव। ये छोटासा काम मुझे कर लेने दो केशव। फिर अर्जुन धनुष पर बाण चढ़ाकर छोड़ देता है। आकाश में जाकर वह बाण एक दिव्य बाण में बदल जाता है और उस राक्षस को रोक देता है। राक्षस पलटकर उस बाण को देखता है तब वह बाण गायब हो जाता है तो फिर अर्जुन कहता है कि हे मायावी राक्षस मैं कहता हूं कि तुम प्रद्युम्न को छोड़ तो वर्ना में क्षणभर में ही तुम्हें परलोक पहुंचा दूंगा। तब वह राक्षस कहता है कि अरे तू क्या मुझे परलोक पहुंचायेगा ये ले। ऐसा कहकर मायावी राक्षस अपने एक हाथ की शक्ति से अर्जुन के ऊपर बिजली-सा वार करता है। तब अर्जुन उसके वार को अपने बाण से असफल कर देता है। इस तरह से वह कई तरह के अस्त्रों से वार करता है परंतु अर्जुन उन सभी वार को निष्फल कर देता है।
अंत में अर्जुन उस मायावी राक्षस की गर्दन उड़ा देता है तो उसके हाथ में से छूटकर पलना भूमि पर गिरने लगता है। रुक्मिणी ये देखकर भयभित होकर कहती है- अरे अर्जुन भैया। तभी अर्जुन अपने एक तीर से पलने के नीचे फूलों का एक दिव्य आसन बना देता है और पलना उस पर विराजमान हो जाता है। यह देखकर रुक्मिणी, श्रीकृष्ण और सुभद्रा प्रसन्न हो जाते हैं। फिर वह आसन धीरे धीरे पलने को लेकर नीचे भूमि पर उनके पास आ जाता है। रुक्मिणी तुरंत ही प्रद्युम्न को पलने में से उठाकर छाती से लगा लेती हैं।
बाद में इस घटना का जब बलराम को पता चलता है तो वे श्रीकृष्ण और रुक्मिणी को फटकार लगाते हैं कि तुम कैसे सो रहे थे? सोने का मतबल ये नहीं की अपने पुत्र को भूलाकर सोओ। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि दाऊ भैया वह मायावी राक्षस था। सब जागते होते तब भी वह धूल झोंककर अंदर घुस आता। यह सुनकर बलरामजी और भड़क जाते हैं और कहते हैं- अरे वाह कन्हैया वाह। ऐसे कैसे घुस आता। तुम बोल रहे हो कि घुस आता। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अब जाने भी दो दाऊ भैया। उस दुष्ट को उसके किए का दंड मिल गया है। फिर बलरामजी कहते हैं- ऐसी लापरवाही से काम नहीं चलेगा। जिस शत्रु ने उस मायावी को यहां भेजा था अवश्य ही अब वह चुप नहीं बैठेगा। प्रद्युम्न का हरण करने की वह फिर से चेष्ठा करेगा कन्हैया। अब अपने भतीजे की सुरक्षा के लिए मुझे ही कुछ करना होगा।
उधर, गुप्तचर आकर सूचना देता है कि मायावी राक्षस ने कृष्ण पुत्र का हरण कर लिया था परंतु स्वयं कुंती पुत्र अर्जुन ने अपनी धनुर्विद्या से मायावी का मायाजाल तोड़कर उसकी हत्या कर दी। यह सुनकर संभरासुर को धक्का लगता है और कहता है कि यदि मायावी असफल हो गया तो इसका यह मतबल नहीं है कि संभरासुर असफल हो गया। कृष्ण पुत्र का हरण अवश्य होगा। फिर वह अपना एक बार तोड़कर भूमि पर पटकता है तो उसमें से एक विशालकाय राक्षस उत्पन्न होकर कहता है- महाराज संभरासुर की जय हो। प्रलयासुर आपको प्रणाम करता है महाराज। क्या आज्ञा है महाराज? तब संभरासुर कहता है कि प्रलयासुर तुम द्वारिका जाओ और कृष्ण पुत्र का हरण करके मेरे पास लाओ। इस पर प्रलयासुर कहता है- जो आज्ञा महाराज। ऐसा कहकर वह चला जाता है।
