ये कृष्ण के जीवन की रहस्यमयी बात है। असल में कृष्ण ने अपना आखिरी संवाद पार्वती से किया था। जब कृष्ण को पैर में वाण लग गया तब सभी देवता और शिव पार्वती उनसे मिलने उनके पास आए थे। सबकी स्तुति के बाद और अपने जाने से पहले कृष्ण ने आखिरी बार बाँसुरी बजाई थी, तब उनकी बाँसुरी से सारा संसार और सारे देवता, यहाँ तक की शिव भी मोहित होकर सो गए थे। लेकिन पार्वती जागती रहीं थीं।
पार्वती ने कृष्ण से अपने और उनके(कृष्ण के) अद्वैत का मंडन किया था। जैसे शिव और कृष्ण में एकत्व है वैसे ही पार्वती भी कृष्ण का ही रूप हैं। पुराने समय में पार्वती ने सभी देवताओं के अंश से जन्म लेकर महिसासुर का वध किया था।
दुर्गमासुर का वध करने के कारण उनका नाम दुर्गा पड़ा। उन्होंने ही आदि में दक्ष की कन्या के रूप में जन्म लिया था और फिर हिमवान की पुत्री के रूप में वही प्रकट हुई थीं। उन्होंने हर जन्म में शिव को ही प्राप्त किया था। अपनी कृष्णभक्ति के कारण ही पार्वती शिव की अर्धांगिनी बन सकीं थीं।
पार्वती ने कृष्ण से जल्दी ही गोलोक जाने का अनुरोध किया जहाँ राधा बेचैन होकर उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं। पार्वती ने अपने और राधा के अद्वैत के बारे में भी बताया।
उस समय कृष्ण ने दो रूप धारण किए, चतुर्भुज रूप बैकुंठ में चला गया और द्विभुज रूप उसी प्रकार गोलोक में चला गया। पार्वती भी शिव के साथ कैलाश चलीं गई।