द्वारिका में बलरामजी रात्रि का पहरा बढ़ाकर खुद ही सुरक्षा का जायजा ले रहे होते हैं। प्रलयासुर ये सब देख रहा होता है। बलरामजी मुख्य द्वार पर आकर द्वापाल से कहते हैं कि सुनो कुछ सिपाहियों को उस तरफ भेजो और तुम उस तरफ ध्यान रखो। द्वारपाल कहता है जी। ऐसा कहकर बलरामजी एक सैनिक के साथ द्वार के बाहर आगे निकल जाते हैं।... उधर प्रलयासुर सभी से बचते-बचाते राज परिसर के पास पहुंच जाता है।..फिर उधर बलरामजी सभी सुरक्षा का जायजा लेकर महल में चले जाते हैं। वहां वे सैनिकों से कहते हैं कि कड़ा पहरा दो और रानियों के कक्ष पर कड़ी नजर रखना। सैनिक कहते हैं- जी स्वामी।
उधर, विशालकाल प्रलयासुर परिसर के मुख्य द्वार से प्रवेश करता है तो सभी सैनिक उसे देखकर उसको चारों ओर से घेर लेते हैं तब वह परिसर की दीवार उखड़कर उन सैनिकों पर फेंककर उन सभी को मारकर परिसर में प्रवेश कर जाता है। परिसर में और भी सैनिक उसे देखकर उसकी ओर दौड़ लगाते हैं परंतु वह सभी को मार देता है। इस तरह वह महल के पास पहुंचकर खिड़कियों, गैलरियों में देखता है कि वह बालक कहा है, क्योंकि प्रलयासुर विशालकाय रहता है जिसके कारण वह महल में प्रवेश नहीं कर पाता है। उसे एक गैलरी के कक्ष में रुक्मिणी के पास सोया बालक प्रद्युम्न नजर आता है। वह अपना हाथ भीतर डालकर उस बालक को पकड़ लेता है तभी प्रद्युम्न रोने लगता है तो रुक्मिणी की नींद खुल जाती है। वह यह दृश्य देखकर चीखती है- वासुदेव। तब तक वह राक्षस उस बालकर को पकड़कर बाहर हाथ निकाल चुका होता है।
रुक्मिणी चीखती हुई गैलरी में जाती है- वासुदेव वासुदेव।.. वह राक्षस को जाते हुए देखती है जिसके हाथ में प्रद्युम्न रहता है। वासुदेव देखिये मेरे बेटे को वो राक्षस उठाकर ले जा रहा है...दाऊ भैया। रुक्मिणी की आवाज सुनकर बलरामजी की नींद खुल जाती है। वह अपनी गदा लेकर भागते हैं। उधर, रुक्मिणी चीखती रहती है तब सत्यभामा और जामवंती उनके पास आती है और पूछती है- दीदी क्या हुआ? तो रुक्मिणी कहती है वो देखो वो राक्षस मेरे प्रद्युम्न को उठाकर ले जा रहा है।
उधर, बलराम परिसर में पहुंचकर उस राक्षस को ललकार कर कहते हैं- रुक जा दुष्ट। राक्षस प्रलयासुर पीछे पलटकर देखता है तो उसे गदा लिए बलरामजी नजर आते हैं। गैलरी में से रुक्मिणी, सत्यभामा और जामवंती भी यह दृष्य देखती हैं। वह राक्षस कहता है- हट जाओ मेरे रास्ते से वर्ना मेरे पैरों के नीचे आ गए तो धरती मैं धंस जाओगे। यह सुनकर बलरामजी कहते हैं कि अरे दुष्ट दानव छोड़ दे मेरे प्रद्युम्न को छोड़ दे, वर्ना मैं तुझे जीवित नहीं छोड़ूंगा। तेरी भलाई इसी में है कि तू रुक जा। यह सुनकर प्रलयासुर कहता है- तू मुझे रोकेगा? अरे मूर्ख मानव तू इस दानव को मृत्यु से डराता है, मृत्यु तो मेरी दासी है दासी।
तब बलरामजी कहते हैं कि मैं तुझे आखिरी चेतावनी देता हूं कि मेरा बच्चा मुझे वापस दे दे। तब वह राक्षस कहता है कि बच्चा तो मैं तुझे नहीं दूंगा। यदि तुझमे साहस है तो आकर मुझसे छीन ले। यह सुनकर बलरामजी कहते हैं कि तू ऐसे नहीं मानेगा। तुझे मजा चखाना ही होगा। यह सुनकर वह राक्षस कहता है कि अरे तू क्या मुझे मजा चखाएगा मैं तुझे ही चखा देता हूं। ऐसा कहकर वह राक्षस, पेड़ और गुंब उखाड़-उखाड़ कर बलरामजी पर फेंकता है परंतु बलरामजी अपनी गदा से उन सभी को दूसरी ओर फेंक देते हैं। वहां कुछ सैनिक भी आकर ये दृश्य देखते हैं। वह दानव अपने एक हाथ में प्रद्युम्न को पकड़े रहता है और दूसरे हाथ से वह छोटे-छोटे गुंबद उखाड़कर बलरामजी के उपर फेंकता रहता है। जय श्रीकृष्ण।
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